राजीव कुमार झा, पटना। कविता मनुष्य के हृदय के सघन राग विराग को प्रस्तुत करती रही है और इसमें बेहद सच्चाई से हमारे जीवन का सुख-दुख यथार्थ के रूप में प्रकट होता रहा है। कविता संसार की समग्र भाषाओं में लिखी जाती रही है और भारत में ऋग्वेद को यहां काव्य का प्राचीनतम साक्ष्य माना जाता है। इसमें ईश्वर, लोक, प्रकृति और जीवन के रहस्यों के प्रति मनुष्य के हृदय के उद्गारों का समावेश है। हमारे देश में संस्कृत और तमिल इन दो भाषाओं को सबसे प्राचीन कहा जाता है और यहां इन दो भाषाओं को आर्य और द्रविड़ भाषा समूह की समस्त भाषाओं की जननी होने का श्रेय दिया जाता है।
संस्कृत में कालिदास, बाणभट्ट, माघ और जयदेव के अलावा शूद्रक और भास इन सारे कवियों को विश्व साहित्य में अन्यतम स्थान प्राप्त है और मध्य काल में हमारे देश में हिंदी भाषा का जब विकास हुआ तो कविता समाज और जनजीवन से जुड़े प्रसंगों की विवेचना में इस दौर में खास तौर पर सक्रिय होती दिखाई देती है। कबीर और तुलसी को हिंदी का महान कवि होने का गौरव प्राप्त है। इसके अलावा जायसी, विद्यापति, सूरदास, मीराबाई, रहीम और बिहारी को भी हिन्दी कविता में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
कबीर को सामाजिक चेतना का कवि कहा जाता है। तुलसीदास ने अपने महाकाव्य रामचरितमानस में लोकधर्म का प्रतिपादन किया है और जीवनमूल्यों के रूप राम के चरित्र को आदर्श के रूप में स्थापित किया है। आधुनिक काल में हिंदी कविता स्वतंत्रता के भावों के साथ समाज में आमूलचूल परिवर्तन के पक्ष में जीवन के स्वर के संधान में खासतौर पर मुखर होती दिखाई देती है और इस दृष्टि से रामधारी सिंह दिनकर की कविताएं पठनीय हैं।
दिनकर की तरह माखनलाल चतुर्वेदी भी राष्ट्रीय जीवन चेतना के कवि माने जाते हैं। इसी समय के आसपास महादेवी वर्मा की कविताओं में नारी जीवन की पीड़ा और व्यथा भी खासतौर पर प्रकट होती दिखाई देती है। समकालीन हिंदी कविता में निराला का स्थान सर्वोपरि माना जाता है और उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की जनता के जीवन से जुड़े सवालों को अपनी कविताओं में विशेष रूप से प्रस्तुत किया है।