सनातन हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०८० विशेष…

“शस्य श्यामला क्षितिज से सिंदूरी गगन तक स्वर्ण किरणों के नव तान,
झरने गाते प्रतिपल गीत नवल, पवन छेड़ते मधरम् सरगम नवल गान।
लाई है उषा अपने संग नूतन हर्षित-संपदा, आज प्राची में नव वर्ष का,
मधुर कलरव करते विहग वृंद, नवल पुष्पयुक्त अभिनंदन नववर्ष का।”

श्रीराम पुकार शर्मा, हावड़ा। सर्वत्र ही नव पल्लवित पादप-पुंज, सुवासित इंद्रधनुषी पुष्प, भौंरों की मधुर गुँजार, पक्षियों के सामूहिक उल्लसित गान, दूर-दूर तक खेतों में लहराते स्वर्णिम रवि फसलों आदि से शृंगार की हुई हमारी शस्य-श्यामल वसुंधरा अतिहर्षित, हमारे सनातनी हिन्दू नववर्ष २०८० का अभिनंदन करती प्रतीत हो रही है। खेतों में विविध फसलों के पकने की मंद-मंद खुशबू को कर में लिये मधुर समीर भी नववर्ष के स्वागत में इधर-उधर दौड़ती-भागती व्यस्त जान पड़ती हैं। हमारे धरती-पुत्र, कृषक-संतान अपने लह-लहाते खेत-खलिहानों में स्वर्णिम फसलों को देख-देख कर सपरिवार हर्ष- विभोर हो रहे हैं। कुछ दिनों के उपरांत ही उनके घर की कोठियाँ अन्न-दानों (लक्ष्मी) से परिपूर्ण हो जाएंगी। प्रकृति के समस्त जड़-चेतन अपने शीतजन्य-आलस्य भाव से पूर्णतः मुक्त होकर नवीनता में स्नात सचेतनता को प्राप्त कर लिये हैं। शीत के प्रकोप से पर्णहीन हुए पादप-पुंज बहुत पहले ही सुवासित नवल पल्लवों, पुष्पों और कुछ फलों को धारण कर उल्लासपूर्वक हमारे ‘नववर्ष’ के अभिनंदन हेतु प्रस्तुत हैं।

श्रीराम पुकार शर्मा, लेखक

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के उदित स्वर्ण सूर्य और उनकी स्वास्थ्यवर्द्धक मनोहर भगवा किरणों से आभासित प्रातः बेला के साथ ही हम सनातनी हिन्दुओं का नववर्ष (विक्रम संवतसर) प्रारंभ हो जाता है। प्रकृति में व्याप्त अंधकार व शीत स्वतः ही दूर होने लगते हैं। फलतः अज्ञानता भी दूर भागने लगती है। सही भी है, जब हम सभी हिमशीत से प्रताड़ित गहन निद्रा के आगोस में रहे हों, जब हमारे चतुर्दिक प्रकृति में अज्ञानता और गहन अंधकार का राज व्याप्त रहा हो, तब भला नववर्ष के आगमन की बात भी कितनी झूठी लगती है। हमारे सनातनी हिन्दू पूर्वज ऋषियों-महर्षियों ने नववर्ष का शुभारंभ ‘ऋतुराज वसंत’ से ही माना है।

जब शीत ऋतु का अवसान हो जाता है। देश-प्रांतर में चतुर्दिक ही हरीतिमायुक्त नवीन खूबसूरत बहार दिखाई देने लगती है। समस्त चराचरों में खुशी का माहौल बना रहता है। स्वर्णिम खेत-खलिहान स्वर्णिम खाद्यान फसलों (लक्ष्मी) से परिपूर्ण झूमने लगते हैं। सूर्य की स्वर्णिम प्रकाश-ताप युक्त किरणें प्रकृति में फैले विभिन्न रोग-किटाणुओं को नष्ट करते हुए जड़-चेतन सबको नई ऊर्जा से उदीप्त करने लगती है। ऐसे में हमारा सनातनी हिन्दू नववर्ष सबको हर्षाते हुए प्रातः भगवा सिंदूरी किरणों के साथ हमारे द्वार पर दस्तक देता है।

चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से ही हमारा नववर्ष विक्रम संवत २०८०, का शुभारंभ हो रहा है, जो युगाब्द (कलियुग) ५१२४ वाँ वर्ष तथा अंग्रेजी का २२ मार्च,२०२३ है। नए वर्ष का यह प्रथम दिन, तन-मन की शुद्धता सहित सर्व हर्ष-उल्लास का ही दिन है। इस दिन को भारत में संवत्सरारंभ, गुड़ीपड़वा, युगादि, वसंतारंभ आदि विविध प्रसंगानुकूल नामों से जाना जाता है। आज का दिन बहुत ही पवित्र है। देव योग से सभी अंतरिक्ष नक्षत्र बहुत ही शुभ स्थिति में होते हैं, अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए आज का दिन सर्वाधिक शुभ माना जाता है। आज के दिन को हमारी धरती पर जीवन के मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस प्रदान करने वाले चंद्रमा की विविध कलाओं का प्रथम दिवस माना जाता है।

विगत शिशिर ऋतु के प्रभाव से पत्रविहीन हुए पादप-पुंज पुनः नव पल्लवित और पुष्पित हो गए हैं। उनमें छिप कर बैठी ‘कु-हू’, ‘कु-हू’ करती कोयल तथा अन्य विहग प्रकृति के स्वर बनकर ‘नववर्ष’ के संदेश को सम्प्रेषित करते नहीं अघाते हैं। कितना पावन और कितना मनोहर दृश्य होता है। इसीलिए आज के दिन को वर्ष का आरंभ माना जाना पूर्णतः प्राकृतिक और खगोलीय दृष्टि से सार्थक है। इस समय न ज्यादा गर्मी ही है, न ज्यादा ठंडी ही, शरीर के अनुकूल संतुलित तापमान। शरीर के अनुकूल मौसम। यह समय मूलतः दो ऋतुओं का संधिकाल है, जिसमें रातें क्रमशः छोटी और दिन अपेक्षाकृत बड़े होने लगे हैं। वायु भी पूर्णतः समशीतोष्ण होती हुई समस्त चराचरों के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक, उत्साहवर्द्धक तथा आह्लाददायक हो गई है।

शास्त्रों में कहा भी गया है कि आज ही के दिन (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) के पावन सूर्योदय बेला से ही सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी ने स्वयं इस भव्य और विराट सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। फलतः मुख्य रूप से ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित समस्त स्वरूपों, यथा; देवी-देवता, यक्ष-राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनि, नर-नारी, पशु-पक्षी, कीट-पतंग आदि समस्त चराचरों का ही नहीं, बल्कि इन सभी से संबंधित विभिन्न रोगों और उनके उपचारों आदि की भी आज सप्रेम आराधना की जाती है। कालांतर में आज ही के दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रघुकुल श्रेष्ठ श्रीराम जी का राज्याभिषेक हुआ था। आज ही के दिन महर्षि गौतम ऋषि की पावन जयंती है। आज ही के दिन पाँडव श्रेष्ठ युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ था और ‘युगाब्‍द’ संवत (युधिष्‍ठिर संवत्) का शुभारंभ हुआ था।

आज ही के दिन उज्जैनी सम्राट विक्रमादित्य ने अपने विस्तृत साम्राज्य में एक नवीन संवत्सर का प्रचलन किया था, जिसे ‘विक्रमी संवत्’ के नाम से जाना जाता है और इसे ही हम ‘हिन्दू संवत्सर’ के रूप में भी स्वीकार करते आए हैं। आज ही के दिन तत्कालीन भारतवर्ष के सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल प्रगट हुए थे। आज ही के दिन राजा विक्रमादित्य की भांति दक्षिण में शालिवाहन ने विदेशी आक्रमणकारियों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम साम्राज्य की स्थापना कर ‘शालीवाहन शक संवत’ को प्रारंभ किया था, जिसे स्वतंत्र भारत सरकार ने अपने ‘राष्ट्रीय शाके’ अर्थात ‘राष्ट्रीय कैलेंडर’ के रूप में स्वीकार किया है और अपनी शैक्षणिक तथा वित्तीय संरचना जैसी समस्त राजकीय क्रिया-कलापों को आयाम प्रदान करती है। आज ही के दिन हूण वंश के सम्राट कनिष्क ने अपने राज्यारोहण के दिन स्वरूप ‘शक संवत’ को प्रारंभ किया था।

आज ही के दिन अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को महान भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, फिर सप्ताह, फिर महीना और फिर वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग’ की रचना की थी। आज ही के दिन सिखों के द्वितीय गुरू श्रीअंगद देव जी का भी अवतरण दिवस है। आज ही के दिन मनीषी स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने ‘आर्य समाज’ की स्थापना की एवं ‘कृणवंतो विश्वमआर्यम’ (विश्व को आर्य श्रेष्ठ बनाते चलो) जैसे प्रभावमूलक दिव्य संदेश को प्रसारित किया था। आज ही के दिन ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक’ के संस्थापक क्रांतिवीर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म हुआ था।

लोगों का मानना है कि आज ही के दिन भगवान श्रीरामजी ने वानरराज बाली के अत्याचारी शासन से किष्किन्धा प्रदेश की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। फलतः वहाँ की प्रजा अपने-अपने घरों में हर्ष-उल्लास का उत्सव मनाकर विजय प्रतीक स्वरूप ध्वज ‘गुड़ी’ फहराए थे। आज भी महाराष्ट्र और उसके निकटवर्ती प्रांतों में अपने-अपने घर के आँगन में ‘ग़ुड़ी’ (विजय ध्वज) को फहराने की प्रथा प्रचलित है। इसीलिए आज के दिन को ‘गुड़ी पड़वा’ नाम भी दिया जाता है। आज घर के द्वारों को आम की पत्तियों के बंदनवार से सजाय जाता है, जो सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ अच्छी फसल और सुख-समृद्धि का भी परिचायक होता है।

हमारा यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आधारित सनातन हिन्दू नववर्ष संवत्सर अति प्राचीन है और यह किसी देवी-देवता या महान पुरुष के आविर्भाव या तिरोधान पर आधारित नहीं। ईस्वी या हिजरी सन् की तरह यह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का द्योतक भी नहीं है। बल्कि हमारा यह सनातन हिन्दू नववर्ष संवत्सर पूर्ण रूपेण विशुद्ध प्राकृतिक व खगोलशास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है। इस प्रकार भारतीय काल-गणना का आधार हमारा यह चैत्र शुक्ल प्रतिपदा पर आधारित ‘नववर्ष संवत्सर’ पूर्णतः प्राकृत है, जो हमारी सनातन व भारतीयता के गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। हमारा यह नववर्ष प्रकृति में, परिवार में, समाज में, देश में व जाति में नई उमंग, नया ऊर्जा और हर्षोल्लास का संचार करता है। कविवर केदारनाथ अग्रवाल के शब्दों में ‘सनातन हिन्दू नववर्ष’ को हम इस रूप में कह सकते हैं –
‘देश-काल पर, धूप-चढ़ गई, हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते, चेतन चमके।
दर्पण-देही दसों दिशाएँ, रंग-रूप की दुनिया बिम्बित करतीं,
मानव-मन में ज्योति-तरंगे उठतीं।’

हम सभी अपनी प्राचीन मूल्यवान परंपरा को न भूलें, बल्कि अपने ‘नववर्ष संवत्सर’ की महिमा को अपनी संतान सहित दूसरों को भी बताते हुए इसे बहुत ही हर्ष-उल्लास के साथ मनाएँ। आप सभी विद्व बंधुओं को ‘सनातन हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत २०८०’ के शुभागमन पर हार्दिक बधाई और सुख-संपन्नता तथा सुन्दर स्वस्थ्य की शुभकामनाएँ।

श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा – 711101, (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com

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