।।पंछी।।
राजीव कुमार झा
धूप में
हवा के पंख
जो सिमटे
फागुन में
पेड़ों की डालियों पर
बैठे हुए पंछी
उड़ चले
घाट के किनारे
सन्नाटा
यहां छाया
कहां गये रंगबिरंगे
पंखों वाले पंछी
सुनहरे डैने
नदी का पानी
सूना हो गया
होली के दिन
नहाने के बाद
ठहर गये
सब यहां से जाकर
घर में अकेले