अभिषेक पाण्डेय की कविता : “हिंदी का हो रहा सोलह श्रृंगार”

“हिंदी का हो रहा सोलह श्रृंगार” 

‘इंग्लिश’ लगाती
पैरों में महावर
‘भोजपुरी’ ने हाथों में
रचायी मेहंदी है।
मिल सब सखियाँ
कर रहीं श्रृंगार ‘हिंदी’ का
अभिलाषा हो रही पूरी सबकी है।

‘बुंदेली’ पहनाती
पैरों में बिछुआ
‘बघेली’ ने
कानों में झुमका डाला है,
आहा! क्या दृश्य है यह
‘हिंदी’ ने सबकुछ
फीका कर डाला है।

‘मगही’ साधती
पैरों में पायल
‘मालवी’ ने माथे पर
माँगटीके को सजाया है
रूप सलोना देख ‘हिंदी’ का
सभी ने मन ही मन इठलाया है।

‘कन्नौजी’ बांधती
कमरबंध,
‘हरौती’ ने
बाजूबन्द लगाया है,
लग रही ‘हिंदी’
विश्वसुंदरी
इस दृश्य ने सबको हर्षाया है।

‘राजस्थानी’ पहनाती
नाकों में नथिया
‘हरयाणवी’ ने
सिंदूरी चूड़ी पहनाई है।
निखर आया है,
अनुपम रूप ‘हिंदी’ का
चारो ओर हो रही
जिसकी वाह-वाही है।

‘खोरठा’ सवांरती
आँखों में काजल
‘नागपुरी’ ने उंगलियों में
नगीना ठहराया है,
‘हिंदी’ लग रही
अत्यंत ही रमणीय
एक कांतिमय
रूप उभर कर आया है।

‘अवधी’ बांधती
मंगलसूत्र गले में
‘ब्रजभाषा’ ने
मांग में सिंदूर सजाया है
और ‘छत्तीसगढ़ी’ ने
बनाए हैं जुड़े
गजरे को उसमें लटकाया है
‘हिंदी’ बनी है आज दुलहिन
सखियों ने अंक लगाया है।

लाल जोड़े में
सज कर है आयी
शर्म से आंखें हैं
नीची हो आयी।
‘संस्कृत’ माँ ने आकर
‘बेटी’ के सिर पर
चुनरी ओढाई है,
टिकाई है माथे पर बिंदिया
शुभाशीष हाथों से
‘हिंदी’ की पीठ थपथपाई है।

सब खड़े हैं नतमस्तक
अमरावती से देवकन्या आयी है;
पुष्प बिछे हैं राहों में,
स्वागत में सबने
घी की बत्तियाँ जलायी हैं,
सबको आश्रय देने वाली
दयानिधि ‘हिंदी’ की
यह अद्वितीय छवि
जनमानस पर छायी है।

-अभिषेक पाण्डेय
हावड़ा (पश्चिम बंगाल)

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