।।प्रकृति के दोहे।।
रीमा पांडेय
1. नदियों का ये जल बहे, ज्यों अमरित की धार।
कानों में आकर कहे, सब जीवन के सार।।
2. ताल-तलैया नाचते, चिङियाँ गाये गीत।
बादल भी हैं झूमते, लेते मन को जीत।।
3. फूलों ने हँसकर कही, अपने मन की बात।
देते हैं हम आपको, रंगों की सौगात।।
4. पेड़ों को मत काटना, ये हैं सबके मीत।
इनसे गर यारी रखो, लोगे दुनिया जीत।।
5. पशु-पक्षी दोनो करें, नित्य सवेरे गान।
देख-रेख इनकी करो, ये जगती की शान।।
6. रीमा शुचि समीर हमें, देता जीवन दान।
स्वच्छ सदा इसे रखो, करो इसे मत म्लान।।
7. बहता निर्झर कह रहा, कभी न रुकना यार।
रुकते ही जीवन बने, इस धरती पर भार।।
8. जंगल को मत काटना, सुन लो मेरे मीत।
हरियाली होगी तभी, मन गायेगा गीत।।
9. जल जीवन सब जानते, इसके बिन सब सून।
जल को मत मैला करो, गंदा होगा खून।।
10. जलधारा सुंदर लगे, अद्भुत इसकी बात।
जल से ही निर्मल बना, अपना अद्भुत गात।।