बाज़ीगर जादूगर सौदागर छलिया (व्यंग्य) : डॉ लोक सेतिया 

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

एक भी अनेक भी जैसे कोई ठगने वालों की टोली हो। आपको ये सभी काल्पनिक किरदार फिल्मों में दिखाई देते रहे हैं अब सामने हैं मगर आपको पहचान नहीं हो रही है। आपको नटवरलाल अच्छे लगते हैं ये सभी नटवरलाल की संतानें हैं। चालीस चोरों की टोली है अलीबाबा कोई नहीं अब ये भी इनका कमाल है कि जितने भी नायक थे हुए हैं या बन सकते हैं।

उनको इन्होने जोकर बना दिया अपनी जादूगरी दिखला कर। और जिसको जोकर नहीं बनाया जा सकता था उसको खलनायक साबित कर दिया और ये सभी जो वास्तव में खलनायक ही हैं नायक महानायक बन कर आसमान पर छा गए हैं आंधी की तरह। धूल ने सूरज को ढक दिया है और अटल जी की कविता भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा फिर सच हो गई है। अब आंधी का दावा है दिए की सुरक्षा करने का।
आपने शायद कभी देखा हो कलाकार लोग पुरानी फिल्मों को कभी विदेशी फिल्मों को बदल कर अपनी नई फिल्म बना लेते थे और कभी तो कितनी पुरानी फ़िल्मी तस्वीरों को जोड़कर गडमड कर कुछ और ही बना पेश करते रहते हैं। संगीत में ये बहुत है अच्छे दिल को छूने वाले दर्द और प्यार की भावना वाले नग्में आधुनिक धुन पर मिलाकर इक शोर किसी डिस्को में झूमने को बनाने का चलन बेहद सफल हो रहा है। रोने की बात पर ठहाके लगते हैं बस यही देश समाज में होने लगा है। इतनी कहानियां एक साथ जुड़ गई हैं कि असली नकली की पहचान नहीं हो सकती है। जो बाबा खुद नकली साबित हो चुका है फिर से उसी का बाज़ार खुल गया है खोटा सिक्का चलने लगा है।
    देशभक्ति का सौदागर देश को ही बेचने की बात करने लगा है ये उसी का कमाल है सबकी झोली खाली है इक वही मालामाल है सोने जैसा रंग है तेरा चांदी जैसे बाल इक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल। गोरी शब्द की जगह आपके मन में जो नाम आया है अभी सच है , क्योंकि मन की बात है। मन से कुछ भी छिपता नहीं है मगर मन चंचल है झूठे ख़्वाब बड़े बड़े सपने दिखलाता है और आपको सपने सच होने की उम्मीद होने लगती है।
उसका शतरंज का खेल अजब ग़ज़ब है उसकी उलटी चाल भी सीधी समझी जाती है और सामने कोई खिलाड़ी नहीं होता है विरोधी उसको पसंद नहीं है खुला मैदान उसका अधिकार है जिधर जो खेल चाहे खेल सकता है। मैदान कोई भी हो खेल उसी का है खिलाड़ी अकेला वही है उसकी टीम में बाकी सभी अनाड़ी हैं और ऐसे अनाड़ी खुद अपने गोलपोस्ट में गेंद डाल देते हैं मगर ये हारी बाज़ी को अपनी जीत घोषित कर देता है।
अपने हाथ से गेंद को उठाकर सामने के गोलपोस्ट में डाल सकता जिस में कोई गोलकीपर होता ही नहीं है। उसकी मर्ज़ी से नियम बदल जाते हैं खेल बदल जाता है और खेल का मैदान तमाशा दिखलाने का स्थान बन जाता है। नमस्कार , भाइयो और बहनों , मित्रो मेरे प्यारे देशवासियो कितने आयोजन उस के निर्देशन अभिनय की मिसाल हैं। और इक मीडिया है जो ताली बजा बजा कर क्या खूब है तमाशा लाजवाब है घोषणा करने को तैयार रहता है।

इक मदारी है उसका बंदर है और जमूरे ही जमूरे है , कभी एक जमूरा हुआ करता था मदारी का खेल उसी पर आधारित होता था। जमूरे बता कितने लाख करोड़ और जवाब होता देश की जनता से अधिक वोट मिले आपको छह सौ करोड़ मत से विजयी हुए आप। उनका झूठ पकड़ा जाता साबित नहीं होता कभी भी। अदालत गवाह कानून सब उसकी कठपुतलियां हैं उसकी कही बात गीता रामायण से बढ़कर है।

उसकी टोली के लोग दवा के नाम पर ज़हर देते हैं लोग स्वस्थ्य होने की जगह स्वर्ग सिधार रहे हैं मगर फिर भी सब को यकीन है यही मोक्ष दिलवा सकता है अच्छे दिन नहीं अब सीधे स्वर्ग भेजने का उपाय है। देश की अर्थव्यवस्था को इतना ऊंचा खड़ा कर दिया है कि नीचे अस्सी करोड़ लोग दो जून रोटी की खैरात पाने की हालत में पहुंच गए हैं। दाता इक वही है भिखारी सारा देश है ये बेमिसाल शासन का ही कमाल है।

आपने बापू के तीन बंदरों की बात सुनी होगी इक देखता नहीं इक बोलता नहीं इक सुनता नहीं है। मगर इक लिखने वाले ने लिखा था कि वास्तव में बापू के पास चार बंदर थे जब बापू तीन बंदरों की कथा सुना चुके तब वो चौथा बंदर कहीं बाहर गया हुआ था भाषण देने को। उसने कहा बापू मुझे भूल गए अपनी कहानी में मेरा नाम नहीं बताया काम नहीं बताया मेरी पहचान क्या होगी।

बापू ने कहा भविष्य में हर तरफ तुम ही टीम नज़र आओगे लोग इन तीन बंदरों को भूल जाएंगे तुम जो बस बोलना जानते हैं भाषण देने में निपुण हैं वही शासन करेंगे। मैंने जानकर तुम्हारी गैरहाज़िरी में तीन बंदरों से सबकी पहचान करवाई है ताकि तुम्हारी किसी को पहचान नहीं हो पाए क्योंकि जब लोग तुम्हें जान पहचान लेंगे तुम्हारा खेल खत्म हो जाएगा। बापू के तीन बंदर शोकेस में बंद हैं चौथा खुला है उछलता कूदता है।
मनमानी करता है बाग़ पर उसका अधिकार है खाता भी है और जितना खा सकता है उस से कई गुणा अधिक उजाड़ता है बर्बाद करता है। ये चौथा बंदर सब देखता है सुनता है मगर बोलता कुछ और ही है। बंदर के हाथ सत्ता का उस्तरा है सब डरते हैं घायल होकर भी बंदर की पूजा करते हैं उसको देवता का अवतार बताया जाने लगा है।
कुछ साल बाद पांच साल बाद कोई लाठी डंडा चुनाव में हाथ लगता है जिस से बंदर को भगाया जा सकता है लेकिन बंदर अपना चेहरा बदल फिर नए ढंग से सामने खड़े मिलते हैं।

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