।।आया बसंत।।
डॉ. अखिल बंसल
बसुधा पर लहराया बसंत
आया बसंत, आया बसंत।
ऋतुराज प्रकृति का प्यार लिए
कोयल की मृदुल पुकार लिए।
भावों का नव संसार लिए,
रस भीनी मस्त बयार लिए।
तरुओं का यौवन वहक रहा,
वन गंधित मादक महक रहा।
सरसों की छटा निराली है,
गाती कोयल मतवाली है।
पागल पलास लो दहक उठा,
‘अखिल’ मानस लख चहक उठा।
मन मस्ती में डूबा जाता,
अनकहा एक सुख में पाता।
फूलों पर भोंरे मंडराते,
खगवाल फुदकते मुस्काते।
मंजरित हो उठे आम्र कुंज,
चुम्बन करता आलोक पुंज।
हो चला शिशिर का पूर्ण अंत,
आया बसंत, आया बसंत।