डीपी सिंह की रचना : सरस्वती वंदना

।।सरस्वती वन्दना।।

वन्दना कर के स्वीकार माँ शारदे
वाणी में वीणा जैसी ही झंकार दे

शब्द झरते ही खिल जाय मन की कली
वो बसन्ती बहारों का श्रृंगार दे

कच्ची मिट्टी का लोना हूँ माँ मैं अभी
इक सुघड़ मूर्ति का मुझको आकार दे

तोड़ अज्ञान के सारे तटबन्धों को
भावनाओं को विस्तार, सञ्चार दे

दे दे ओजस्वी स्वर और प्रज्ञा प्रखर
मीठी वाणी में भी सत्य की धार दे

–डीपी सिंह

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seventeen − thirteen =