।।कुर्सी कथा।।
ध्रुवदेव मिश्र पाषाण
आप बोल रहे हैं
भाषा खप रही है
आप छप रहे हैं
खबरें दब रही हैं
आपका बोलना कुर्सी का बोलना है
आपका छपना कुर्सी का छपना
आप खेल रहे हैं
कुर्सी-कुर्सी
आप बेल रहे हैं पापड़-पापड़
देश समूचा कुर्सी-कुर्सी
जब तक एक साथ हैं आप और कुर्सी
कैसे बोलें वे जो बोलेंगे जब
मुंह खोलेंगे अंखुए
तोड़-तोड़कर बंजर?
कैसे छप पाएं वे खबरें
जो छप पाएंगी जब
सच पहुंचेगा सच तक
भाषा पहुंचेगा जन तक?
शायद नहीं जानते आप
क्या होगा फिर निकलेगी जब
सूरज को
सतरहवीं संध्या कुरुक्षेत्र के रण की?
बहुरेंगे दिन पेड़ों के
जारी किए स्वयं अपने सम्मन
मौत के
जिनकी कुर्सी-कुर्सी