मौसमी दोहे
मौसम तो नेपथ्य से, रचता साज़िश मात्र।
बादल, बारिश, कोहरा, बनें मञ्च के पात्र।।
मौसम को ईर्ष्या हुई, देख तपन का तेज।
उसने झटपट धुन्ध को, दिया सुपारी भेज।।
सक्षम पर अक्सर रहे, मौसम मेहरबान।
बेघर, बेदम, वृद्ध पर, रखता भृकुटी तान।।
कोरोना के संग में, बैठी बाहर शीत।
छिपकर भीतर भीत के, घड़ियाँ करें व्यतीत।।
सर्दी एक गरीब की, किटकिट करते दाँत।
खिटखिट है परिवार में, और टूटती आँत।।
–डीपी सिंह