मैं कतरा हो के भी तूफ़ां से जंग लेता हूं (हास-परिहास)

डॉ. लोक सेतिया, विचारक

विषय बदल गया है साल तक जिन कृषि कानूनों के फायदे समझा रहे थे अचानक हिसाब लगा रहे हैं उनको हटाने से कितना मुनाफ़ा होगा। राजनीति की शतरंज की बिसात पर मोहरे कब चाल बदलते हैं खेलने वाले खिलाड़ी जानते हैं किस समय कैसे शह – मात की बाज़ी खेलनी है। बात पुरानी है किसी राजनेता ने किसी शायर का शेर पढ़ा था मेरा पानी उतरते देख कर किनारे पर घर मत बना लेना , मैं समंदर हूं लौट कर ज़रूर आऊंगा। समंदर होने का गरूर चूर चूर भी होते देखा है जब हर कतरा अपनी हैसियत समझाने लगे खुद को विशाल समझने या ऊंचाई का शिखर समझने वाले इतिहास में पहले भी वक़्त की ठोकर से सही अंजाम तक पहुंचते देखे हैं।

सत्ता मिलने से बंदा ख़ुदा नहीं बन जाता है राजनीति की डगर फिसलन भरी होती है पांव डगमगाते क्षण भी नहीं लगता है। सरकार हमेशा दावा करती है जनता की भलाई करने का जबकि उसको खज़ाना भरने से मतलब होता है घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या। ज़हर देने की ज़रूरत नहीं होती चारागर अगर दवा ही नहीं दे तो मन की बात सच हो जाती है और क़त्ल का इल्ज़ाम भी नहीं लग सकता। मुझे वसीम बरेलवी जी की ग़ज़ल का शेर याद आता है। मैं कतरा हो के भी तूफ़ां से जंग लेता हूं। ये है तो सब के लिए हो ज़िद हमारी है , इस एक बात पे दुनिया से जंग जारी है। ये इक चिराग़ कई आंधियों पे भारी है।

गलत को गलत समझना पड़ता है तभी उसको ठीक करने की बात होती है। मुश्किल होगी जब सरकार जनाब की हर बात पर ताली बजाने वालों को अख़बार टीवी चैनल पर बात को बदल कर बताना पड़ेगा तीन कृषि कानून को निरस्त करने से फ़ायदा होगा। कतरे की ज़िद के सामने झुकना समंदर की तौहीन होगी लेकिन बगैर कतरे समंदर की कोई औकात ही नहीं सीधी सी बात समझ नहीं आती कई बार। चुनावी नतीजे जब निकलेंगे तब निकलेंगे खुद को चाणक्य बताने वाले सर्वेक्षण का धंधा चलाने वाले नहीं जानते नैया बीच भंवर हिचकोले खाएगी डूबेगी कि पार होगी।

किनारे पर भी कश्तियां डूबती रहती हैं अब अगर ये पांसा भी उल्टा पड़ा तो वही होगा न खुदा ही मिला न विसाले सनम , न उधर के रहे न इधर के रहे। मुहब्बत की बात होती तो हार कर भी जीत जाते हैं लेकिन सत्ता की राजनीति में आंकड़ों की बाज़ी पलटना भला कैसे मंज़ूर होगा। धड़कन बढ़ती जाएगी बड़ी क़यामत की घड़ी सांस से सांस मिली तो सबको सांस आएगी। अभी किसी को समझ नहीं आएगा कि सरकार पहले सही थी या अब सही है लेकिन कहावत है शासक ताकतवर कभी गलत नहीं ठहराए जाते हैं। कुछ बातें राज़ भी होती हैं और हर कोई जानता भी होता है जैसे हमारे देश में पुलिस का रिश्ता अपराधियों से आंख मिचोली खेलने जैसा होता है।

आम लोग अपराध होने पर पुलिस के पास जाते हैं शिकायत करने जबकि अपराधी पहले से भाईचारा बनाने और निभाने की व्यवस्था कर लेते हैं। पुलिस विभाग का चौबीस घंटे उपलब्ध नंबर मिलाने पर मिल भी जाये तो सूचना देने वाले से पूछताछ करने लगते हैं ताकि गुनाह करने वाला बच कर निकल सके। पुलिस वाले विश्वास करते हैं कि अपराध होते हैं तभी उनकी नौकरी वेतन के साथ कितना कुछ मिलता है अत: अपराध खत्म होना उनके हित की बात नहीं होगी। जुर्म होने पर धरे जाने के बाद पुलिस जांच के नाम पर पीड़ित पक्ष को ही परेशान करती है मुजरिम खुला आज़ाद फिरता है। देश की सबसे बड़ी अदालत कहती है उसको लगता है अमुक मामले में पुलिस की जांच इक मिसाल है खराब जांच की।

इक कहानी है जिस में रात को सुनसान जगह पर डाकू रास्ते में कुछ लोगों को घेर लेते हैं मगर मुसाफिर बताते हैं कि हम कवि शायर लोग हैं किसी शहर से कवि सम्मलेन में भाग लेकर लौट रहे हैं। हमको कोई पैसा दौलत नहीं मिलते हैं सिर्फ तालियां और वाह वाह सुनकर खुश हो जाते हैं। हां कोई कोई बड़ा मशहूर हो जाता है तब उसको ईनाम धन दौलत हासिल होती है। डाकू सरदार उनसे नामी शायरों के नाम पते लिखवा लेते हैं और कुछ दिन बाद अपनी बिरादरी का विशेष उत्सव मनाने को कवि सम्मलेन आयोजित करते हैं।

कविताएं सुनते हुए शानदार उपहार धन दौलत देकर खुश कर उनको विदा करते हैं लेकिन कुछ दूर पहुंचने पर उनको घेर कर लूटने लगते है सब। कवि शायर कहते हैं छीनना ही था तो पहले दिया ही क्यों तब डाकू सरदार कहते हैं वो हमारा शौक था मौज में दिया लेकिन ये हमारा धंधा है इसलिए अपना काम नहीं छोड़ सकते। बंदूक जिनके हाथ होती है उनका हर निर्णय सही होता है प्यार जतलाना भी और ज़ुल्म ढाना भी शासक का मिजाज़ कब बदले कौन जानता है।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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