जय श्री कृष्ण
विश्व रूप अखण्ड मुख में,
माँ जसोमति अस लखै।
तेज पुञ्ज प्रचण्ड मन के,
भाव विस्मृत सब करै।।
गिरि सरित ब्रह्माण्ड कोटिक,
चन्द्र तारक को गनै।
दृग अचम्भित, पलक अपलक,
रूप बरनत नहिं बनै।।
भाव विह्वल रोम पुलकित,
नयन सो निर्झर झरै।
थकित वाणी रुद्ध रसना,
गात गति कैसे करै।।
ले बलैया कबहुँ, कबहुँक,
सीस चरननि पर धरै।
“सिंह” आनन्दित चकित लखि,
शबद बरनन को करै।।
जय श्री कृष्ण
-डी पी सिंह