पिता
पिता वह जड़ है, जिसकी हम शाखा हैं,
पिता वह पेड़ है, उसकी हम छाया है,
पिता वह रास्ता है, जिसकी मंज़िल हम हैं,
पिता वह कड़ी है, जिनसे हम सब जुड़े हैं,
पिता वह तपस्या है, जिनकी साधना हम है,
पिता वह कर्म है, जिसका मीठा फल हम हैं,
पिता से ही हमारा वजूद है,
जो खुद दिन भर कष्ट करते है,
जो अपने बच्चों को
भरपेट खाना खिलाते है
उनके कष्टों को अपनाकर
अपनी चिंता, मजबूरी
अपने दुःखों के
बोझ का घूंट पीकर
हमें अमृत्व प्रदान करते हैं, अपनी हर समस्याओं को
जो अपने शिकन पर
नहीं आने देते,
जो अपने
दुःख के बादल से
बच्चों पर सुख की वर्षा
करते हैं,
वह है ‘पिता’।
जहां पिता नहीं,
वह घर सूना है,
जो सब की मार खाकर
भी चुप रह जाता है,
वह है ‘पिता’।
-निखिता पाण्डेय