
“सीख लिया”
गिरकर उठना सीख लिया
अब जख्मों को सीना सीख लिया ।
हां मैंने भी जीना सीख लिया ॥
कांटों में दामन उलझा थे मेरे,
फूलों में रहना सीख लिया,
गिरकर उठना सीख लिया
जख्मों को सीना सीख लिया।
शख्सियत का मेरे कोई मोल ना था
अब दिलों में सबके रहना सीख लिया।
गिरकर उठना सीख लिया ,
अब जख्मों को सीना सीख लिया।
बुलंदियों में कभी जमाए थे कदम,
आज खाक जमी का छानना सीख लिया ॥
हां गिरकर उठना सीख लिया,
अब जख्मों को सीना सीख लिया
जिन लोगों के जुबान पर कभी मेरी तारीफ- ए- गुफ्तगू थी ,
आज भला- बुरा उन्हीं से सुनना सीख लिया॥
हां गिर कर उठना सीख लिया ,
अब जख्मों को सीना सीख लिया॥
अर्चना पाण्डे, दुर्गापुर, (प.ब)