।।देता हूं मैं।।
डॉ. आर.बी. दास
सब को साथ लेकर चलने की चाह में,
बहुत कुछ खो देता हूं मैं…
खुद बिखेरता हूं फूल सब के लिए,
खुद के लिए कांटे बो देता हूं मैं…
बस इतनी सी खुशियों की चाहत है,
जितनी लोगों को देता हूं मैं…
अब सुकून वाली नींद किसे जनाब,
रात काटने को सो लेता हूं मैं…
बहुत ही दाग है ये बेरुखी के मुझपे,
आंसुओ से उन्हे धो लेता हूं मैं…
लोग तो समझते हैं खुश मिजाज मुझे,
अकेले में चुपके से रो लेता हूं मैं…
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