रूपेश कुमार की कविता : यूं गरीबी का मज़ाक ना बनाओ

” यूं गरीबी का मज़ाक ना बनाओ मुट्ठी भर अनाज देकर फ़ोटो ना खिंचवाओ ।।

मंगू की व्यथा… (व्यंग्य कथा) : विनय कुमार

सुबह-सुबह अखबार में खबर छपी थी, जिसमें सरकार ने घोषणा की है कि लॉकडाउन के

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मौत से डर के जीना छोड़ दोगे ( व्यंग्य कथा ) : डॉ. लोक सेतिया

शीर्षक से समझ सकते हैं ” करो- ना ” का उल्टा है ना करो। कुछ

अजय तिवारी “शिवदान” की कविता : प्रकृति से वार्तालाप

मैंने पूछा प्रकृति से कि क्यों कुपित हो गई हो? मुझको जवाब मिला , मानव

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मनोज कुमार रजक की कविता : यह कैसी घड़ी आई?

धरती पर यह कैसी घड़ी आई है, चारों तरफ पसरा है सन्नाटा, किसे अभी यहाँ

संचिता सक्सेना की कविता : क्या एक मात्र समाधान था ?

खुद को मार के मर तो जाओगे, क्या अपनी मजबूरियां मार पाओगे, तेरे पीछे उन

साहित्यिक लघु पत्रिकाएं: आंधी-तूफान में बजती डुगडुगी

अगर आप साहित्यिक पत्रिका हंस के दरियागंज स्थित दफ्तर में राजेंद्र यादव के कमरे में