दिनेश लाल साव की कविता : संघर्ष

घनी अंधेरी रातों में उड़ते देखा है जूगनू को, लघु दीप का पुंज लिए उड़ती

कोरोना पर सुनिता की कविता : बेबसी और मानवता

ऊंची इमारतें, नीला आसमान चौड़ी सड़के हैं सुनसान बमुश्किल मिल रही रोटी बासी देश कोरोना

गधों का अखिल भारतीय सम्मेलन ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया

सभी गधे ख़ुशी से झूम रहे हैं गा रहे हैं , अपना  राग सुना रहे

बिनोद कुमार रजक की कविता : कोरोना का कटघरे में साक्षात्कार 

कोरोना आप कटघरे में आ गए क्या कहना है? कैसा महसुस कर रहे हैं? सवाल

समझ नहीं आती लगती खूबसूरत ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया 

आपने महाभारत सीरियल देखा या नहीं , कुछ देखते हैं कुछ नहीं देखते हैं जो

रूपेश कुमार की कविता : यूं गरीबी का मज़ाक ना बनाओ

” यूं गरीबी का मज़ाक ना बनाओ मुट्ठी भर अनाज देकर फ़ोटो ना खिंचवाओ ।।

मंगू की व्यथा… (व्यंग्य कथा) : विनय कुमार

सुबह-सुबह अखबार में खबर छपी थी, जिसमें सरकार ने घोषणा की है कि लॉकडाउन के

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मौत से डर के जीना छोड़ दोगे ( व्यंग्य कथा ) : डॉ. लोक सेतिया

शीर्षक से समझ सकते हैं ” करो- ना ” का उल्टा है ना करो। कुछ

अजय तिवारी “शिवदान” की कविता : प्रकृति से वार्तालाप

मैंने पूछा प्रकृति से कि क्यों कुपित हो गई हो? मुझको जवाब मिला , मानव

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मनोज कुमार रजक की कविता : यह कैसी घड़ी आई?

धरती पर यह कैसी घड़ी आई है, चारों तरफ पसरा है सन्नाटा, किसे अभी यहाँ