प्रेमचंद की 140वीं जयंती पर विशेष : शोषण के तिलिस्म को तोड़ते – मुंशी प्रेमचंद
प्रेमचंद के पूर्व जिस तरह के साहित्य लिखे जा रहे थे, उनके मूल में कल्पना
तारकेश कुमार ओझा की कविता : “घर में रहता हूं”
“घर में रहता हूं” लॉक डाउन है, इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
रिया सिंह की कविता : “जगत जननी”
“जगत जननी” जिसके सपने टूट कर भी, एक आशा लेकर जारी है गुणों से युक्त
तारकेश कुमार ओझा की कविता : “खुली आंखों का सपना”
खुली आंखों का सपना ….!! सुबह वाली लोकल पकड़ी पहुंच गया
तरक़ीब (लघुकथा) : – हरभगवान चावला
बतौर गणित अध्यापक चयनित होने के बाद राजबीर की पहली नियुक्ति राजकीय उच्च विद्यालय जनपुरा
कोरोना काल में देश की वर्तमान परिस्थितियों पर पेश है खांटी खड़गपुरिया की चंद लाइनें ….
सड़कें हैं, सवार नहीं ….!! बड़ी मारक है, वक्त की मार हिंद में मचा यूं
विकास लापता सुरक्षा घायल ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया
जहां कहीं भी हो देश की व्यवस्था को तुम्हारी तलाश है। खोजने वाले को ईनाम
लाज का घूंघट खोल दो ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया
खुद को अपराध न्याय सुरक्षा सामाजिक सरोकार के जानकर सभी कुछ समझने वाले बतलाने वाले
रिया सिंह की कविता : “गौ हत्या”
“गौ हत्या” पाप से तुमको डर नहीं लगता? इतना सच सच कहना तुम। हे मनुष्य
गणिका डाकू और सिपहसलार (व्यंग्य-कथा) : डॉ लोक सेतिया
जाने कितने आशिक़ थे उस के जो उसकी अदाओं पर फ़िदा थे। उसका नाच देखते