रिया सिंह की कविता : “हे प्रभु”
“हे प्रभु” क्या मिट जाएगा देश हमारा? वर्षों से जो हमको प्यारा, क्या रैन अब
बाज़ीगर जादूगर सौदागर छलिया (व्यंग्य) : डॉ लोक सेतिया
एक भी अनेक भी जैसे कोई ठगने वालों की टोली हो। आपको ये सभी काल्पनिक
खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज में वेब संगोष्ठी एवं काव्यपाठ
कोलकाता : कोलकाता के प्रतिष्ठित कॉलेज खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की ओर से वेब संगोष्ठी
एक बाबा मांगते सभी देश ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया
उनको उम्मीद थी भरोसा था यकीन था कोरोना की दवा की खोज की खबर का
हिन्दी के अनन्य साधक : आचार्य ललिता प्रसाद सुकुल
आज के समय के बौद्धिक की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वह सोचता कुछ
इस महामारी ने वैश्वीकरण को मजबूत किया है या कमजोर (आलेख) : रिया सिंह
आज बात जब पूरे विश्व की है तो यहां किसी एक परिणाम पर पहुंचना तर्कसंगत
जनाब सच सच बोलो नहीं कुछ भी छिपाना है ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया
सियासत की आदत होती है बताते कम हैं छिपाते ज़्यादा हैं। मगर ये क्या सभी
कहा झूठ ने यही सच है ( व्यंग्य ) : डॉ लोक सेतिया
देश आत्मनिर्भर है झूठ को लेकर अब आयात की ज़रूरत नहीं है कोई खरीदार विदेश
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रिया सिंह की कविता : “देश हमारा”
“देश हमारा” थम सा गया है देश हमारा जाने किस बीमारी ने है पैर पसारा
रिया सिंह की कविता : “चित्”
“चित्” चित् में जितने ग़म थे, सब ओझल से हो गए जब कुछ दर्द उभर