अनु नेवटिया, कोलकाता : साहित्यिक संस्था पोथी बस्ता द्वारा ZOOM ऐप पर आयोजित कार्यक्रम “मनमर्ज़ियाँ, महिला दिवस पर केंद्रित रहा। इस कार्यक्रम में करिश्मा खन्ना प्रियदर्शी (समाज सेविका, युवा नेत्री व भूतपूर्व पत्रकार), कुसुम अग्रवाल (फिटनेस इन्फ्लुएंसर, रनर्स ग्रुप की एडमिन व योग एक्सपर्ट) एनी दास (मॉडल, थिएटर आर्टिस्ट, लॉ स्टूडेंट) व अद्रिता खान (सोशल इन्फ्लुएंसर, एंटरटेनर, मेकअप वीडियोस क्रिएटर) की सहभागिता रही।
कार्यक्रम में महिलाओं से जुड़े अलग-अलग विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें मुख्य रूप से – महिला सशक्तिकरण के असल मायने, आधुनिकता के दौर में महिलाओं का संघर्ष, महिला सशक्तिकरण में पुरुषों का योगदान, वर्किंग लेडी और हाउस वाइफ के बारे में लोगों की अवधारणा, महिलाओं के कपड़ों व उनके काम पर टिप्पणियां करने वाले समाज की मानसिकता आदि जैसे विषयों को शामिल किया गया।
आगंतुक सभी सहभागी महिला अतिथियों ने इन सभी विषयों से जुड़े सवालों पर खुलकर अपने विचार रखे व अपना अनुभव भी साझा किया। सभी ने अपने जीवन पथ की चुनौतियों को पार कर कैसे उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनायी, अपने इस संघर्षशील सफर से सभी को अवगत करवाया और प्रेरित भी किया।
परिवार में महिलाओं और पुरूषों के बीच घरेलू ज़िम्मेदारियों के बटवारे पर करिश्मा जी का कहना था कि हम अपने बेटे और बेटियों दोनों को ही यह सिखाने और समझाने की कोशिश करें कि घर और बाहर दोनों के ही काम महत्वपूर्ण है, यदि लड़के घर का काम नहीं कर पाते हैं तो कहीं न कहीं वे लड़कियों से खुद को कमजोर साबित कर रहे हैं, बचपन से ऐसी सोच बच्चों को न सिर्फ दोनों ही जिम्मेदारियां निभाने को प्रेरित करेगी अपितु नयी पीढियों में लड़का लड़की का भेद भाव भी पाटने का काम करेगी।
महिलाओं के परिधान व उनके आचरण पर सवाल उठाने वाले समाज के चंद लोगों के बारे में एनी जी का कहना था कि वे ऐसे लोगों को समाज का हिस्सा मानती ही नहीं जो महिलाओं के परिधान पर टीका टिप्पणी करते हैं और उनके रहन सहन को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं ऐसे लोगों को नजरअंदाज करना ही वो बेहतर समझती हैं।
महिला सशक्तिकरण में पुरुषों के योगदान पर कुसम जी का मानना है कि उनके पति से उन्हें पूरा सहयोग हमेशा ही मिला है लेकिन जहाँ तक घर के काम काज के ज़िम्मेदारियों का प्रश्न है, अभी भी ऐसी जिम्मेदारी पूरी तरह से बँटी नहीं है, अब तक यह उनके ही कंधों पर है, उनका यह भी कहना था कि घर की ज़िम्मेदारी के साथ ही हर एक महिला को खुद की पहचान के लिए कुछ और जो उनकी पसंद का हो, करना भी बेहद आवश्यक है। इसके लिए सभी महिलाओं को संघर्षशील और प्रयत्नशील रहना चाहिए।
महिलाओं के पुरुष मित्रों के बारे में अद्रिता जी का कहना है कि दिल से दोस्ती किसी के साथ भी हो सकती है चाहे वो महिला हो या पुरुष, पर समाज आज भी इसे सहजता से नहीं लेता है, ऐसी मानसिकता को बदलने की जरूरत है। महिला सशक्तिकरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है? सभी आगंतुक सहभागी महिलाओं से यह सवाल पूछे जाने पर – शिक्षा और आत्म निर्भरता पर सभी ने ज़ोर दिया और समाज को भी यह सन्देश दिया कि महिलाओं को देवी नहीं बस इंसान समझा जाए।
कार्यक्रम का सफल संचालन रितिका नेवटिया व अनु नेवटिया ने संयुक्त रूप से किया। पोथी बस्ता टीम के सक्रिय सदस्य अमित कुमार अम्बष्ठा “आमिली”, अनुराधा सिंह, अजय कुमार झा, नवीन कुमार सिंह व सरिता खोवाला ने भी इस कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। करिश्मा जी की महिला दिवस पर लिखी एक कविता से इस कार्यक्रम का समापन हुआ।