विनय सिंह बैस की कलम से… शिक्षक दिवस पर विशेष

नई दिल्ली । श्री हरिद्वार सिंह (पूर्व प्रधानाध्यापक, इंटर कॉलेज विष्णुखेड़ा) पापा के सहकर्मी और घनिष्ठ मित्र थे। मेरे लिए भी वह गुरु और पितातुल्य दोनो थे। पापा के साथ 15 अगस्त और 26 जनवरी को एक-दो बार उनके विद्यालय जाने का सौभाग्य मिला तो श्री हरिद्वार सिंह की सहजता, सरलता और अपनापन देखकर मन प्रसन्न हो जाता था। वह राष्ट्रीय स्वयं संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन से जुड़े थे इसलिए सादा जीवन और उच्च व्यवहार में विश्वास रखते थे। साधारण पहनावा, सौम्य और शालीन व्यवहार उनके व्यक्तित्व की पहचान थी।

कभी किसी काम से लालगंज आना होता तो गुरुजी हमारे घर भी आ जाते। पापा के साथ बैठकर नाश्ता-पानी करते और हम बच्चों को आशीर्वाद देकर जाते। एक बार किसी कार्य से गुरुजी अवकाश के दिन लालगंज आए हुए थे, तो घर आ गए। दोपहर का समय था। वह पापा से बोले -“बाबा आज दोपहर का भोजन आपके साथ ही होगा।”
(बताते चलें कि पापा के सारे केश सफेद होने के कारण विद्यालय के सभी शिक्षक पापा को ‘बाबा’ ही बोलते थे।)

पापा तो खैर प्रसन्न ही हो गए। उन्होंने मुझे बुलाकर घर जाकर अम्मा को बताने के लिए कहा कि मास्टर साहब भी साथ ही भोजन करेंगे। यह सुनते ही अम्मा टेंशन में आ गई क्योंकि तब तक दोपहर का भोजन तैयार हो चुका था और उस दिन भोजन भी अत्यंत साधारण ही बना था। गुरुजी को यह अति साधारण भोजन कैसे परोसा जाए, यह सोचकर अम्मा चिंतित हो उठी।

उन्होंने पापा को घर बुलवाया और बोली कि अभी थोड़ी देर रुक जाओ कोई अच्छी सब्जी बना लेती हूँ फिर आप दोनों भोजन के लिए आना। हालांकि पापा ने अम्मा को समझाने की कोशिश की कि मास्टर साहब कोई मेहमान नहीं हैं। वैसे भी वह सात्विक भोजन करते हैं इसलिए जो कुछ घर में बना है, वह खा लेंगे। लेकिन अम्मा का मन न माना। वह बोली कि बस आधा घंटा का समय दो, तब तक मैं कुछ अच्छा बना लूंगी।

पापा ने बाहर आकर गुरुजी से कहा कि हम आधा घंटे बाद भोजन करेंगे। यह सुनते ही ने गुरुजी ने भांप लिया कि उनके लिए कुछ विशेष बनाने की तैयारी हो रही है। उन्होंने तुरंत ही अम्मा को बाहर के कमरे में बुलवाया और पूछा :- “भाभी, क्या आपने घर के बाकी सदस्यों के लिए आज दोपहर का भोजन नहीं बनाया है?”

अम्मा बोली :- “बनाया तो है लेकिन कुछ खास नहीं बना है। यह साधारण भोजन आपको देते हुए संकोच हो रहा था, इसलिए कुछ और बनाने जा रही थी।”

गुरुजी बोले :- “भाभी जी!! जब कभी भी मैं यहां आऊं, आपने जो भी रूखा-सूखा बनाया हुआ है, उसमें दो रोटी मेरी और बढ़ा लो। यही मेरा मान और सत्कार होगा। अगर मेरे लिए आपने अलग से कुछ व्यवस्था की, तो मैं यह समझूंगा कि मैं कोई मेहमान हूँ और आप पर बोझ बन रहा हूं। ऐसा हुआ तो मैं फिर दोबारा कभी घर नहीं आऊंगा।”

गुरु जी के इस भावपूर्ण आग्रह पर अम्मा निरुत्तर हो गई। फिर गुरुजी को वही साधारण भोजन परोसा गया और उन्होंने बड़े चाव से खाया भी।

अपनी शिक्षा और वाणी से ही नहीं बल्कि अपने कर्मों से भी समाज में आदर्श स्थापित करने वाले श्री हरिद्वार सिंह जैसे तमाम गुरुजनों को शिक्षक दिवस पर हार्दिक नमन।

Vinay Singh
विनय सिंह बैस

#teachersday

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

13 + 2 =