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भारत सहित यूरोप के किसान आंदोलन की राह पर जाने को क्यों मजबूर?

भारत के तीन केंद्रीय मंत्री, तो यूरोपीय संघ के 27 देशों के कृषि मंत्री मिलकर किसानों की समस्या सुलझाने में लगे
विश्व में किसानों के आंदोलन की वजह, उन्हें खेती के फसलों की उचित कीमत नहीं मिलना है, जिसका समाधान निकालना समय की मांग है – एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत ही नहीं, कई अन्य देशों में भी कृषि संबंधित कई मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। एक तरफ जहां भारत में किसान एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं, तो वहीं रोम के किसान आर्थिक और हरित नीतियों (ग्रीन पॉलीसी) को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत समेत दुनियां के अनेक देशों में किसानों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है किसानों के महत्व का मूल्यांकन हर देश अच्छी तरह से समझता है, क्योंकि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था व विकास में किसानों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। परंतु लंबे समय से हम देख रहे हैं कि इन्हीं किसानों को अपनी समस्याओं के लिए लंबा जद्दोजहद करना पड़ता है, जो हम भारत में पिछले सालों एक लंबा आंदोलन देख चुके हैं, जिसनें सरकार को भी हिला दिया था फिर एमएसपी का समाधान करने का आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त कर दिया गया था, जिसका अभी तक किसानों में समाधान नहीं दिख रहा है। वहीं तेज आंदोलन की सुगबुगाहट उठ रही है।

जब कि लोकसभा चुनाव सर पर हैं। परंतु ऐसी चिंगारी अभी यूरोपीय देशों में हमें पिछले कुछ दिनों से देखने को मिल रही है। यूरोपियन यूनियन के कई देश फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, रोमानिया सहित अनेक देशों में किसान आंदोलन ने जोर पकड़ा है। अनेक यूरोपीय देशों में पर्यावरण अनुकूल नीतियों से परेशानी, रूस यूक्रेन युद्ध से बदली कुछ नीतियां, करों में बेतहाशा बढ़ोतरी, मुक्त व्यापार समझौता में सस्ता विदेशी माल आयात करने, गैस बिजली की बढ़ती कीमतों, जलवायु परिवर्तन संबंधी सख्त नियमों से किसानो को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, इस आंदोलन में सामान्य व्यक्ति भी शामिल हो गए हैं। करीब 89 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल होने की बात की जा रही है, जिसपर सरकार भी सकते में है। चूंकि भारतीय किसान आंदोलन की तर्ज पर यूरोप के कई देशों में किसान आंदोलन उफान पर है इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, वैश्विक स्तर पर अन्नदाता किसानों की समस्याओं पर मंथन कर चार्टर बनाना समय की मांग है।

साथियों बात अगर हम भारत में किसान आंदोलन की करें तो, दिल्ली कूच मोर्चा के मद्देनजर सुनाम, मूनक, खनौरी इलाके में बंद की गई इंटरनेट सेवा को आज 16 दिन का समय हो गया है, जिस कारण न केवल दुकानदारों व कारोबारियों का कामकाज प्रभावित हो रहा है, बल्कि सुविधा केंद्र, सांझ केंद्र, स्कूलों का कामकाज भी ठप पड़ा हुआ है। पंजाब में किसान और केंद्र की खींचतान से आम लोगों की दिक्‍कतें बढ़ गई है। कई जिलों में इंटरनेट बंद होने से लोगों के जरूरी कामकाज ठप पड़े हैं। लोग अपना कामकाज करवाने के लिए सरकारी दफ्तरों में जाते हैं लेकिन इंटरनेट सेवा बंद होने के कारण इन केंद्रों में कोई काम नहीं हो रहा है व लोग मायूस होकर वापस लौट रहे हैं। सरकारी व प्राइवेट स्कूलों के बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई तो दूर, अपनी परीक्षा की तैयारी के लिए ऑनलाइन जानकारी भी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं। सुविधा व सांझ केंद्र से संबंधित रोजमर्रा के जरूरी काम भी लोगों के नहीं हो रहे हैं।

साथियों बात अगर हम यूरोपीय यूनियन के 27 देशों के किसान आंदोलन की करें तो, सोमवार को ब्रसेल्स और मैड्रिड में किसानों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया। किसानों पर दबाव कम करने के लिए कृषि मंत्री यूरोपीय संघ के प्रस्तावों के एक नए सेट पर बहस करने के लिए तैयार थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पानी की बौछार की। करीब 900 ट्रैक्टरों के साथ पहुंचे किसानों ने ब्रसेल्स के कुछ हिस्सों को जाम कर दिया। सुपरमार्केट में सस्ती कीमतों और मुक्त व्यापार सौदों के खिलाफ कदम उठाने की मांग को लेकर किसानों ने सोमवार को ब्रसेल्स और मैड्रिड में विरोध प्रदर्शन किया। वह यूरोपीय संघ मुख्यालय के बाहर एकत्र हुए और प्रदर्शन किया। मुख्यालय के मुख्य प्रवेश बिंदुओं पर लगाए गए बैरिकेड्स के पास पुलिस गश्त कर रही थी, जहां 27 देशों के कृषि मंत्री एकत्र हुए थे। किसानों पर दबाव कम करने के लिए कृषि मंत्री यूरोपीय संघ के प्रस्तावों के एक नए सेट पर बहस करने के लिए तैयार थे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पानी की बौछार की। करीब 900 ट्रैक्टरों के साथ पहुंचे किसानों ने ब्रसेल्स के कुछ हिस्सों को जाम कर दिया। यह उस क्षेत्र से थोड़ी ही दूर थे, जहां मंत्री बैठक कर रहे थे। पूरे यूरोप में किसान हफ्तों से कर रहे विरोध प्रदर्शन पूरे यूरोप में किसान हफ्तों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और नीति निर्माताओं से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

इस बीच सोमवार को मैड्रिड में भी प्रदर्शन हुआ। स्पेन के किसानों ने यूरोपीय संघ से लाल फीताशाही को खत्म करने और कामन एग्रीकल्चर पालिसी (सीएपी) में कुछ बदलाव का आग्रह किया। अनाज और चुकंदर उगाने वाले किसान ने कहा कि इन नियमों को बर्दाश्त करना असंभव है। वे चाहते हैं कि हम दिन में खेत पर काम करें और रात में कागजी काम निपटाएं। हम इससे तंग आ चुके हैं। 46 वर्षीय किसान ने कहा कि नया सीएपी हमारे जीवन को बर्बाद कर रहा है। हम वैसे ही उत्पादन करना चाहते हैं, जैसे हमेशा करते आए हैं, लेकिन वे नहीं चाहते कि हम उत्पादन करें। यूरोपीय देशों में किसान संगठन नाराज चल रहे हैं। किसानों का आरोप है कि उन्हें खेती के लिए अच्छे पैसे नहीं मिल रहे हैं। साथ ही उन पर टैक्स लादे जा रहे हैं। पर्यावरण संबंधी प्रतिबंधों ने उन्हें और परेशान कर दिया है। यूरोप के किसानों की ये भी शिकायत है कि उन्हें विदेश से कड़ी प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ रहा है। खासकर यूक्रेन से आने वाले सस्ते आयात से उनकी परेशानी कई गुना बढ़ गई है। बता दें कि रूस यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोपीय देशों ने यूक्रेन से आने वाले कृषि आयात को कई छूट दी हैं, जिससे यूक्रेन समेत अन्य देशों से सस्ती कृषि उपज यूरोप के बाजारों में आ रही है, जिससे स्थानीय किसानों को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है इससे वे नाराज हैं। बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में करीब एक हजार ट्रैक्टर्स सड़कों पर उतरे। किसान यूरोपीय यूनियन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि उनकी परेशानी पर भी ध्यान दिया जाए और उनके लिए आर्थिक मदद का एलान किया जाए।

गौरतलब है कि प्रदर्शन के बाद बेल्जियम के पीएम ने भी किसानों की परेशानियों पर चिंता जाहिर की है और इस मुद्दे पर चर्चा की बात कही है। साथ ही उन्होंने कहा कि पर्यावरण बचाने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनमें कोशिश होनी चाहिए कि किसान बुरी तरह प्रभावित न हो। हाल के दिनों इटली, स्पेन, रोमानिया, पोलैंड, जर्मन पुर्तगाल और नीदरलैंड में भी किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं। फ्रांस की सरकार ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए उनके लिए आर्थिक मदद का एलान भी किया है। यूरोपीय संघ में भी यूक्रेन से सस्ते कृषि उत्पादों के आयात पर रोक लगाने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है। बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स में करीब एक हजार ट्रैक्टर्स सड़कों पर उतरे। किसान यूरोपीय यूनियन पर दबाव बनाने कीकोशिश कर रहे हैं ताकि उनकी परेशानी पर भी ध्यान दिया जाए और उनके लिए आर्थिक मदद का एलान किया जाए। गौरतलब है कि प्रदर्शन के बाद बेल्जियम के पीएम ने भी किसानों की परेशानियों पर चिंता जाहिर की है और इस मुद्दे पर चर्चा की बात कही है। साथ ही उन्होंने कहा कि पर्यावरण बचाने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनमें कोशिश होनी चाहिए कि किसान बुरी तरह प्रभावित न हो। हाल के दिनों इटली, स्पेन, रोमानिया, पोलैंड, जर्मनी, पुर्तगाल और नीदरलैंड में भी किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं। फ्रांस की सरकार ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए उनके लिए आर्थिक मदद का एलान भी किया है। यूरोपीय संघ में भी यूक्रेन से सस्ते कृषि उत्पादों के आयात पर रोक लगाने के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।

साथियों बात अगर हम किसानों की मुख्य मांगों की करें तो,
(1) किसानों की सबसे खास मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून बनना है।
(2) किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं।
(3) आंदोलन में शामिल किसान कृषि ऋण माफ करने की मांग भी कर रहे हैं।
(4) किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं।
(5) भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकाला जाए।
(6) कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए।
(7) किसानों और 58 साल से अधिक आयु के कृषि मजदूरों के लिए पेंशन योजना लागू करके 10 हजार रुपए प्रति माह पेंशन दी जाए।
(8) प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी फसलों को योजना का हिस्सा बनाना और नुकसान का आकलन करते समय खेत एकड़ को एक इकाई के रूप में मानकर नुकसान का आकलन करना।
(9) भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाना चाहिए।
(10) कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत सहित यूरोप केकिसान आंदोलन की राह पर जाने पर क्यों मजबूर? भारत के तीन केंद्रीय मंत्री तो यूरोपीय संघ के 27 देशों के कृषिमंत्री मिलकर किसानों की समस्या सुलझाने में लगे हैं।विश्व में किसानों के आंदोलन की वजह उन्हें खेती के फसलों की उचित कीमत नहीं मिलना है, जिसका समाधान निकालना समय की मांग है।

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