नागरी लिपि हिंदी मानकीकरण का वैज्ञानिक पहलू विषयक वेब संगोष्ठी संपन्न

नई दिल्ली। नागरी लिपि हिंदी मानकीकरण का वैज्ञानिक पहलू विषयक वेब संगोष्ठी आज अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल रही। डॉ. प्रेमचंद्र पातंजलि की अध्यक्षता, डॉ. हरिसिंह पाल के सानिध्य और डॉ. मोहन बहुगुणा के कुशल संचालन में संपन्न आज की वेब संगोष्ठी में देश-विदेश के अनेक विद्वानों के शामिल होने से यह एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी बन गई। चर्चा सत्र के प्रथम वक्ता डॉ. उमाकांत खुबालकर ने नागरी लिपि परिषद की स्थापना वर्ष और उद्देश्यों तथा प्रगति पर प्रकाश डालते हुए सांस्थानिक रूप से नागरी के पक्ष में घटी घटनाओं की भी चर्चा की। प्रोफ़ेसर वी.रा. जगन्नाथन ने मुख्य वक्ता के रूप में बहुत ही प्रभावशाली वक्तव्य दिया। उन्होंने नागरी लिपि के प्रयोग में हो रही आम असावधानियों पर प्रकाश डालते हुए इसके मानकीकरण के लिए हिंदी में एक अधिकरण स्थापित किए जाने की आवश्यकता बताई।

उन्होंने तमिल, तेलुगू, मलयालम आदि भाषाओं और उनकी लिपियों से हिंदी देवनागरी की तुलना करते हुए अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की तरफ ध्यान आकृष्ट किया। अनुस्वार, पंचम वर्ण, आनुनासिक्य ध्वनि, संयुक्त व्यंजन के प्रयोग संबंधी भ्रांतियों का निवारण करते हुए उन्होंने स्पष्ट कहा कि बिना मानक स्वरूप स्थापित किए हिंदी वर्तनी और व्याकरण की सही सही जांच नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि देवनागरी केवल हिंदी की ही नहीं, अनेक भारतीय भाषाओं की लिपि है, इसलिए हिंदी के मानकीकरण के समय समस्त भारतीय भाषाओं की ध्वनियों और विशेषताओं को ध्यान में रखना होगा। हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं की प्रतिद्वंद्वी नहीं, सहचरिणी है। अंत में उन्होंने हिंदी को भारत की संपर्क भाषा बनाए जाने का सुझाव दिया।

भाषाविद डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने अपने प्रभावशाली वक्तव्य में नागरी लिपि से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में लाते हुए कहा कि देवनागरी लिपि का प्रत्येक वर्ण एक शक्तिशाली मंत्र है। विश्व में ऐसा अन्यत्र कहीं नहीं है। हिंदी और देवनागरी के मानकीकरण के विभिन्न प्रयासों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मे अब तक 26 के 26 वर्ण ही बने हुए हैं, जबकि हिंदी में निरंतर सुधार और परिष्कार होता रहता है। उन्होंने हिंदी का रोमनीकरण होने से बचाने का आह्वान भी किया क्योंकि देवनागरी हमारी राष्ट्रलिपि है।

नागरी लिपि परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री, ‘नागरी संगम’ पत्रिका के सम्पादक और कार्यक्रम-संयोजक डॉ. हरिसिंह पाल ने विश्वनागरी की संकल्पना प्रस्तुत करते हुए उदाहरण दिया कि तेलुगू लिपि बहुत सरल है फिर भी आंध्र में तेलुगु माध्यम के बजाय अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय ही आजकल ज्यादा खुल रहे हैं। यही हाल देश भर की भाषाओं का है। नई शिक्षा नीति 2020 समस्त भारतीय भाषाओं और उनकी लिपियों को संरक्षण देने की बात करती है। उन्होंने कहा कि देवनागरी वर्णमाला का वर्गीकरण वैज्ञानिक है इसे विदेशी विद्वानों ने भी स्वीकार किया है। कहा कि आज बिना किसी सरकारी सहायता के भी नागरी लिपि परिषद नागरिकों हिंदी सेवियों और शोधार्थियों व शिक्षकों के अनन्य सहयोग से अपने दायित्वों का निर्वहन करने में सक्षम बनी हुई है।

उन्होंने सुझाव दिया कि केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा प्रकाशित नागरी लिपि मानकीकृत पुस्तिका का वितरण सभी सरकारी कार्यालयों, पुस्तकालयों, विद्यालयों, शोधकेंद्रों व अन्य संस्थानों तथा विद्यार्थियों के बीच सुलभ कराई जानी चाहिए। साथ ही विभिन्न राज्य सरकारों के साथ नागरी लिपि संबंधी समन्वित नीतियों के निर्धारण का प्रयत्न करना चाहिए। अध्यक्षता कर रहे विद्वान भाषाविद डॉ. प्रेमचंद पातंजलि के सारगर्भित उद्बोधन के बाद अरुण जी ने अभ्यागतों तथा विद्वानों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रश्न सत्र में मनीषी वक्ताओं ने अनेक भाषाकर्मियों और अध्येताओं के नागरी लिपि से संबंधित संशयों और प्रश्नों का बड़ी बेबाकी से उत्तर दिया। डॉ. हरिसिंह पाल जी के सानिध्य में यह आयोजन सफल रहा।

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