ढूंढो ढूंढो ढूंढो चौकीदारों को ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

कुछ दिन महीने या साल भर पहले कितने लोग चौकीदार होने को गौरव की बात समझते थे। मैं भी चौकीदार बतलाने वालों से फेसबुक भरी रहती थी। अचानक याद आया तो ढूंढने पर कोई नहीं मिला कल मुझे जाने उन सभी को हुआ क्या। छुट्टी न कोई हड़ताल कोई तो करो पड़ताल कहां सब चले गए क्या कोई वेतन का झगड़ा था या कोई चोर पुलिस का लफड़ा क्या हुआ कुछ तो राज़ है छुपा हुआ।

कुकरमुत्ते की तरह उनकी फसल फैलती जाती थी ख़त्म कैसे हुई लहलहाती फसल। ये घर बिना चौकीदार सजता नहीं हम क्या करें कोई होना चाहिए रात भर जागते रहो की आवाज़ लगाने को। भगवान न करे कहीं कोई अनहोनी तो नहीं हुई जैसे कोई ऐसी नशीली हवा चली जो सभी चौकीदार गहरी नींद में सो गए।

मालूम नहीं उनका कौन सा विभाग है जिस से जाकर सूचना के अधिकार का उपयोग कर जानकारी हासिल की जा सकती है। सबसे पहले जिसने खुद को देश का चौकीदार बताया था उसी को अपने भाई बंधुओं की खोज खबर लेनी चाहिए। इक दिन किसी कॉमेडी शो में कोई खिलाड़ी से हास्य जगत में आने के बाद राजनीति में चले जाने वाले बंदे ने सरदार जी ने बताया था उनको इक नेता ने समझाया था कि जिन तिजोरियों के खज़ाने लुट जाते हैं उन पर कोई ताले नहीं लगाता है।

ये वही कहानी तो नहीं कि जब देश का खज़ाना लुट चुका तब चौकीदार को हटा दिया गया कहकर कि रखवाली किस की करोगे जब रखवाली करने को कुछ बचा ही नहीं तब वेतन कहां से मिलेगा। शायद ये स्थाई नौकरी नहीं थी ठेके पर निर्धारित समय को नियुक्ति हुई थी और समय गुज़रते ही अनुबंध खत्म।

ऐसे में मामला बेरोज़गार होने का बनता है इतने लोग चौकीदार के पद पर नियुक्त थे उनकी क्या दशा होगी कोई तो उनकी चिंता करे। चोर और पुलिस का खेल चौकीदार के बगैर कैसे चलेगा। फेसबुक पर इक ऐसे दोस्त की पुरानी डी पी दिखाई दी तो उसको संदेश भेजा क्या हुआ आपकी सारी बिरादरी ठीक तो है। जवाब आया आपको संसदीय भाषा में बात करनी चाहिए अन्यथा मुझे आपको मानहानि का नोटिस भेजना पड़ेगा।

मैंने हैरान होकर पूछा क्या असभ्य शब्द मैंने उपयोग किया है तो कहने लगे सब जानते हैं अब ये चौकीदार शब्द गंदी गाली बन चुका है इसका उच्चारण नहीं किया जाना चाहिए। मुझे बिटिया ने समझाया हुआ है पापा जी वकील से कभी बहस नहीं करना जीत कर भी घाटे में रहोगे। मैंने पूछा वो कैसे तो बेटी जो वकालत करती है बोली पहले मेरी फीस दो फिर सलाह मिलेगी।

बात समझ आ ही गई। लेकिन जाने क्यों मुझे चौकीदारों को ढूंढना ज़रूरी लगता है मेरा निवेदन है जिस किसी को खबर है कौन कौन चौकीदार था या खुद ही जो चौकीदार कहलाने को शान समझते थे वो भी पूरी जानकारी मुझे उपलब्ध करवाने की अनुकंपा करें क्योंकि असंगठित बेरोज़गार लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का मेरा मकसद है। किसी का बकाया वेतन या फिर हटाने पर मिलने वाला मुआवज़ा बकाया होगा ज़रूर भला उनका शोषण कैसे किया जा सकता है।

आपको अपना नाम दर्ज करवाना चाहिए ये आपको भविष्य में पूर्ण सुरक्षा दे सकता है। पंजीकरण बेहद आसान है आपको अपनी फेसबुक पर लिखना होगा ” मैं भी चौकीदार नहीं हूं ” जैसे पहले होने का ऐलान किया था बस उसी तरह से ही। भले आपने अपना दल बदल लिया हो दिल बदल गया हो या भीतर से ही आपकी आत्मा ने आपको समझाया हो तब भी आपने जितने कार्यकाल तक सेवा दी है चौकीदार बनकर आप को उतना ही वेतन मिलना चाहिए सभी सुविधाओं के साथ जितना पहला खुद को चौकीदार बताने वाला लेता रहा है और अभी भी ले ही रहा है।

जब उसने खुद को चौकीदार कहना छोड़ने के बाद भी उस लाभ के पद के फायदे उठाना नहीं छोड़ा तब आपको क्या ज़रूरत है अपने हक को छोड़ने की ये कोई सौ दो सौ रूपये की रसोई गैस की सब्सिडी नहीं है लाखों नहीं करोड़ों की बात है। आपको दिल्ली जाना चाहिए सब मांगे अपनी मनवाने को जैसे महमूद मेहरबान फिल्म में अपने गधे को सभी गधों का लीडर बनाकर जाने का संदेश दे रहे हैं।

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