सत्ता का हम्माम सभी एक समान ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

हमारे ही देश की नहीं दुनिया भर की आम जनता की तकदीर यही है। उसको चाहत होती है नायक की मगर नसीब में ख़लनायक मिलना लिखा है। शराफ़त ईमानदारी जनसेवा देशभक्ति राजनेताओं के मुखौटे हैं बाहरी दिखावे को हाथी के दांत की   तरह शासन की बागडोर मिलते ही असलियत बाहर निकलती है और तब सब    इक जैसे बन जाते हैं।

सत्ता उनकी महबूबा है सत्ता उनकी चाहत है सत्ता मिलने के बाद उसको खोना कोई भी नहीं चाहता जबकि वास्तव में सत्ता कभी किसी की नहीं होती है सत्ता और कुर्सी बड़ी बेरहम होती है पल भर में इक को ठुकरा दूसरे को अपना लेते हैं।
सत्ता का नशा चढ़ता है तो हर शासक समझने लगता है वही है, जो सबसे अच्छा और महान है और खुद को मसीहा भगवान घोषित करवाने को किसी भी सीमा तक जाने को तैयार रहते हैं। दुनिया दो हिस्सों में विभाजित है शासक वर्ग और शासित वर्ग जनता ये दो किनारे हैं जो इक साथ चलते हैं मगर मिलते नहीं कभी भी।
नदी के दो किनारे बीच में बहता पानी जो सत्ता की ताकत और मर्ज़ी से किसी की प्यास बुझाता है किसी को जीवन भर प्यासा रखता है। नदी या तो किसी रेगिस्तान में पहुंच कर सूख जाती है तब किनारे किनारे नहीं रहते या फिर कहीं समंदर में मिल जाती है और अपनी मिठास खो कर नेताओं की तरह खारी हो जाती है और विशाल भी।
विश्व में सभी देश समंदर की मछलियों की तरह आचरण करते हैं उनको बहुत विस्तार मिलता है फिर भी इधर उधर दायरा बढ़ाने की लालसा होती है। बड़ी मछली छोटी को हज़्म कर जाती है मगरमच्छ से सबकी दोस्ती होती है। कौन मगरमच्छ है कौन मछुआरा ये खेल विश्व की राजनीति में खेलते रहते हैं। शह – मात का खेल जारी है ये शतरंज की बाज़ी है मियां बीबी राज़ी है फिर भी हर कोई बनता क़ाज़ी है।
मुलतानी कहावत का हिंदी अनुवाद है। जब भी सांड आपस में भिड़ते हैं उनका कुछ भी नहीं बिगड़ता है कुछ देर में थक कर लड़ाई ख़त्म हो जाती है कोई न हारता है न कोई जीतता ही है। मगर जिस खेत में उनकी लड़ाई होती है उस में उगे हुए बूटे बर्बाद हो जाते हैं। आप चाहें तो इस को अपने देश में सरकारों नेताओं की जंग जो ज़ुबानी होती है टीवी बहस या मीडिया अख़बार में भाषण में या चाहो तो अमेरिका चाईना से किसी भी शासक की धमकी और देख लेने नतीजा भुगतने जैसे ब्यानबाज़ी से जोड़ सकते हैं।
काठ की तलवारें हैं असली हथियार ताकत दिखलाने को रखी हैं कायरता होती है ऐसे बयान देना। शूरवीर या तो वार करते हैं या खामोश रहते हैं इनको कोई शांति की चिंता नहीं है इनका अपना गणित होता है। फायदा किस बात में है वास्तविक जंग का हौसला नहीं करते क्योंकि तब मामला आर या पार जीत या हार का होने के साथ दोनों पक्षों की आर्थिक बर्बादी का हो जाता है। तभी कितने सालों से दुश्मनी दोस्ती का खेल चलता रहता है।
आम नागरिक जिसे समझते हैं देश की आबरू का सवाल है वास्तव में सत्ताधारी शासकों की अपनी रणनीति होती है। चुनाव करीब होते हैं तो तेवर कड़े रखने पड़ते हैं अन्यथा हज़ार साल तक जंग लड़ने वाले भी भूल जाते हैं। आपको लगता है अब पड़ोसी देश की खैर नहीं मगर सत्ताधारी लोग उधर इधर खूब समझते हैं मतलब क्या है।

कोई कोरोना अचानक चला आया तो हंगामा हो गया। उस के सामने सभी की बोलती बंद हो गई। लगा अब आपसी झगड़े छोड़ पहले कोरोना को हराना है यही ऐलान किया गया हम साथ साथ हैं। मगर बीच में कोई दवा मांगने को लेकर धमकी देता कोई किसी को चेतवनी देता कोरोना का सच नहीं बताया तो देख लेना।

अंजाम देखने वाले अपना अंजाम भी जानते हैं , किसी शायर की नज़र में सबको मालूम है अपना अंजाम फिर भी, अपनी नज़रों में हर इक शख़्स सिकंदर क्यों है। ये सभी खुद को सिकंदर मानते हैं इनको कोई कलंदर मिलेगा तो खुद को बेहद बौना पाएंगे। कलंदर वही होता है जिसके पास कुछ भी नहीं हो तब भी खुश रहता है भिखारी नहीं बनता मगर ये सभी कितने अमीर ताकतवर हों इनकी भूख मिटती ही नहीं।
ये कोरोना को छोड़ आपस में लड़ने लगे हैं कोरोना की जीत इसी में है मगर ये हारने के बाद भी अपनी हार को मानते नहीं हैं। कोरोना नहीं जीत सकता था ये सत्ता के गुलाम हार गए हैं क्योंकि इनको ज़िंदगी और मौत की वास्तविक जंग लड़ना नहीं आता है ये दफ्तर में बैठकर फाईलों की कागज़ी लड़ाई लड़ना सीखे हैं।
जैसे आधुनिक युग के बच्चे खेल के मैदान में नहीं खेलते अपने स्मार्ट फोन पर वीडियो गेम या कंप्यूटर पर कार्टून फिल्म अथवा काल्पनिक दुनिया की कहानियों को देख सच समझने लगते हैं। बहरी असली दुनिया से अजनबी अनजान रहते हैं। टीवी चैनल वाले खूब लड़वाते हैं आमने सामने सत्ता पक्ष विपक्ष को मगर मनोरंजन मकसद होता है सच झूठ का निर्णय नहीं भाईचारा अपनी जगह धंधे की बात पहले ये उनका कारोबार है।
आप घर बैठे जब उनकी आपसी जंग देख रहे होते हैं तब वो अपने भीतर से चोर चोर मौसेरे भाई का रिश्ता बखूबी निभा रहे होते हैं , बहस ख़त्म होते ही गले मिलकर खेद जताते हैं भाई गलत मत समझना।

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