उज्जैन। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में 254वीं आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय- उपन्यास कथा सम्राट – मुंशी प्रेमचंद और समाज की चुनौतियां गोष्ठी में मुख्य वक्ता प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासन, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन ने अपना मंतव्य देते हुए कहा कि- प्रेमचंद से जुड़ना लोकतंत्र से जुड़ना है। संवैधानिक मूल्यों के साथ खड़ा होना है। समारोह के अध्यक्ष डॉ. शहावुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने अध्यक्षीय भाषण में कहा- प्रेमचंद्र सच्ची भारतीयता की पहचान हैं।
विशिष्ट वक्ता राष्ट्रीय मार्गदर्शक डॉ. हरि सिंह पाल महामंत्री नागरी लिपि परिषद, दिल्ली ने कहा- प्रेमचंद्र का साहित्य कालजई साहित्य है। राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजकिशोर शर्मा, पूर्व शिक्षा अधिकारीने कहा- कफन कहानी के माध्यम से सारे आदर्शों पर कफन डाल उन्होंने कहा जीवन का आदर्श कुछ और ही है। मुख्य अतिथि डॉ. रजनी गुप्त सरकारी बैंक में पूर्व मुख्य प्रबंधक, लखनऊ ने कहा- प्रेमचंद्र प्रेम को संयम और कर्तव्य परायणता की ओर ले जाते हैं। अरुणा शराफ, इंदौर ने कहा- समाज सुधारक और यथार्थवादी विचारक हैं प्रेमचंद।
डॉ. शहनाज शेख, राष्ट्रीय सचिव ने कहा- इनके बिना हिंदी साहित्य का इतिहास अधूरा है। सुवर्णा जाधव, पुणे, महाराष्ट्र, कार्यकारी अध्यक्ष, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने कहा- प्रेमचंद ने यथार्थवादी साहित्य लिखा। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे, गाज़ियाबाद, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, महिला इकाई, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ अरुण सराफ की सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत भाषण डॉ. प्रभु चौधरी, महासचिव, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना ने दिया। प्रस्तावना शैली भागवत, राष्ट्रीय संयुक्त सचिव, ने प्रस्तुत की और आभार व्यक्त श्वेता मिश्रा ने किया।