महाराष्ट्र के शिखर संत का ज्ञानवाणी एवं गुरु परंपरा पर आभासी संगोष्ठी संपन्न

निप्र, उज्जैन : राष्ट्रीय प्रतिष्ठित संस्थान राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय महाराष्ट्र के शिखर संत का ज्ञान एवं गुरु परंपरा था। आभासी पटल पर मुख्य अतिथि विलासराव देशमुख महाराष्ट्र थे। अध्यक्षता सुवर्णा जाधव महाराष्ट्र मुंबई ने किया।

मुख्य अतिथि के रूप में विलासराव देशमुख उपाध्यक्ष मराठा मंदिर मुम्बई ने कहा कि ज्ञानेश्वर जी की स्वतंत्र बुद्धि और गुरु भक्ति श्रोताओं की प्रार्थना, मराठी भाषा का अभिमान, गीता का स्तवन श्री कृष्ण और अर्जुन का अकृत्रिम स्नेह इत्यादि विषयों ने ज्ञानेश्वर को विशेष बना दिया। संत ज्ञानेश्वर अर्थात महाराष्ट्र का एक अनमोल रत्न। महाराष्ट्र के सांस्कृतिक जीवन के, परमार्थिक क्षेत्र के ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसा बेजोड़ व्यक्तित्व एवं अलौकिक चरित्र अर्थात संत ज्ञानेश्वर।

अध्यक्षता कर रहे सुवर्णा जाधव मुंबई ने कहा कि महाराष्ट्र संतो की भूमि है और जिनके विचार आज भी समाज में प्रासंगिक बने हुए हैं, उनमें से संत ज्ञानेश्वर और राष्ट्र संत तुकड़ोंजी है।
‘मनी नाही भाव म्हणे देवा मला पाव
अशान देव काही भेटायचा नाही रे
देव काही बाजारचा भाजीपाला नाही रे।
ऐसे आसान शब्दों में भक्ति सिखलायी। अंधश्रद्धा निर्मूलन का काम किया और ज्ञानेश्वर माऊली ने ज्ञानेश्वरी लिखी। सरल शब्दो में भागवत धर्म समझाया, पसायदान भी लिखा।

विशिष्ट अतिथि दिलीप चव्हाण सचिव मराठा मंदिर मुम्बई ने कहा कि भारत के महाराष्ट्र को संतों की भूमि कहा जाता है। महाराष्ट्र की धरती पर कई महान संतों ने जन्म लिया जिनमें एक थे संत ज्ञानेश्वर वह संत होने के साथ-साथ एक महान कवि भी थे। महान संत ज्ञानेश्वर जी ने संपूर्ण महाराष्ट्र राज्य का भ्रमण कर लोगों को ज्ञान भक्ति से परिचय कराया एवं समता समभाव का उपदेश दिया। तेरहवीं सदी के महान संत होने के साथ-साथ वे महाराष्ट्र संस्कृति के प्रवर्तको में से भी एक माने जाते थे।

विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर शैलेंद्रकुमार शर्मा कुलानुशासक विभागाध्यक्ष हिंदी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन ने कहां कि सभी संतो का संदेश इन तीन तत्वों में महत्वपूर्ण है संत तुकड़ोंजी शांति समन्वयक पुरोहित थे, ईश्वर भक्ति राष्ट्र की भक्ति करते थे। सारे संसार को उन्होंने एक मोती में पिरोने पर विश्वास रखते थे। उनके पास स्वानुभूत दृष्टि थी और उन्होंने अपने पूरे जीवन में हृदय की पवित्रता और किसी के लिए भी मन में द्वेषभाव न रखने का पाठ पढ़ाया।

मुख्य वक्ता डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे महाराष्ट्र ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर मुख्य संतो में से एक हैं ज्ञानेश्वरी गीता पर आधारित है ज्ञानेश्वर में केवल 15 वर्ष की उम्र में ही गीता पर मराठी में ज्ञानेश्वरी नामक भाष्य की रचना करके जनता की भाषा में ज्ञान की झोली खोल दी। उन्होंने गीता को समाज के सामने रखा। संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने ज्ञान तत्व को समझाया है ।

शांत रस की प्रधानता है साथ ही ज्ञानेश्वरी में कर्म को बताया है। विशिष्ट वक्ता डॉ. सुरेखा मंत्री महाराष्ट्र ने कहा कि संत ज्ञानेश्वर जी के प्रचंड साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है। क्रोध, रोष, ईष्या, मत्सर का कहीं लेश मात्र भी नहीं है।समग्र ज्ञानेश्वरी क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है।

विशिष्ट अतिथि बालासाहेब तोरस्कर महाराष्ट्र ने कहा कि संत परंपरा में गुरु परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। संत तुकड़ोजी समाज के प्रति आस्था रखते थे। भारत के प्रति प्रेम था, देश के प्रति प्रेम भावना था। तुकड़ोजी ने सामूहिक प्रार्थना पर बल दिया संपूर्ण विश्व में उनकी प्रार्थना पद्धति अतुलनीय थी।

गोष्ठी का प्रारंभ डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ के सरस्वती वंदना हे शारदे मां, हे शारदे मां से हुआ। स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष डॉ.भरत शेणकर किया। प्रस्ताविक भाषण मे राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने कहा कि संत तुकड़ोजी महाराज के कार्य और उनकी ख्याति दूर-दूर तक है महात्मा गांधी द्वारा सेवाग्राम आश्रम में
उन्हें निमंत्रित किया गया, जहां वह लगभग एक महीने रहे।

उसके बाद तुकडो़जी ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रमों द्वारा समाज में जनजागृति का काम प्रारंभ कर दिया। राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी के जन्म दिवस पर काव्य गोष्ठी आयोजन के प्रतिभागियों को प्रथम कुमुद शर्मा गुवाहाटी, द्वितीय सुनीता गर्ग पंचकूला, तृतीय भुनेश्वरी साहू छत्तीसगढ़ को सम्मान पत्र वितरित किया गया।

इसे आभासी गोष्ठी में अनेक शिक्षाविद विद्वत जन उपस्थित थे आभार व्यक्त डॉ. अरुणा दुबे महाराष्ट्र ने किया। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापिका रोहिणी डावरे अकोला महाराष्ट्र ने किया।

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