उत्तर कभी ना मिला (गीत) : पारो शैवलिनी

*उत्तर कभी ना मिला*

नि:शब्द रात में, सुने हो क्या
पृथ्वी का रोना।
एकान्त दोपहर में, देखे हो क्या
अपने मन का आईना।।

प्रश्न किया है तारों से ये
नींद नहीं आती क्यों मुझे
जानना चाहा है मेघों से ये
रही है कभी क्या बिन बरसे
डूब गए तारे, झर गये मेघ
उत्तर जाना ना कभी।।

प्रश्न किया है लहरों से ये
शांत है क्यों नीला सागर
जानना चाहा खामोश है क्यों
मधुर स्वपन लिए काले पत्थर प्रतिध्वनि मेरी लौट आ गई
उत्तर कभी ना जाना।।

पारो शैवलिनी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

18 + 13 =