जवाहर लाल नेहरू को समझना, बाल दिवस पर विशेष…

डॉ. लोक सेतिया : जिन्होंने उनको देखा, सुना, पढ़ा और पहचाना कोई लाख कोशिश करे, कभी उन लोगों को झूठी बेबुनियाद बातों से अपनी सोच धारणा बदलने को विवश कर नहीं सकेगा। बचपन से स्कूल में उनकी तस्वीर जैसे घर परिवार का कोई अपना हो ऐसा एहसास करवाती रही थी। बड़े होने पर सोचा, समझा, पढ़ा भी, थोड़ा बहुत तो जाना वास्तविक जनप्रिय नेता होना क्या होता है। देश की आज़ादी की लड़ाई से लेकर आधुनिक भविष्य की निर्माण की रूपरेखा बनाने आधारशिला रखने से लेकर देश को लोकतंत्र की डगर चलाने में उनका योगदान भुलाना संभव नहीं है।

शांति का पुजारी विनम्रतापूर्वक सभी से संबंध रखने वाला, अपने आलोचक या विपक्षी को भी आदर देने वाला एवं साथ कार्य करने वाले नीचे से ऊंचे पद पर नियुक्त कर्मचारियों से स्नेहपूर्वक मिलने वाला शिष्टाचार में सभ्य ढंग से आचरण करने वाला कोई अन्य शासक शायद ही देखा होगा।

कभी शोहरत पाने की खातिर कुछ नहीं किया बल्कि अपने विरोधी विचारधारा के नेताओं को आदर देना उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनकर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर आपसी सदभाव तालमेल बिठाना सर्वमान्य नायक ही कर सकते हैं।
आज जिस आधुनिक भारत और मज़बूत लोकतंत्र पर हमको गर्व है उसकी बुनियाद जवाहर लाल नेहरू जैसे सच्चे देश समाज को समर्पित नेताओं के बलिदानों परिश्रम से रखी गई थी। कभी सोचना कि जिस राजनेता को जीवन भर कभी चुनावी जीत हार की चिंता नहीं रही और अपनी सोच पर खड़े होकर पिता से भी मतभेद होने और अपनी अलग राह चुनने की क्षमता वा समझ हो वो कैसा होगा।

सत्ता में आपको नतीजे मनचाहे हमेशा नहीं हासिल होते लेकिन आपके निर्णय आपके उठाए कदम अगर सही भावना और पूरी ईमानदारी से लिए गए तब उनको अनुचित नहीं ठहराया जा सकता है। किसी और को छोटा कर कोई कभी बड़ा नहीं बन सकता है बौने साबित होते हैं ऐसा करने वाले। भारत रत्न ऐसे होते हैं।

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