बालपन में श्रीकृष्ण को जिस प्रकार का परिवेश मिला था, वह नई पीढ़ी को भी मिले यह जरूरी है– डॉ. हरेराम वाजपेयी
डॉ. हरेराम वाजपेयी का हुआ सारस्वत सम्मान
ललित कला के विद्यार्थियों ने प्रस्तुत कीं कृष्ण चरित पर आधारित मनोहारी चित्र कृतियाँ वाग्देवी भवन, विक्रम विश्वविद्यालय में
उज्जैन। मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ, उज्जैन तथा हिंदी अध्ययनशाला, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में विक्रम महोत्सव 2024 के अंतर्गत श्री कृष्ण केंद्रित विमर्श शृंखला में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का रहस्य पर केंद्रित विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन 12 मार्च मंगलवार, मध्याह्न में किया गया। विशिष्ट अतिथि वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हरेराम वाजपेयी, इंदौर थे। मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय थे। अध्यक्षता कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने की। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने अपने व्याख्यान में बालकृष्ण की विभिन्न लीलाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि श्री कृष्ण को बालपन मैं जिस प्रकार का सामुदायिक और सांस्कृतिक परिवेश मिला था, वह नई पीढ़ी को मिले यह जरूरी है। बालकृष्ण का चरित्र हमें अंतःकरण की स्वच्छता और स्वावलंबी बनने की प्रेरणा देता है। कृष्ण भाव के भूखे हैं, वे वैभव और बाह्याडंबर से बहुत दूर रहते हैं। कृष्ण की बाल लीलाएं पर्यावरण संरक्षण, जल शोधन तथा परस्पर प्रेम का संदेश देती हैं। श्री कृष्ण ने जगत के कल्याण के लिए अवतार लिया था, किन्तु उन्होंने स्वयं को विपरीत परिस्थितियों के बीच एक साधारण मनुष्य की तरह रखते हुए प्रसन्नतापूर्वक संघर्ष किया।
विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि कृष्ण की तरह अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा। संकट के मध्य भी किस प्रकार आगे बढ़ा जा सकता है यह कृष्ण का बाल रूप हमें शिक्षा देता है। कृष्ण रिश्तों को महत्व देना सीखते हैं। सभी प्रकार के मतभेद और समस्याओं को किस प्रकार दूर किया जा सकता है, इसकी प्रेरणा कृष्ण चरित्र से लेना चाहिए। मन को स्थिर रखने की वृत्ति कृष्ण सिखाते हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि श्रीकृष्ण की लीलाएँ अपार, अचिंत्य और अमृतमयी हैं।
उनकी बाल लीलाओं में अधिभौतिक, आधिदैविक और अधिभौतिक रहस्य निहित है। उनके स्रोत अनेक पुराण, काव्य और लोक परम्पराएँ हैं। विविध दार्शनिक मतों में उनकी बाल लीलाओं की गहन व्याख्याएँ मिलती हैं। श्री कृष्ण मात्र पूजा नहीं, उससे अधिक सेवा और प्रेम के विषय रहे हैं। उनकी लीलाओं में मानव जीवन और दिव्य जीवन का सुमेल हुआ है। कृष्ण सखा हैं तो इस सृष्टि के कारण भी हैं। जो अपने सखा जीव को बन्धन में बांधते हैं तो उसके अनुराग में स्वयं बन्धन में बंध भी जाते हैं।
वाग्देवी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में ललित कला अध्ययनशाला के विद्यार्थियों द्वारा श्री कृष्ण चरित्र के विभिन्न प्रसंगों पर केंद्रित मनोहारी चित्र कृतियों का प्रस्तुतीकरण किया गया। इन कलाकारों में लक्ष्मी कुशवाह, नंदिनी प्रजापति, मुकुल सिंह, आदित्य चौहान, अक्षित शर्मा, पंकज सेहरा, जगबंधु महतो, अलका कुमारी, प्रिंस परमार, चांदनी डिगरसे, सलोनी परमार आदि सम्मिलित थे।
इस अवसर पर साहित्यकार डॉ. हरेराम वाजपेयी को शॉल, साहित्य, अंगवस्त्र, विक्रमादित्य पंचांग अर्पित कर उनका सारस्वत सम्मान अतिथियों एवं त्रिवेणी कला संग्रहालय की ओर से गौरव तिवारी द्वारा किया गया। प्रारम्भ में स्वस्तिवाचन पं. देवेंद्र द्विवेदी ने किया।
हिंदी अध्ययनशाला के साथ ललित कला एवं पत्रकारिता और जनसंचार अध्ययनशाला के इस संयुक्त आयोजन में वरिष्ठ गायक शैलेश शर्मा, संगीतकार आलोक बाजपेयी, इंदौर, डॉ. रमण सोलंकी, कला मनीषी राजेश्वर त्रिवेदी, इंदौर, गौरव तिवारी, आदित्य चौरसिया, डॉ. प्रतिष्ठा शर्मा, डॉ. शैलेंद्र भारल, डॉ. सुशील शर्मा, लक्ष्मी नारायण सिंह रोडिया, डॉ. अजय शर्मा, डॉ. हिना तिवारी, डॉ. महिमा मरमट आदि सहित अनेक साहित्यकार, प्रबुद्धजन और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। आभार प्रदर्शन महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ की ओर से कला मनीषी राजेश्वर त्रिवेदी ने किया।
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