मन की रेत काव्य संग्रह का दो दिवसीय लोकार्पण समारोह संपन्न

कोलकाता । “मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य“ ये उदगार विद्वान साहित्यकार प्रेमशंकर त्रिपाठी ने श्री प्रकाशन की ओर से आयोजित मन की रेत काव्य संग्रह के लोकार्पण समारोह के पहले दिन अपने वक्तव्य में व्यक्त किया। वें कवयित्री ज्योति कुंदर के काव्य संग्रह मन की रेत के लोकार्पण समारोह को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ज्योति ने जीवन की वास्तविकता से रूबरू होते हुए सीमित शब्दों में असीमित संभावनाओं की बात कर अपने कौशल का परिचय दिया है। खास कर उन्होने ‘क्यूँ” और “ख्वाब” कविताओं का उल्लेख किया और एक अच्छी कविता की पुस्तक देने के लिए श्री प्रकाशन को साधुवाद दिया।

ज्ञातव्य हो कि 19 नवम्बर को कवयित्री ज्योति कुंदर के पहले काव्य संग्रह “मन की रेत“ का लोकार्पण किया गया। भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रोफेसर संजय द्विवेदी ने इसका लोकार्पण किया। प्रो. द्विवेदी जी ने ज्योति की कविताओं को हृदय के संवाद की संज्ञा दी और कहा कि मन की रेत ने साहित्य के क्षेत्र में सुनहरी संभावनाओं के साथ दस्तक दी है। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता स्थापित करने के लिए एक सच्चे कवि का कर्तव्य निभाने का कार्य ज्योति की कविताओं ने किया है। तल्लीनता के साथ लिखी गई मन की रेत कविताओं मे प्रकृति का मानवीकरण किया गया है और उतनी ही सादगी से समाज के वंचित वर्ग की पीड़ा को भी दर्शाया है, ऐसा प्रो. संजय जी ने कहा। उनका कहना था कि संवेदनाएं किसी भी कविता की आत्मा है और ज्योति की कविताएं एक स्वच्छ, उजली आत्मा के साथ सामने आती है।

लोकार्पण के दूसरे दिन यानी 20 नवम्बर के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि मदन कश्यप ने कहा कि ज्योति की कविताएं आस-पास के जीवन से जुड़ी हैं जिसे आत्मीयता और सहजता से व्यक्त किया गया है। वैचारिकता के दबाव में जिन कविताओं का लोप हो गया था। उसकी वापसी इन कविताओं के माध्यम से हुई है। मुख्य वक्ता सत्यप्रकाश भारतीय ने कहा कि मन की रेत में ज्योति जी ने घटित घटनाओं को बढ़ा-चढा कर कहने के रिवाज से अलग अपने मन को टटोला है जो दूसरों के मन से एकात्म हो जाती है, साथ ही उन्होंने सूक्ष्म निरीक्षण को गहराई से उकेरा है और वो भी बिना किसी जद्दोजहद के।

कवि अमित कुमार अम्बष्ट ने पुस्तक के शीर्षक को अत्यंत आकर्षक और बहुआयामी बताया। उन्होने प्यास, मुखौटा एवं एक बार कविताओं का विशेष उल्लेख करते हुए ज्योति जी की कविताओं में आशा के बीज और प्रेम के समर्पण भाव पर  प्रकाश डाला। लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन सुषमा त्रिपाठी तथा दूसरे दिन का संचालन दिव्या गुप्ता ने किया। श्री प्रकाशन की प्रमुख वनिता झारखंडी ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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