– देश-प्रदेश में चर्चा का विषय बनी अखिल भारतीय प्रदर्शनी “टाइगर इन मेट्रो”
लखनऊ। यदि कोई वन्यजीव शहर में आ जाता है तो लोग उसे देखकर भयभीत हो जाते हैं। अमूमन ऐसी खबरें सुनने और देखने को मिलतीं हैं, भयभीत होना लाजमी है। बात यह भी नहीं की वन्यजीव जानबूझ कर नगर की तरफ आते हैं बल्कि वे भटकते हुए आ जाते हैं। आने पर वे खुद भयभीत होते हैं कि यह कौन सी जगह आ गए हैं। दरअसल बात यह भी है कि वे अपने नैसर्गिक आवास की तलाश में आते हैं। जहां आज इन्सानों द्वारा पेड़ जंगलों को काट कर सीमेंट कोंक्रीट के गगनचुंबी इमारतों का निर्माण करता जा रहा है। इंसान इसे ही अपना विकास मानता है लेकिन जीवों के लिए यह बेहतर साबित नहीं हो रहा और न ही प्रकृति के लिए ही क्योंकि प्रकृति में हर एक चीज हर जीव हर प्राणी का एक अस्तित्व है और सब एक दूसरे पर निर्भर भी हैं।
इनमें से यदि एक भी लुप्त होती है तो प्रकृति का समंजस्य और संतुलन बिगड़ जाता है। इस प्रकृति में इंसान सबसे मुख्य प्राणी माना जाता है बाकियों की अपेक्षा। इसलिए इंसान की ज़िम्मेदारी भी बनती है की बाकियों का ध्यान रखे न कि अपनी लाभ के लिए बाकियों का नुकसान करे। इसी जागरूकता और इसी संदेश के साथ शुक्रवार को नगर में शीर्षक “टाइगर इन मेट्रो” अखिल भारतीय पेंटिंग्स एवं छायाचित्र प्रदर्शनी लखनऊ के हजरतगंज मेट्रो स्टेशन परिसर में भव्य शुभारंभ किया गया था। जिसके दूसरे दिन भी हजारों की संख्या में लोगों ने इस विशेष प्रदर्शनी का अवलोकन और सराहना किया।
प्रदर्शनी के क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने बताया कि वास्तव में यह प्रदर्शनी सभी वन्यजीवों के साथ ख़ास तौर पर टाइगर के प्रति लोगों को जागरूक करती हुई प्रतीत हो रही है। इस दस दिवसीय अखिल भारतीय प्रदर्शनी के दूसरे दिन हजारों की संख्या में लोगों ने अवलोकन किया। साथ ही इस विषय पर अपनी गहरी रुचि, संवेदना जाहीर की और कलाकारों छायाकारों के सुंदर रचनाओं और विचारों की सराहना भी की। चूंकि इस प्रदर्शनी मे देश के 13 राज्यों के चित्रकार और छायाकारों ने भाग लिया है तो इस प्रदर्शनी की चर्चा देश- प्रदेश में की जा रही है। जो की सोशल मीडिया और फोन संदेश से लगातार प्राप्त हो रहे हैं। इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित सभी कलाकृतियाँ एक संदेश दे रही हैं।
कलाकारों और छायाकारों ने टाइगर को केंद्र बिन्दु में रखते हुए अपनी कल्पनाशीलता और अपनी कलात्मकता का बेहद सुंदर प्रस्तुति की है। प्रदर्शनी में समकालीन कला के साथ लोक कला के रूप में मधुबनी शैली में बनी कलाकृति को भी विशेष रूप से शामिल किया गया। सभी कलाकारों छायाकारों ने अपनी शैली, तकनीकी ज्ञान के साथ साथ एक बेहतरीन फ्रेम को भी कृतियों में महत्व दी है। जैसा कि हम सभी सामाजिक तौर से जिम्मेदार नागरिक के रूप में बाघ बचाओ परियोजना जो की भारत में बाघों की घटती जनसंख्या की जांच करने के लिए अप्रैल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (बाघ परियोजना) शुरू की गई थी। उसके बाद बाघ को विलुप्त होने से बचाने के लिए 1973 में राष्ट्रीय पशु का दर्जा भी दिया गया था।
इस परियोजना से बाघों की संख्या बढ़ी इसी प्रोजेक्ट टाइगर (1973-2023) के 50 वर्ष पूरे होने पर इस विशेष प्रदर्शनी के माध्यम से जश्न मना रहे हैं। इस परियोजना के साथ टाइगरों की संख्या बढ़ी हैं वास्तव में यह बड़ी ही खुशी का विषय है। हम सभी को टाइगर की जनसंख्या बढ़ाने और उनके नैसर्गिक आवास, जीवन को लेकर बेहद संवेदनशील होकर सोचना होगा और इस दिशा में ठोस कदम उठाने का प्रयास भी करना होगा। रविवार से सेव टाइगर विषय पर मेट्रो परिसर में आने वाले यात्री बड़े बच्चे हर वर्ग के लोग कला कार्यशाला/प्रतियोगिता में अपने भाव रंग और कागज़ की सहायता से व्यक्त कर सकते हैं। उनके लिए रंग और पेपर उपलब्ध रहेगी।