नरेंद्र मोदी सरकार के लिए यह परीक्षा की घड़ी है!

राजीव कुमार झा, पटना। देश के लोगों को दीर्घकाल के संघर्ष के बाद अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण में सफलता मिली। संविधान में आजादी के बाद विवादित धर्मस्थलों को यथावत् बनाए रखने का प्रावधान हिन्दुओं को सदैव अनुचित प्रतीत हुआ और नृशंस क्रूर मुस्लिम शासकों के हाथों विध्वंस से तबाह हिंदू धर्म स्थलों के जीर्णोद्धार की मांग हिन्दू जनमानस आजादी से पहले से करता रहा है। इस दौर में देश के अत्यंत प्राचीन बौद्ध, जैन धर्म स्थलों के जीर्णोद्धार में ब्रिटिश सरकार ने महती भूमिका निभाई और नालंदा, सारनाथ, कुशीनगर समेत आगजनी और तोड़फोड़ से त्रस्त सैकड़ों ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार का काम इस काल में स्थापित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने संपन्न किया।

इतिहासकारों के अनुसार इस्लाम धर्म को मानने वाले शासक असहिष्णु हो गये थे और भारत पर इनके शासन काल में असंख्य प्रकार के अत्याचार हुए और देश की धार्मिक सामाजिक गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले कार्यों में वह संलग्न रहे। इस काल में महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी सदृश प्रतापी हिन्दू राजाओं ने हिन्दू धर्म शासन समाज और संस्कृति से जुड़े देश के स्वाभिमान और आत्मगौरव को फिर से स्थापित करने के लिए अनथक संघर्ष किया। आज के दिन अपनी धरती के इन महान सपूतों का नमन करना सारे देशवासियों का कर्तव्य है।

भारत के संविधान में यहां के सारे धर्मावलंबियों को समान अधिकार सौंपे गए हैं और इसलिए महात्मा गांधी के सत्य और अहिंसा के संदेश के आधार पर हिंदुओं को अपने धर्मस्थलों के जीर्णोद्धार का आंदोलन तेज करना चाहिए। यहां के पवित्र मंदिरों के आसपास में मुस्लिम शासकों के द्वारा स्थापित मस्जिदों के अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं है। पाकिस्तान के निर्माण को स्वीकार करने के बाद महात्मा गांधी ने यह सोचा था कि यह मुस्लिम देश हिन्दू मुस्लिम एकता के ताने-बाने में एक मित्र पड़ोसी देश के रूप में स्थित रहेगा लेकिन पाकिस्तान शीघ्र अमरीकी कुचक्र की शिकार होकर दक्षिण पूर्व एशिया में उसका सैनिक अड्डा बन गया और अब चीन से यह सांठगांठ में यह संलिप्त दिखाई देता है। पाकिस्तान का अस्तित्व भारत के लिए निरंतर नयी परेशानियों का सबब बनता रहा है।

कांग्रेस के शासन काल में पाकिस्तान के प्रति भारत का रवैया अत्यंत आक्रमक बना रहा। पाकिस्तान के प्रति अटल बिहारी वाजपेयी की शांति और सुलह की नीति अंततः वहां के कमजोर और अकड़ से भरे फौजी हुक्मरानों के मानसिक दिवालियापन से कामयाब नही हो पाई और परवेज मुशर्रफ के साथ उनकी आगरा वार्ता विफल हो गयी थी। वर्तमान समय में भारत सन् 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद संपन्न शिमला समझौते के अनुसार पाकिस्तान से संबंधों के निर्वहन का दायित्व निभाता है। लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से वहां के फौजी शासक बेहद घबराते थे।

आज पाकिस्तान को लेकर नेहरू के ढुलमुल रवैए की अक्सर चर्चा होती है और वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह ने भी कश्मीर को लेकर कायम परिस्थितियों के संदर्भ में नेहरू के बारे में ऐसे विचार प्रकट किए हैं। अयोध्या, मथुरा और वाराणसी की तरह से कश्मीर भी हमारी प्राचीन भूमि है। यहां इस्लामी कट्टरवादी पृथकतावादी आंदोलन का समूल सफाया होना चाहिए। यह भगवान राम के जीवनादर्शों के अनुरूप सबसे स्तुत्य कार्य होगा। आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नरेंद्र मोदी सरकार के लिए यह सचमुच परीक्षा की घड़ी है। भारत अपनी सीमा के भीतर आतंकवाद के मूल में पाकिस्तान की नीतियों और उसके परिणामों को जिम्मेदार मानता रहा है। पाकिस्तान में हिंदुओं की दशा भी शोचनीय है और अक्सर वहां हिन्दू लड़कियों के अपहरण के समाचार प्रकाश में आते रहते हैं।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

राजीव कुमार झा, कवि/ समीक्षक

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