कहलाती हैं “आशाकर्मी”, खुद हैं निराश !!

तारकेश कुमार ओझा, खड़गपुर : संबोधन से आशाकर्मी कहलाने वाली स्वयंसेविकाएं खुद व्यवस्था से बेहद निराश हैं। पश्चिम बंगाल आशाकर्मी यूनियन की पूर्व मेदिनीपुर जिला समिति की ओर से शुक्रवार को जिले के पांशकुड़ा, नंदीग्राम व रामनगर समेत विभिन्न प्रखंड कार्यालयों में स्मार पत्र सौंपा गया। यूनियन की संयुक्त सचिव इति माईती व श्यामली पटनायक के मुताबिक वर्तमान कोरोना काल में आशाकर्मियों पर काम का दबाव काफी बढ़ गया है।

नियमित ड्यूटी के साथ ही उन्हें अतिरिक्त दायित्वों का पालन करना पड़ रहा है। एक आशा कर्मी को 1200 से 1600 की जनसंख्या के बीच काम करना पड़ता है। कोरोना की दूसरी लहर से शहर – गांव कुछ भी अछूता नहीं है। कोरोना टेस्ट से लेकर मरीजों की भर्ती यहां तक कि उनके आक्सीजन लेवल की निगरानी तक में आशा कर्मियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। हालांकि इसके लिए उन्हें जरूरी सुरक्षा उपकरण भी मुहैया नहीं कराए जा रहे हैं।

ना तो इसके लिए उन्हें कोई अतिरिक्त पारिश्रमिक ही मिल रहा है। यहां तक कि कोविड पीड़ित आशा कर्मियों को जो एक लाख रुपये दिए जाने की बात थी , वो भी उन्हें नहीं मिल रहा है। मांगों को लेकर यूनियन के बैनर तले लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है। इन्हीं मुद्दों पर आज शासकीय स्तर पर ग्यापन सौंपा गया। मांगें न माने जाने पर हम बड़े स्तर पर आंदोलन छेड़ने को विवश होंगे।

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