“इक्कीसवीं शताब्दी के इक्कीस वर्ष : हिंदी साहित्य”

कोलकाता। देश के प्रसिद्ध ऐतिहासिक शैक्षिणिक संस्थान ‘कलकत्ता विश्वविद्यालय’ में गत बुधवार को ‘एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी‘ का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन हिन्दी विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रो. दामोदर मिश्र, प्रो. अरुण होता, डॉ. देवेंद्र देवेश, डॉ. सत्या उपाध्याय, प्रो. राजश्री शुक्ला और डॉ. राम प्रवेश रजक द्वारा दीप प्रज्वलन और तत्पश्चात विद्यार्थियों द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। डॉ. सत्या उपाध्याय ने साहित्य को मानव कल्याण की और उन्मुख करने वाली एक प्रेरणा शक्ति कहा। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने विषय प्रवर्तन करते हुए भूमंडलीकरण और बाजारवाद के संबंध पर चर्चा की और इक्कीसवीं शताब्दी के साहित्य को बाज़ारवाद के प्रतिरोध का साहित्य बताया।

डॉ. अरुण होता ने विमर्शों पर चर्चा करते हुए स्त्री विमर्श के व्यापक स्वरुप की छवि को प्रस्तुत किया। डॉ. देवेंद्र देवेश ने उद्योगीकरण से उत्पन्न संवेदनहीनता पर प्रकाश डाला। डॉ. हिमांशु कुमार ने साहित्य और सिनेमा पर चर्चा की। डॉ. गीता दूबे ने इक्कीसवीं शताब्दी को ‘रचनात्मक विस्फोट’ की संज्ञा दी। हिंदी विश्वविद्यालय के उपकुलपति प्रो. दामोदर मिश्र ने अध्यक्षीय वक्तव्य दिया। प्रथम सत्र का सफल संचालन कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. रामप्रवेश रजक ने किया।

प्रो. तनुजा मजूमदार की अध्यक्षता में द्वितीय सत्र में डॉ. संजय जायसवाल, डॉ. सुनीता मंडल, डॉ. संध्या सिंह ने महत्वपूर्ण बातें कहीं। प्रो. तनुजा मजुमदार ने अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कोरोना काल के बाद इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर इतनी जीवंत संगोष्ठी के आयोजन पर हिन्दी विभाग को धन्यवाद दिया। इस सत्र का संचलान कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. विजय कुमार साव ने किया। डॉ. शुभ्र उपाध्याय एवं प्रो. ममता त्रिवेदी की अध्यक्ष्यता में विभाग के शोधार्थियों ने शोध पत्र वाचन किया। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के प्राध्यापक एवं छात्र शामिल हुए।

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