।।हृदय की धड़कन।।
श्रीराम पुकार शर्मा, कोलकाता । दुर्घटनाग्रस्त एक छोटे से बालक की मृत्यु के पूर्व की इच्छा के अनुकूल उसके हृदय को दान कर उसे एक अन्य गरीब बालिका में स्थापित कर दिया जाता है। उस मृत बालक के माता-पिता उस बच्ची के हृदय की धड़कन को सुन-सुनकर निहाल हो जाया करती है।
‘अंशु हमसे इस तरह से अपना मुख नहीं मोड़ सकता है। डॉक्टर कैसे कह सकते हैं कि वह हमेशा के लिए सो गया, जबकि उसे तो मेरे बिना नींद भी नहीं आती है। मैं अंशु के बिना कैसे रह सकती हूँ?’ – चारुता अस्पताल के उस ‘प्रतीक्षा कमरे’ में रोती हुई कम्पित स्वर में कहने लगी। उसका पति सुधांशु उसके सिर को अपनी एक हथेली से सहारा देकर दूसरे से उसके निरंतर झरते आँसू को पोंछा और फिर उसे अपने कंधे पर टिका लिया। जबकि वह स्वयं भी अन्तः से पूरी तरह से टूट चूका था, पर इस समय चारुता को सहारा देना ही उसकी प्राथमिकता थी। उसकी आँखें भी अश्रू से परिपूर्ण लालिमायुक्त थी। फिर भी वह अपने हृदय को मजबूत कर इस समय चारुता को सहारा देने की कोशिश कर रहा था।
कुछ समय पहले ही डॉक्टर ने उन दोनों को उनके सात वर्षीय पुत्र अंशुमान (अंशु) की मृत्यु की दुखदायी सूचना दी थी। एक सप्ताह पूर्व ही अंशु अपने मकान के ही छत पर से खेलते हुए सिर के बल पर नीचे के पक्के फर्श पर आ गिरा था। वहीं पर उसके मुँह, नाक और कान से रक्तश्राव होने लगे थे। उसकी मम्मी चारुता उसे जल्दी अस्पताल में ले आई थी। खबर पा कर सुधांशु भी अपने दफ्तर से सीधे अस्पताल में पहुँचा था। पहले अंशु को इमरजेंसी वार्ड में, फिर उसे विशेष निगरानी कक्ष (ICU) में रखा गया। लेकिन तब से वह बेहोश ही पड़ा रहा है, उसे होश नहीं आया। गहरी चिकित्सीय जाँच-पड़ताल के बाद ही डॉक्टर उसके मस्तिष्क को मृत घोषित कर चुके थे और फिर आज उसे पूर्ण मृत घोषित कर दिए।
सुधांशु एक ‘MNC’ में उच्च पद पर आसीन था, जबकि चारुता एक बैंक में ‘PO’ के पद पर आसीन थी। उनके विवाह के छः वर्ष बाद ‘अंशु’ अर्थात ‘अंशुमान’ का जन्म हुआ था। चारुता की गोद में उसके आते ही उनका घर-संसार चहक उठा था। अंशुमान उम्र के हिसाब से कहीं अधिक मेधावी था, बड़ा ही हँसमुख बालक था। उसे देख कर माता-पिता दिन भर की अपनी सारी थकाने भूल जाया करते थे। यही तो उनके जीवन का आधार भी था। पर इन खुशियों पर अचानक न जाने कैसे यम की बुरी नजर लग गई। फिर उसे बच्चे, जवान और बूढ़े से क्या मतलब? अब तक अस्पताल में उनके कई मित्रगण भी पहुँच गए थे।
अंशुमान की एक-एक हरकत और उसकी एक-एक बातों को स्मरण कर आज सुधांशु और चारुता दोनों ही अपने विवेक, बुद्धि और शालीनता को खोये जा रहे थे। कैसे अंशु बड़ा होकर डॉक्टर बनने की बातें कहता था। कभी तो वह ‘सचिन तेंदुलकर’ सहित ‘महेंदर सिंह धोनी’ जैसे क्रिकेटर, तो कभी ‘सिंघम’ की भांति ताकतवर पुलिस अफसर बनने की बातें कहता था और एक दिन टीवी पर कोई कार्यक्रम को देखते हुए अंशु ने अचानक कहा था, – मम्मी! पापा! मरने पर मैं भी अपने अंगों को दान कर दूँगा, जिससे किसी को जीवन मिल सके।’
उस दिन उसकी बातों को सुन कर चारुता अचम्भित भी हुई थी, फिर उसने तुरंत ही उसे समझाते हुए कहा था, – ‘बेटा अंशु! शुभ-शुभ बोलो।’
उस दिन की बात को स्मरण कर चारुता अपने पति सुधांशु से अवरुद्ध कंठ से कुछ बोली। फिर दोनों ‘ICU’ के उसी कक्ष में पहुँचे, जहाँ एक बेड पर कुछ दिन पूर्व का उनका चंचल अंशु आज बेजान पड़ा हुआ था। डॉक्टर के आदेश पर अस्पताल के स्टाफ अंशुमान के मृत शरीर को शवगृह में ले जाने के लिए उसे तैयार कर रहे थे। डॉक्टर ने इन दोनों को देखते ही कुछ जरुरी कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए उन्हें सुधांशु की ओर बढ़ा दिया। सुधांशु अपनी सिसकती पत्नी को सहारा दिए हुए कहा, – ‘डॉक्टर! मेरे अंशु की इच्छा थी कि उसकी मृत्यु के उपरान्त उसके अंगों को दान कर दिया जाय, जिससे किसी लाचार को जीवन मिल सके।’
‘यह तो बहुत ही अच्छी बात है, इतने छोटे बच्चे के मन की यह बात स्वागत योग्य है मैं इसकी प्रशंसा करता हूँ। आज ही इसी अस्पताल से एक गरीब बच्ची के जीवन की रक्षा के लिए ‘हृदय Heart’ की इन्क्वारी सर्च भेजी गई है। आपके बच्चे का हृदय उस बच्ची को जीवन दे सकता है। उस बच्ची के माध्यम से आपके मृत अंशुमान का हृदय धड़कते हुए आप सब के बीच वर्षों तक जीवित रहेगा। उस गरीब परिवार की दुआएँ भी आपको मिलता रहेंगी। पर इसके लिए तुरंत ही आप दोनों की रजामंदी ‘Consent letter’ चाहिए।
निरंतर प्रवाहित हो रहे अश्रू से सराबोर अपने चेहरे को पोंछती हुई चारुता ने कहा, – ‘जी डॉक्टर! हमारे अंशुमन की यही इच्छा थी। हम भी चाहते हैं कि उसकी यह इच्छा अवश्य पूरी हो। हम दोनों अपना consent देते हैं।’
डॉक्टर अस्पताल के स्टाफ को अंशुमान के मृत शरीर को तुरंत ही ऑपरेशन थियेटर में ले जाने का आदेश देकर सुधांशु और चारुता दोनों को अपने साथ अपने कक्ष में ले गया।
सचमुच उस गरीब बच्ची सलोनी की छाती में अंशुमान के हृदय को सफलतापूर्वक पुनर्स्थापित कर दिया गया। इस बीच सुधांशु और चारुता दोनों उस सलोनी से मिलने अक्सर अस्पताल में आते ही रहें। उसके हाल-चाल लेते ही रहें। यहाँ तक कि उसके गरीब माँ-बाप को कुछ आर्थिक मदद भी करते ही रहें।
कोई पचीस दिनों तक डॉक्टरों की विशेष निगरानी में रहती हुई सलोनी अब पूर्णतः स्वस्थ बताई गयी और अब उसे घर जाने की इजाजत दे दी गई। घर क्या था? गरीबों की बस्ती थी। बाप एक मिल में मजदूर था और उसकी माँ कुछ सिलाई बुनाई का काम कर लिया करती थी। दोनों के प्रयास से किसी तरह से उनका घर-संसार चल रहा था।
सुधांशु और चारुता दोनों को ही सलोनी के साथ कुछ स्नेह-सा हो गया था। अक्सर उससे मिलने के लिए दोनों आ जाया ही करते थे। जब तक उसके पास रहते तब तक उन्हें अपने अंशु को अपने पास होने का भ्रम होता था। आखिर आते भी क्यों न? सलोनी के सीने में धड़कता हृदय तो उनके अंशु का ही है। उस धड़कन को वे दोनों बखूबी से पहचानते हैं।
उनके दिवंगत पुत्र अंशु का जन्मदिन था। पहले तो आज के दिन की बात ही कुछ और ही हुआ करती थी। सुबह से ही विशेष तैयारियाँ शुरू हो जाती थीं। नए-नए कपड़ों, नये-नये खिलौनों और जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने वाले अपने मित्रों के लिए अंशु के कई लिस्ट शाम तक बनते और फटते ही रहते थे।
लेकिन आज उनसे ढेर सारे कपड़ों, खिलौनों और मिठाइयों की माँग करने वाला उनके पास कोई न था। उसे ही याद कर दोनों सलोनी से मिलने आये थे। साथ में आज बिन माँगे ही सलोनी के लिए कुछ नए कपड़े, कुछ खिलौने और कुछ मिठाइयाँ लेकर आये थे। शायद सलोनी की हँसी-ख़ुशी से उसके अंशु का हृदय प्रसन्न रहे! अब तो सलोनी भी उन्हें अपना ही लगने लगी है। उसके सीने में आज जो हृदय धड़क रहा है, वह तो आखिर उनके ही हृदय का एक टुकड़ा है। उनके रक्त की कुछ बूंदें उनके अंशु के हृदय के मार्फ़त अब सलोनी की धमनियों में उसके रक्त के साथ मिलकर अवश्य ही दौड़ रहे होंगे।
सलोनी की छाती पर आपरेशन के बाद के अभी भी सटे हुए कपड़े थे। वह ढेर सारे खिलौनों, कपड़ों और मिठाइयों को देख कर बहुत खुश हुई थी। उससे बातें कर चारुता लगभग रोने ही लगी थी। परन्तु यह तो उसके हृदय में स्थित उसकी ममता की प्रसन्नता का क्रुन्दन है। किसी द्वारा प्रताड़ना की नहीं, पर आज उसे अपनी इस रुलाई पर कोई दुःख या शोक नहीं है। किसी से कोई शिकायत या शिकवा भी नहीं है। सुधांशु अपनी पत्नी चारुता को धीरज बँधाते हुए अपने बैग से एक डाक्टरी आला (stethoscope) निकाला और उसके श्रवण सिरे को चारुता के कानों में लगा कर उसके दूसरे ध्वनि ग्रहण सिरे को सलोनी की छाती पर रखा।
हृदय की धड़कन के ‘धड़-धड़-धड़’ की आवाज चारुता के कानों में साफ़ गूँजने लगी। यह ‘धड़-धड़-धड़’ की आवाज उसके लिए बहुत ही जानी-पहचानी थी। अक्सर वह अपने अंशु को अपने सीने से लगाये इस ‘धड़-धड़-धड़’ की आवाज को वर्षों तक सुनती आई थी। एक तरह से वह तो उसके हृदय से ही उत्पन्न हृदय की आवाज है। आज कई दिनों के बाद उसी ‘धड़-धड़-धड़’ की आवाज को वह पुनः आत्मसात कर रही थी। उसे भला कैसे न पहचानती?
उस धड़कन की आवाज की आत्मीयता और मानसिक तीव्रता इतनी प्रबल थी, कि उसके मन की वात्सल्यता पिघल कर अश्रू के रूप में उसकी आँखों के द्वार से होते हुए उसके गालों पर और फिर वहाँ से धरती पर बूंद-बूंद गिरते जा रहे थे। उसकी कम्पित गले से टूटते बोल निकले, – ‘सुधांशु! यह मेरे अंशु की धड़कन की आवाज है, इसको मैं खूब पहचानती हूँ। सुधांशु! मेरा अंशु मरा नहीं है, आज भी जीवित है। सुनो, तुम भी अपने अंशु के हृदय की धड़कन को सुनो। शायद अंशु तुमसे भी कुछ कहना चाहता है।’ – अन्तः से गदगद चारूता अपने कान से आला को निकाल कर सुधांशु के कान में लगा दी।
सुधांशु भी सलोनी के माध्यम से अपने दिवंगत पुत्र के हृदय की धड़कन को सुना। ऊपर से गम्भीर, पर अन्तः से उसकी भी आत्मा क्रुन्दन करती हुई अंशु को स्मरण कर रही थी। बाहरी सांसारिकता उसके पलकों को दबाने की नाकाम कोशिश तो करती ही थी, पर अन्तः वेदना की तीव्रता उसके पलकों को जबरन उठा देती और अश्रूकण बाहर टपक कर आंतरिक भेद को व्यक्त कर ही दे रहे थे। पर सब कुछ मौन-मूकता के साथ। हृदय के परस्पर सम्बन्ध में मौन-मूकता अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया करती है।
सलोनी जब सुधांशु को भी ‘पापा’ और चारुता को भी ‘मम्मी’ कह कर पुकारती है, तो इन दोनों का हृदय गदगद हो जाता है। सलोनी अब बारह वर्ष की बहुत ही सुंदर बालिका है और वह भी बहुत ही मेधावी है। सातवीं की कक्षा में वह प्रथम आई है। वह अपने परीक्षाफल को हाथ में थामे अति उल्लास से दौड़ती हुई ‘पापा’… ‘मम्मी’ कहती हुई इस घर में प्रवेश की। सुधांशु और चारुता भी ‘अंशु’ कह कर आगे बढ़े और दोनों ही एक साथ उसे अपने गले से लगा लिये। पल भर में प्रसन्नता की आँसू दोनों की आँखों में उमड़ आये। सलोनी के माता-पिता उसके पीछे खड़े इस स्वर्गीय आनंद को ले रहे थे, अन्यथा उनकी इतनी कहाँ क्षमता कि अपनी बच्ची को किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़वाए। जबकि घर में दक्षिणी दीवार के सहारे एक ताक पर सफ़ेद पुष्पों से सुसज्जित एक सुंदर चित्र में ‘अंशुमान’ भी इस मनोरम दृश्य को देखकर ही आज कुछ ज्यादा आनंदित हो रहा था। शायद अबोधता में व्यक्त उसकी इच्छा पूर्ण होती दिखाई दे रही है।
श्रीराम पुकार शर्मा
हावड़ा –1 (पश्चिम बंगाल)
ई-मेल सम्पर्क सूत्र – rampukar17@gmail.com