मेवात की घटना आत्म चिंतन का विषय

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। हरियाणा के मेवात के नूंह में मुस्लिम समुदाय द्वारा शिव श्रद्धालुओं पर अचानक हमले में 3 लोगों की मौत हो गई जबकि सैकड़ों लोगों को चोटें आई। 40 से ज्यादा वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। यह घटना तब हुआ जब विश्वहिंदू परिषद ने ब्रज मंडल शोभा यात्रा निकाली। दंगाइयों ने नरहल शिव मंदिर को चारो तरफ से घेर कर फायरिंग भी की, नज़ारा भयावह था। श्रद्धालुओं के ऊपर पहले से सुनियोजित इस हमले से किसी को संभलने का मौका नहीं मिला और लोगों में चीख पुकार मच गई महिलाओं, बच्चों ने किसी तरह भाग कर अपनी जान बचाई। यह घटना रामनवमी के शोभा यात्रा के ऊपर पथराव और गोलीबारी जैसा ही था किंतु इसमें जान वाहन की क्षति ज्यादा हुई। किंतु दुर्भाग्य इस बात की है की अब तक भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर किसी भी राजनैतिक पार्टी ने इस घटना की भर्त्सना नही की। कारण मसला यहां हिंदू समाज के क्षतिपूर्ति से जुड़ा हुआ है।

यह समस्या केवल नूंह जैसे इलाके की नही है यह पूरे भारत की समस्या बन चुकी है। जिसकी नीव जिन्ना ने आजादी के पहले ही बोया था जो अब विशाल वट वृक्ष बन चुका है। मेवात एक ऐसा शहर है जिसे मिनी पाकिस्तान भी लोग कहते है जो आज रोहिंगियाओ का सुरक्षित ठिकाना बन गया है। ऐसे क्षेत्र भारत के हर राज्य में मिल जायेंगे जहां आतंकवाद और भारत को तोड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। धार्मिक आधार पर इनकी सोच आज भी मुगल आक्रांताओं से मिलती है जो हिंदुओं के पूजास्थलों को तोड़ने को उतावले रहते थे और यही हुआ नूंह में, जहां महाभारत कालीन 5000 साल पुराने नरहाल शिव मंदिर पर कब्जा करने और उसके निशान को मिटाने के लिये श्रद्धालुओं को जलाभिषेक करने से रोक दिया गया। दुर्भाग्य है की ऐसा उस देश में हो रहा है जहां हिंदू बहुसंख्यक है।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक /कवि

अब प्रश्न यह उठता है की क्या मेवात या फिर मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं को कोई भी धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए मुस्लिम संगठनों से अनुमति लेनी पड़ेगी? जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश और तमाम मुस्लिम देशों में लेनी पड़ती है। यह हिंदुओं के लिए आत्मचिंतन का विषय है। इतने बड़े इस घटना के बाद फिर पहले की घटनाओं की तरह धर्मनिरपेक्ष नेता सद्भावना रैली निकालेंगे, मीडिया जगह देखकर अपनें अनुसार हो हल्ला मचाएगी और विज्ञापन से पैसों की बरसात करेंगी। नेता जांच की बात करेंगे एक कमेटी का गठन होगा फिर धीरे धीरे यह घटना ठंढे बस्ते में चली जायेगी। अगर प्रभु की कृपा हुई प्रशासन ने ईमानदारी दिखाई तो अफजल जैसा कोई मास्टर माइंड आतंकी पकड़ा जाएगा। न्यायालय फांसी की सजा सुनाएगी और यहां के कामरेड, सपाई, कांग्रेसी, लालू, ममता सरीखे लोग आसूं बहाएंगे और फिर तुष्टिकरण को बढ़ावा देंगे और ऐसे घटना की फिर पुनरावृति होगी। यानी सब कुछ धर्म निरपेक्षता को सामने रख कर।

अब सवाल उठता है की कब तक ऐसा चलता रहेगा। कब तक देश द्रोहियों की हिमायत करेंगे यहां के बेशर्म नेता। आज भारत के नर्म रवैए का ही कारण है कि वंदे मातरम जैसे शब्दों को भी लोग हमारे परिचय से अलग करने को कह रहे है कहने का मतलब की जहां भी दंगा होता है हमारे देश के नरम रवैये के कारण ही होता है। आज यही सत्य है की ये दंगाई किसी धर्मनिरपेक्षता की झूठी वकालत करने वाले नेता का पिट्ठू बन कर दंगा करनें के बाद भी सीना फुलाकर समाज में बिना किसी डर के घूमता है और प्रशासन नेताओं के फोन का इंतजार करती है की अपराधी को छोड़ा जाए या नहीं फिर शुरू होता है धर पकड़ का सिलसिला। आजादी के 76 साल से भारत में नेहरूवाद, हिंदू विरोधी, कांग्रेस, कम्यूनिष्ट और समाजवादी अंततः भाजपा सहित तुष्टिकरण की सरकार रही जिन्होंने अल्पसंख्यकों के वोट पाने के लिये उनका गलत फायदा उठाकर उनको भड़काया और विश्वासघात द्वारा इस भारत को विकृत कर सेक्युलर देश बनाया।

जहां बहुसंख्यकों के धार्मिक लोकतांत्रिक मानवाधिकारों को कुचला गया। वोट के लिए देशघाती, जातिवाद, भाषावाद प्रांतवाद, संप्रदायवाद का जहर फैलाया गया। उसी का नतीजा कश्मीर में देखने को मिला जहां अत्यंत सहनशील विश्व का कल्याण चाहने वाले हिंदुओं पर कश्मीर में केवल एक संप्रदाय के वर्चस्व के लिये उसे घर से भगाया गया उनके हाथ, पैर, नाक, जीभ यहां तक कि उनके गुप्तांग तक को भी काट दिया गया। फिर भी जुलाई 1990 में भयभीत हिंदुओं के लिए सेक्युलरवादी नेताओं ने सेना नही भेंजी थी! अपनें ही घर में अपमान का घूंट और जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर हिंदू कमजोर होते चले गये और आतंकवाद और दंगाइयों के मनोबल बढ़ते चले गये। ठीक मेवात की तरह जहां हिंदू घूंट-घूंट कर मरने को मजबूर है। भारत का इतिहास बतलाता है की भारत में जब-जब हिंदू कमजोर हुए है देश पर संकट का बादल गहराया है।

धर्म निरपेक्षता का अर्थ किसी धर्म विशेष की अनदेखी या किसी की तुष्टिकरण नही होता यह सर्वधर्म समभाव का प्रतीक है जो अपना अर्थ भारत में को चुका है। अब तो अक्सर आतंकी संगठनों के एजेंट पकड़े जाते है जो खतरों के संकेत देते है और देंगे क्यों नहीं इनके पनाहगार तो भारत के लोग ही होते है जो धर्म के आधार पर इनकी खिदमत करते हैं और इनकी सुरक्षा भी निश्चित करते हैं।इस बार भी हरियाणा के भाजपा मुख्य मंत्री का अतिविश्वास नूंह में दंगा के रूप में सामने आया। ऐसे में धर्म निरपेक्षता का नारा बुलंद करने वाले लोगों को चाहिए की वे वस्तुस्थिति को सही परिपेक्ष्य में देखें तथा दोषियों को कठोर सजा दिलाने के लिए वचनबद्ध हो। पूरे भारत की स्थिति इस दंगाइयों की वजह से चिंताजनक है। पुनः आत्म चिंतन का विषय है। इन दिनों सांप्रदायिकता का भय दिखा कर धर्म निरपेक्षता को खूब उछाला जा रहा है आखिर इस प्रकार के शब्दों की आवश्यकता ही क्यों पड़ रही है। प्रायः दंगाई एक हीं धर्म विशेष के ही लोग क्यों होते है?

क्या भारत की बहुसंख्यक आबादी ने कोई ऐसा कदम उठाया है जिससे लगता है की अन्य धर्मों का अनादर किया जा रहा है या उनकी सामाजिक गतिविधियों में अड़चने डाली जा रही हो। यह एक अकाट्य तथ्य है कि यह सारी सुविधा तभी तक है जब तक इस देश में हिंदू बहुसंख्यक है जिस दिन यह स्थिति उलट जायेगी उस दिन यह शब्द अपना अर्थ खो देगा, जिसे हम धर्मनिरपेक्षता कहते है। इसके उदाहरण इस्लामिक देश है और इसके प्रचारक मौन साध लेंगे। हमारी सहिष्णु संस्कृति की व्याख्या जब तक बंद नही होगी दंगाइयों का मनोबल बढ़ेगा। आज जो भी भारत विरोधी संगठन है कहीं न कहीं वो हिंदू विरोधी ख़ेमे के साथ जुड़ा हुआ है चाहे वो माओवादी संगठन हो, कुकी संगठन हो, कामतापूरी संगठन हो या फिर नक्सली या फिर दंगाई। युवा भी कहीं न कही आईएसआई के हाथों के कठपुतली बने हुए हैं ,चाहे वो पैसों के लिए हो अथवा धर्म के नाम पर गुमराह होने के कारण मगर उद्देश्य तो आईएसआई का पूरा होता है हिंदुओं के समूल को खत्म करने का।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं और दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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