शैल उत्सव : अखिल भारतीय मूर्तिकला शिविर का चौथा दिन
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सहयोग से वास्तुकला एवं योजना संकाय टैगोर मार्ग कैंपस में इन दिनों शैल उत्सव : आठ दिवसीय अखिल भारतीय समकालीन मूर्तिकला शिविर का आयोजन किया गया है। यह शिविर क्यूरेटर डॉ. वंदना सहगल (अधिष्ठाता,वास्तुकला एवं योजना संकाय) के मार्गदर्शन में हो रहा है।
शिविर के चौथे दिन कलाकारों ने पत्थर पर अपनी भावनाओं को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। पत्थर या कोई भी सामग्री हो, अनूठी कल्पनायें और श्रम की युति के बग़ैर कोई जगह कभी स्थान नहीं बना सकता। यह कलाकारों का मानना है। शिविर के कोऑर्डिनेटर और डॉक्यूमेंटेशन टीम धीरज यादव, रत्नप्रिया, हर्षित सिंह और जुबैरिया कमरुद्दीन इस शिविर के पूर्ण दस्तावेजीकरण करने का कार्य बखूबी कर रहे हैं।
कोऑर्डिनेटर भूपेंद्र अस्थाना ने बताया कि वास्तुकला संकाय परिसर में चल रहे मूर्तिकला शिविर में भाग लिए दस मूर्तिकारों में से उत्तर प्रदेश लखनऊ से मुकेश वर्मा इस शिविर में मिक्स मीडिया में विषय प्रकृति को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं। जिसमें वे बीज से विशाल वृक्ष तक की यात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं। मुकेश लखनऊ में कई आर्ट प्रोजेक्ट किए हैं। उन्होंने 2006 में लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट्स से मूर्तिकला में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की 2008 में लखनऊ विकास प्राधिकरण में एक ड्राफ्ट मैन के रूप में और एक कलाकार के रूप में भी शुरू किया है। उन्होंने G.20 पर काम किया। उन्हें उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री, एलडीए द्वारा और कई अन्य कुछ प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। उनकी विशिष्ट शैली स्क्रैप धातु से प्रकृति के तत्वों पर काम करना है। उन्होंने मुख्यमंत्री आवास के सामने स्क्रैप से एक मोर बनाया। विभिन्न मीडिया में मुकेश का काम अधिक यथार्थवादी है। उनके काम में पैमाने और वास्तविकता की दृष्टि से जीवंत गुणवत्ता है।
शिविर में लखनऊ से ही दूसरे मूर्तिकार अजय कुमार हैं। अजय ने ग्वालियर से कला में स्नातक और लखनऊ आर्ट्स कॉलेज से परास्नातक पूर्ण किया। फिलहाल वर्तमान में लखनऊ रहते हुए ढोगरा जनजाति संग्रहालय भोपाल से पिछले तीन वर्षों से कला में शोध कार्य भी कर रहे हैं। उन्होंने कानपुर विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में काम किया और वर्तमान में कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट, लखनऊ में सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम कर रहे हैं।
वह आमतौर पर प्रकृति, मूलतः भूमि और आकाश से प्रेरणा लेता है ये उनके काम के मूल तत्व हैं। वे हमेशा धातु, खुरचन और पत्थर पर प्रतीकात्मक रूप में काम करते हैं। वह आमतौर पर धातु पर अपना काम करते हैं। वह ललित कला केंद्र (लखनऊ) में भी वर्कशॉप में कार्य करते हैं। इटालियन कास्टिंग (डोंगरा कास्टिंग से प्रेरित) इसमें उन्होंने केवल सामग्री बदली, वे मिट्टी के बजाय पीओपी और ईंट की धूल (सुरखी) का उपयोग करते हैं।
अजय के मूर्तिशिल्प लखनऊ में संगीत नाटक अकादमी, ललित कला अकादमी, दिल्ली और नोएडा, कानपुर, मथुरा, ग्वालियर विश्वविद्यालय, जबलपुर विश्वविद्यालय और भोपाल जनजातीय संग्रहालय में संगृहीत है। अजय अपने मूर्तिशिल्प में ज्यादातर धातु और स्क्रैप का उपयोग किया जाता है। अजय का काम पत्थर में अमूर्त मूर्तियां बनाना है। उनकी रचनाओं में प्रत्येक घटक या पहलू से जुड़ाव है। जिस तरह से आँख अपना काम करती है उसमें एक सहजता है।
शिविर में लखनऊ से ही एक और मूर्तिकार अवधेश कुमार जिन्होंने लखनऊ आर्ट्स कॉलेज से बी.एफ.ए. और शकुंतला विश्वविद्यालय, लखनऊ से परास्नातक किया। वह ज्यादातर प्रकृति विषय पर काम करते हैं। मूलतः घनों के रूप में प्रकृति के असंतुलन को दर्शाते हैं। ठोस घन प्रकृति का प्रतिनिधित्व करते हैं और खोखला क्षेत्र प्रकृति की हानि का प्रतिनिधित्व करता है। वह पत्थर और लकड़ी दोनों माध्यम में काम करते हैं। ज्यादातर स्टैंडस्टोन का उपयोग किया है। वह जबलपुर और ग्वालियर में शिविरों में भी भाग लिया हैं। लखनऊ में यह उनका पहला कैंप है।
अवधेश की रचनाओं में एक ही समय में अलग अलग स्केल में होते हैं जो कभी-कभी काम में बनावट जोड़ते हैं। वह इंस्टॉलेशन बनाने के लिए ज्यादातर मुख्य भाग के बाहर फोकस जोड़ता है। धीरज यादव ने बताया कि शिविर में आये सभी शिल्पकारों के कृतियों की एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन अगले दो दिनों में किया जायेगा। जिसमे सभी कलाकार अपने अपने कार्यों, कृतियों के माध्यम, तकनीकी की विस्तृत जानकारी साझा करेंगे। जिससे शिविर का मूल उद्देश्य पूर्ण होगा। इस बहाने सभी कलाकार एक दूसरे कलाकारों की कलाकृतियों से परिचित भी होंगे।
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