मानव संबंधों में सबसे बड़ी गलती- हम आधा सुनते हैं, चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं लेकिन प्रतिक्रिया दुगनी करते हैं

व्यक्ति खुद की गलती पर अच्छा वकील बनता है और दूसरों की गलती पर सीधा जज बन जाता है
गुप्त सेवा महासेवा, गुप्त दान महादान विलुप्तता की ओर- मैं मेरी सेवा, मेरा वित्तीय योगदान, मेरा सहयोग विचारधारा तेज रफ्तार से बढ़ी- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत एक दुनियां का सबसे बड़ी 144.17 करोड़ वाली जनसंख्या का देश है। जहां हमारी लाखों जातियां, उपजातियां व धर्म के लोग एक साथ एक ही देश राज्य जिले शहर व गांव में रहते हैं, इसलिए भारत को धर्मनिरपेक्ष वाला देश कहा जाता है।यह सब जानकारी हम वर्षों से सुनते आ रहे हैं, परंतु सबसे बड़ी बात इतनी विशाल जनसंख्या वाले देश में मानव संबंधों को रेखांकित करना जरूरी है, कि कैसे आपसी तालमेल से रहते आ रहे हैं, जबकि आज के डिजिटल युग में मानवीय संबंधों में तुरंत खटास आ जाती है, क्योंकि आज कोई भी सुनना समझना सोचना नहीं चाहता, बस मेरी मुर्गी की एक टांग वाली कहावत अपनाने याने अपनी चलना चाहता है, जो सबसे बड़ी गलती है। यह विषय आज मैंनें इसलिए चुना है क्योंकि आज रविवार दिनांक 21 अप्रैल 2024 को मैंने एक सामाजिक व्हाट्सएप ग्रुप चालू किया तो उसमें चैटिंग के जरिए किसी मुद्दे पर बहसबाज़ी शुरू थी, समाज के किन्हीं ग्रुप पर कोई अन्य ग्रुप की टीका टिप्पणी शुरू थी और किसी ने वॉट्सएप में एक इमेज डाला जिसमें लिखा था मानव संबंधों में सबसे बड़ी गलती है कि हम आधा सुनते हैं,चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं लेकिन प्रतिक्रिया दुगनी करते हैं वाह! क्या बात है! मैंने उस समय इस इमेज को कोटिंग टैग करके लिखा आज में इस विषय पर ही आलेख लिखूंगा। हमें इस टैग में लिखी गई लाइनों का आंकलन राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक रूप से अधिक समझने की जरूरत है, क्योंकि यही से खटास का कटाक्ष शुरू होता है और संबंध बिगड़ने शुरू हो जाते हैं, क्योंकि हर स्तर पर हम उपरोक्त लाइनों में दी गई गलतियां करते हैं, तो दूसरी तरफ हमारे अंदर यह कमी है कि किसी की अभूतपूर्व सफलता से खुद को असहज महसूस करते हैं, जिसका प्रचलन आज बढ़ते जा रहा है जो बहुत खेदजनक है।

आज अगर राजनीतिक सामाजिक स्तर पर कोई व्यक्ति हमसे आगे निकल रहा है तो हम उसकी टांग खींचने की कोशिश करते हैं। यही कारण है कि आज अनेक बड़े-बड़े संगठनों का विघटन होकर छोटे-छोटे संगठन बढ़ रहे हैं, हर कोई नेतृत्व करना चाहता है, मेरे एक दोस्त ने सही कहा कि हमारे मोहल्ले में हर दो घर छोड़कर एक सेवादारी या नेता आदमी तैयार है, कोई अपने संगठन का संस्थापक, अध्यक्ष या फिर जुझारू नेता कार्यकर्ता का टैग लगाकर चल रहा है। अपनी गलती पर वह एक अच्छा वकील बनकर सफाई देता है तो वहीं दूसरी ओर दूसरों की गलती पर सीधे जज बनकर उसके खिलाफ फैसला देकर उसकी रेपुटेशन अर्थात इज्जत की सरेआम हत्या कर देता है जो उचित नहीं है। चूंकि आज दिखावापन अधिक हो गया है, इसीलिए गुप्त सेवा महासेवा, गुप्तदान महादान विलुप्तता के कगार पर है और मैं मेरी सेवा, मेरा वित्तीय योगदान मेरा सहयोग विचारधारा तेज गति से बढ़ रही है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, मानव संबंधों में सबसे बड़ी गलती हम आधा सुनते हैं, चौथाई समझते हैं शून्य सोचते हैं लेकिन प्रतिक्रिया दुगनी देते हैं।

साथियों बात अगर हम अपनी गलती की करें तो, जीवन में सबसे बड़ी गलती यह है कि हम आधा सुनते हैं, चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं, लेकिन प्रतिक्रिया दुगनी करते हैं। दुनियां में इंसान को हर चीज मिल जाती है, लेकिन नहीं मिलती है तो सिर्फ अपनी गलती। गलती निकालने के लिए दिमाग चाहिए और उसे कबूलने के लिए कलेजा चाहिए। कई बार व्यक्ति खुद की गलती पर अच्छा वकील बनता है और दूसरों की गलती पर सीधा जज बन जाता है। इसलिए दूसरे से हुई गलती को माफ करने में उतना ही उदार होना चाहिए, जितना अपनी गलती के लिए माफी की उम्मीद। कड़वा सत्य है कि क्रोध के समय थोड़ा रुक जाएं और गलती के समय थोड़ा झुक जाएं तो दुनिया की काफी समस्याएं हल हो जाएंगी। गलतियां जीवन का हिस्सा हैं, पर इन्हें स्वीकारने का साहस बहुत कम में होता है। किसी में कोई कमी दिखाई दे तो उसे समझाएं, लेकिन हर किसी में ही कमी दिखाई दे तो खुद को समझाएं। गलती होने पर उसे सही ठहराने के बजाय उसे स्वीकारने और क्षमा मांगने की हिम्मत दिखाएं। अहंकार इसलिए खराब है कि यह महसूस नहीं होने देता कि हम गलत हैं। अपनी त्रुटियों के विषय में हम खुद को धोखा देते रहते हैं और आखिरकार उन्हें अपना गुण समझने लगते हैं। अनजाने में हुई गलतियां उतनी परेशानी नहीं देतीं, जितनी जानबूझ कर की गई गलतियां। गलती मानने से भविष्य में गलती कम होने की गुंजाइश बढ़ जाती है। इससे आत्मविश्वास बढ़ता है और व्यक्तित्व का विकास भी होता है।

गलती न मानने वाला सबसे ज्यादा गलती करता है और खुद सवालिया निशान बन जाता है। बेशक किसी के जीवन में गलती का दौर कभी और किसी भी मोड़ पर आ सकता है। गलतियां जोखिम भरी होती हैं और मनुष्य उनमें उलझ कर रह जाता है। जिंदगी में गलती होना आम है लेकिन उसका निवारण साधारण नहीं है। स्वभाव में जकड़ी गलतियां व्यक्ति को ऐसे मोड़ पर ले जाती हैं, जहां से लौटना मुश्किल है और उनका दुष्प्रभाव लाजिमी है। बहुत-सी गलतियां गलत सोच, सही जानकारी की कमी, गंभीरता का अभाव, स्थिति की नजाकत को भांपने में कमी आदि के अलावा मार्गदर्शन का अभाव और अनुभवहीनता से भी होती हैं। सारी जिंदगी अच्छा करके भी चंद पलों की गलती हमें बुरा बना देती है। गलती पर साथ छोड़ने वाले तो बहुत मिलते हैं, पर गलती समझा कर साथ निभाने वाले बहुत कम मिलते हैं। गलती उसी से होती है जो काम करता है।

साथियों बात अगर हम जिंदगी में गलती और गलत सोच एक दूसरे से बारीकी जुड़े हुए और पूरक होने की करें तो, दरअसल जिंदगी में गलती और गलत सोच एक दूसरे से बारीकी से जुड़े हैं और पूरक हैं। हमें गलत और गलती को समझने की आदत डालनी चाहिए। उसके लिए जरूरी है कि सही जानकारी रखें, ठीक से विश्लेषण कर सही और गलत के अंतर के अभ्यास से फैसला करें, न कि आंख मूंद कर कुछ भी सोचते, समझते और करते जाएं। आज के युग में सही को सही कहना भी मुश्किल है, क्योंकि अमूमन हम गलत को गलत जानना, समझना, मानना नहीं सीख रहे। गलतियों से सबक लिया तो वे वरदान हैं और नजरअंदाज किया तो अभिशाप भी बन जाती हैं। बता दें कुदरती तौर पर हम अलग-अलग बने हुए हैं, इसलिए हरेक मनुष्य के सोचने-समझने और बोलने का ढंग अलग-अलग है। बहुत बार कहने वाला कुछ कहता है, समझने वाला कुछ और ही समझ बैठता है और उसका फल भी दोनों की सोच से अलग हो सकता है। कुछ लोग जो मन आया, वही काम कर देते है या बोल देते हैं। ऐसे में पैदा होने से लेकर मृत्यु तक गलती का अध्याय भी समांतर खुला होता है, जो कुछ का कुछ करवा देता है और गलती को जीवन में समेटना न केवल मुश्किल होता है, बल्कि उसके घातक परिणाम का अंदाजा लगाना भी असंभव-सा होता है।

कभी-कभी किसी दूसरे की गलती से भी सुख-चैन भंग हो जाता है और बदले में गुस्से से हमसे भी गलती हो सकती हैं, जिसका गहरा अफसोस होता है और दोनों ओर का नुकसान होता है। गलती से दिल पर लगा जख्म कभी कभी बहुत गहरा भी होता है और लंबे समय तक उसकी टीस बनी रहती है। अपनी गलती स्वीकारना झाड़ू लगाने के समान है, जो सतह को चमकदार और साफ कर देती है। कुछ लोग इतने अड़ियल होते हैं कि जिद, अहंकार और झूठी शान से गलती नहीं मानते और गलतियां करते जाते हैं। जिद से हुई गलतियों का अहसास केवल पछतावा नहीं है, बल्कि सोचने और काम करने का तरीका जिम्मेदार है। सबक तभी मूल्यवान है, जब आगे गलतियां न करें। कई लोग गलती निकलने पर बिदकते हैं, पर उन्हें खुश होना चाहिए कि जो सही में गलतियां निकालता है, वह हमें दोष-रहित बनाने में अपना दिमाग और समय लगा रहा है। ऐसा भी देखा गया है कि धन का अनायास आना भी गलतियों को बढ़ावा देता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि भरी हुई जेब आपको कई गलत रास्तों पर ले जा सकती है, लेकिन खाली जेब जिंदगी के कई मतलब समझा सकती है। बचपन में मां-बाप गलतियों के कारण डांटते हैं। बड़े होने पर हमारा रवैया थोड़ा भिन्न हो जाता है और गलती पर टोकना अखरता है।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मानव संबंधों में सबसे बड़ी गलती- हम आधा सुनते हैं, चौथाई समझते हैं, शून्य सोचते हैं लेकिन प्रतिक्रिया दुगनी करते हैं। व्यक्ति खुद की गलती पर अच्छा वकील बनता है और दूसरों की गलती पर सीधा जज बन जाता है। गुप्त सेवा महासेवा, गुप्त दान महादान विलुप्तता की ओर- मैं मेरी सेवा मेरा वित्तीय योगदान, मेरा सहयोग विचारधारा तेज रफ्तार से बढ़ी है।

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