कानपुर में टेस्ट ड्रॉ हुआ, हारे तो नहीं ना, फिर क्यों हो रहा इतना हंगामा

किरण नादगांवकर, मध्यप्रदेश : बात ज्यादा पुरानी नहीं है। भारतीय टीम पिछले दिनों इंग्लैंड के दौरे पर थी। टेस्ट श्रृंखला का दूसरा टेस्ट लॉर्ड्स में था। भारत ने पहली पारी में बनाए 364 रन। इंग्लैंड ने पहली पारी में बनाए 391 रन। इंग्लैंड के पास लीड थी 27 रन की। भारत के सामने चुनौती थी एक ऐसा स्कोर बनाने की जो कम से कम जीत ना सही हार टाल सके। तीसरी पारी में भारत के 208 रन पर 8 विकेट निपट चूके थे और एक संभावित हार नज़र आने लगी थी। लेकिन क्रिकेट ने फिर एक बार अपनी अनिश्चितता दिखाई और नौवे नंबर के लिए जसप्रीत  और मो. शमी ने रिकॉर्ड 89 रन की पार्टनरशिप बना डाली।

शमी ने 56 रन तो जस्सी ने 34 रन ठोक दिए। सामने गेंदबाज थे जेम्स एंडरसन, मार्क वूड, सैम कूरेन। यही नहीं भारत ने पारी घोषित कर दी और फिर पूरी इंग्लैंड की टीम को सिर्फ 120 रन पर ड्रेसिंग रुम की कुर्सियों पर बैठा कर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली। जो मैच भारतीय टीम संभवतः हार रही थी। उसको शमी, बूमराह ने सारे गणित गडबडा कर जीत में तब्दील कर दिया।

इसलिए जो आज सभी न्यूजीलैंड के कानपुर टेस्ट को ड्रॉ करने पर भारतीय स्पिनर्स को या तेज गेंदबाजों को कोस रहे है। उपरोक्त उदाहरण उनके लिए है। जब शमी, बूमराह इंग्लैंड को उसके घर में जाकर ठोक सकते है, तब न्यूजीलैंड के टेल एंडर्स भारत में आकर भारतीय टीम के गेंदबाजों को क्यों नहीं खेल सकते??? यही आज सुबह विलियम समरविल ने 38 रन सौ से ज्यादा गेंदे खेलकर और फिर खेल के आखरी घंटे में रचिन रविंद्र (18 रन 91 गेंद) और एजाज पटेल ने बल्लेबाजी कर कर दिखाया है। निश्चित ही लॉर्ड्स और कानपुर में परिस्थितियाँ भिन्न थी। लेकिन मैच दोनों जगह बचाए टेल एंडर्स ने ही, अपनी सुझबुझ और अपने कौशल से।

कानपुर के मैच की बात की जाए तो निश्चित ही न्यूजीलैंड ने एक तयशुदा हारा हुआ टेस्ट ड्रॉ करवा लिया। इसके लिए न्यूजीलैंड टीम की वास्तव में प्रशंसा करनी होंगी। अब बात मुद्दे की। बीसीसीआई एक धनाड्य खेल संस्था है यह सर्वविदित है। बीसीसीआई का मुख्य उद्देश्य है भारतीय क्रिकेट का पालन-पोषण और प्रचार-प्रसार। साथ ही उसका एक और उद्देश्य है ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना। किसी बडी खेल संस्था का पैसा कमाने पर लक्ष्य केंद्रित होना गलत नहीं है। क्योंकी उसको एक स्टार-स्टडेड टीम के सारे खर्चे-नखरे उठाने है।

जो लाखों-करोडो के वारे न्यारे करते है। और बीसीसीआई इस मकसद में कामयाब भी होती है। लेकिन अक्सर देखा गया है की कई बार बीसीसीआई ऐसे निर्णय लेती है जो हैरानी वालें होते है। भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा क्रिकेट स्टेडियम है। बीसीसीआई हर द्विपक्षीय श्रृंखला में इन बातों का ध्यान रखती है कि देश भर में फैले अलग-अलग राज्यों के हर स्टेडियम को मैच मिले और उस क्षेत्रीय बोर्ड की आर्थिक स्थिति सुदृढ बनी रहे। इस बार न्यूजीलैंड टीम जब भारत में आई तब दो टेस्ट मैचों में पहला कानपुर और दूसरा मुंबई को दिया गया।

लेकिन कानपुर में जब यह टेस्ट खेला गया तब समझना मुश्किल है की इसको किस आधार पर यह टेस्ट मुहैया कराया गया ?? दरअसल कानपुर में पूरे पाँचों दिन विजेबलेटी या मध्यम रोशनी की समस्या रही। जिस तरह इन दिनों दिल्ली एनसीआर प्रदूषण से प्रदूषित है और वहां दिन-रात ओंस, धूंद, कम रोशनी, प्रदूषण की गहरी समस्या है। वहीं हाल उत्तरप्रदेश में लखनऊ, कानपुर का है। कानपुर में ठंड में भी यह समस्या रहती है। तो फिर आखिर किस आधार पर बीसीसीआई ने कानपुर को इस बार ऐसे समय टेस्ट केंद्र के रुप मंजूरी दी? क्या बीसीसीआई के अधिकारियों या केंद्रों की जिम्मेदारी रखने वालों को इसकी जानकारी नहीं थी?

इतनी समझ तो बीसीसीआई में होंगी की यहाँ विजेबलेटी कम होती है और इससे खेल रोज बाधित होंगा। कानपुर क्रिकेट ऐसोसिएशन ने तो मान लो मैच आयोजन से होने वाली आय के लालच में इस पर बीसीसीआई को कुछ बताना उचित ना समझा हो लेकिन इतने दशकों से देश भर में हर केंद्र पर क्रिकेट आयोजन करने वाली बीसीसीआई के सदस्यों को तो यह याद हो गया होंगा की अमुक केंद्र या स्टेडियम में अमुक समस्या है। लेकिन बीसीसीआई ने इस पर ध्यान देना उचित नहीं समझा और एक पूरे टेस्ट मैच का कचरा पूरे पाँच दिन सुबह-शाम कम रोशनी और कभी-कभी तो पूरे दिन होता रहा। खिलाडी मंद रोशनी में आँखे फाड-फाड कर गेंद को खेलते रहे। अंपायर लाईट मीटर से रोशनी नापकर रोज मैच शाम को समय से पहले बंद करने को बाध्य होते रहे।

न्यूजीलैंड के पुछल्ले बल्लेबाजों ने मैच के आखरी घंटे में आठ ओवर खेलकर निश्चित ही बहादुरी भरी बल्लेबाजी की लेकिन 96 ओवर पूरे होने के बाद भी लगभग सात मिनट का खेल कम रोशनी के कारण रोक दिया गया। ये सात मिनट भारत की जीत के लिए कितने महत्वपूर्ण थे ये हर कोई अच्छे से समझ सकता है। बस एक अकेले बीसीसीआई को छोड के। उस वक्त एक-एक गेंद कीमती थी। मैच भारत के हाथ से जाने का एक प्रमुख कारण कानपुर में हर वक्त कम रोशनी भी कारक रही।

बीसीसीआई को इन सब बातों का विशेष ध्यान रखना जरुरी है। कानपुर में ना पिच टेस्ट मैचों के स्तर की थी ना दिन भर विजेबलीटी की स्थितियां। बीसीसीआई जैसे एक बडे क्रिकेट प्रशासन ने कानपुर टेस्ट के इस आयोजन से अपनी किरकिरी करवाई है। बीसीसीआई को आगे इसको संज्ञान में लेना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर ऐसे निकृष्ट आयोजनों से बचना चाहिए।

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