अन्नदाता तुम आना जब दिल्ली बुलाए ( मरी हुई संवेदना )

किसानों को दिल्ली आने से रोकना सत्ता का अनुचित इस्तेमाल कर तमाम तरह से ,

कितनी लाशों पे अभी तक, एक चादर सी पड़ी है

जाँनिसार अख़्तर जी की ग़ज़ल से दो शेर उधार ले रहा हूं। आज 27 नवंबर

आखिर क्यों दुर्व्यवहार की शिकार हो रही है देश में महिलाएँ?

21वी सदी में बेटियां जहाँ एक ओर कामयाबी की नित नई सीढ़िया चढ़ रही है,

उज्जवल भविष्य निर्माण का मार्ग तलाश करना

आशावादी ढंग से पिछले समय के अनुभव से सबक लेकर हमें विचार विमर्श करते हुए

खुद को आईने में देखना

लोग अपनी पुस्तक के पहले पन्ने पर अपने बारे में लेखन और किताब की बात

विश्व कल्याण नहीं खुदगर्ज़ी में अंधे हम लोग

सोच कर दिल घबराता है कि हम कहां से चले थे हमको किधर जाना था

कांच का लिबास संग नगरी

उनकी नकाब हट गई तो उनका असली चेहरा सामने आएगा जो खुद उन्हीं को डराएगा।

हिंदी, हिंदीं दिवस और हिंदी वाले

मेरी ज़िंदगी गुज़री है हिंदी में लिखते लिखते। 44 साल से तो नियमित लिखता रहा

एक रुपये की इज़्ज़त का सवाल

इधर लोग अपनी इज़्ज़त की बात लाखों नहीं करोड़ों में करने लगे थे। मानहानि के

हम जड़ता में जकड़े लोग (तर्कहीन समाज)

दुनिया अनुभव से सबक सीखती है और अनावश्यक अनुपयोगी अतार्किक बातों से पल्ला झाड़कर सही