खत हवेली का फुटपाथ के नाम ( व्यंग्य-व्यथा ) : डॉ. लोक सेतिया

सत्ता का मज़ाक है कि अट्टहास है क्या है। ये जो बिगड़े रईस ज़ादे होते

रिया सिंह की कविता : “संघर्ष ”

संघर्ष  है जीवन तो, संघर्ष भी है अपनों से मिले कुछ दर्द भी है इन

सोमरस से कोरोना का ईलाज ( हास-परिहास ) : डॉ लोक सेतिया 

जो काम पैसे से नहीं होता सिफारिश से नहीं होता शराब की इक बोतल से

दीपा ओझा की कविता : “काश किसी दिन ऐसा होता”

“काश किसी दिन ऐसा होता” काश किसी दिन ऐसा होता सब कुछ सपने जैसा होता

शहंशाह तलाश लिया हमने ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

नारद जी को समझना था या समझाना उनको पता नहीं चला मगर जैसा उन्होंने वादा

चुनाव अध्यक्ष का ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

हम शांति पूर्वक घर के अंदर बैठे हुए थे कि तभी बाहर से कुत्तों के

रिया सिंह की कविता : “हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा ”

हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है हमारी राष्ट्रभाषा, हिंदी से है मेरी आशा हिंदी ने

ज़िंदगी को फ़नाह कर बैठे  ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया 

कैसे नादान लोग हैं ज़िंदगी से मौत का खेल खेलते हैं। मौत का कारोबार करते

रिया सिंह की कविता : “किताबों से तब प्रेम करना ”

किताबों से तब प्रेम करना  जब लगे तुझे व्यर्थ जीवन किताबों से तब प्रेम करना

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सत्ता का हम्माम सभी एक समान ( व्यंग्य ) : डॉ. लोक सेतिया

हमारे ही देश की नहीं दुनिया भर की आम जनता की तकदीर यही है। उसको