डीपी सिंह की मुक्तक : ज्वार
“ज्वार” पहले सूरज चन्दा मिलकर सागर को उकसाते हैं शान्त पड़े जल को मिलकर वे
रीमा पांडेय की कविता : गुरु की महिमा
गुरु की महिमा हे गुरु! ज्ञान का देना संबल मुझे ज्ञान का दीप जलता रहे
डीपी सिंह की कुण्डलिया
*कुण्डलिया* होते हैं हर वर्ग में, तुष्ट और कुछ रुष्ट। ईश्वर भी क्या कर सके,
प्रमोद तिवारी की कविता : “लाखा पडी उतानी”
“लाखा पडी उतानी” एक था साँप, एक थी लोमडी और एक था सियार, कथा पुरानी
हिन्दी साहित्य परिषद् के बसंत पंचमी और सरस्वती साधना महोत्सव में पूरे देश के कवियों का जमावड़ा
हिन्दी साहित्य परिषद् कोलकाता द्वारा आयोजित कार्यक्रम बसंत पंचमी और सरस्वती साधना महोत्सव कल बड़े
खत्म हो रही मानव संवेदनाओं पर डीपी सिंह की मुक्तक
उत्तर प्रदेश के उन्नाव में तीन बच्चियों को जहर दिया गया है। किसने दिया, क्या
अर्चना पाण्डे की कविता : “सीख लिया”
“सीख लिया” गिरकर उठना सीख लिया अब जख्मों को सीना सीख लिया । हां मैंने
ओ सुकोमल कविमन (गीत) : पारो शैवलिनी
“ओ सुकोमल कविमन” तुमने बहुत से गीत रचे हैं मेरे लिए आज फिर से रचो,
डीपी सिंह की सवैया
सवैया ==== काली अलकैं मुख पर ढलकैं जस नागिन सी बलखाय रहीं मुखमण्डल पर कुछ
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“कुरूक्षेत्र” मेरी नजर से तृतीय भाग (कविता) : प्रमोद तिवारी
कुरूक्षेत्रः मेरी नजर से (तृतीय भाग) है प्राची लाल हो गई, किरण बेहाल हो गई,