डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया 1 जनवरी – कैसा नया साल? मध्य दिसम्बर से शुरू, होय मास “खरमास” रहैं
डीपी सिंह की रचनाएं
राम आएँगे, शबरी को विश्वास था राममय उसका हर श्वास-उच्छवास था आ गये, क्यों कि
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया बोली इक दिन डोर से, आकर तङ्ग पतङ्ग उड़ना है खुलकर मुझे, छोड़ो मेरा
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया न्याय व्यवस्था देश की, बिल्कुल ही है भिन्न तय उत्तर पहले करें, तदनुसार हल
डीपी सिंह की कुण्डलिया
कुण्डलिया हिन्दी में जो हेय था, इंग्लिश देती मान अब रखैल को मिल रहा, लिव-इन
डीपी सिंह की रचनाएं
प्रकृति बिना कैसी प्रगति? डीपी सिंह धुन्ध-धुएँ से हो रहा, आच्छादित आकाश। इस पिशाच के
अभिनन्दन है राम आपका, राम! आपका अभिनन्दन!!
एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद लंका विजय के उपरान्त प्रभु श्री राम अपने घर लौट
डीपी सिंह की रचनाएं
खा के पैसे – ज़मीन, भूल गये कर के वा’दे हसीन, भूल गये देखा हमने
डीपी सिंह की रचनाएं
मैडम का खड़ाऊँ ले, खड़गे जी माथे पर घोड़ों में देखेंगे गधे कितना दौड़ाते हैं
डीपी सिंह की रचनाएं
।।गजल।। उम्र के जिस मोड़ पर लगता था, बेड़ा पार है अब ये जाना, ज़िन्दगी