नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा सहित दिल्ली-एनसीआर की सीमा से लगे राज्यों को पराली जलाने से रोकने और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा। शीर्ष अदालत ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को आड़े हाथ लिया और दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या पर अंकुश लगाने के लिए कई निर्देश जारी किए।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने ऐसे गंभीर मुद्दे का राजनीतिकरण करने के खिलाफ सख्त चेतावनी दी, जो दिल्ली में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है। खंडपीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि दिल्ली के निवासी पड़ोसी राज्यों से आते पराली के धुएं के कारण दमघोंटू हवा पीड़ित हैं, क्योंकि वे (केंद्र और दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारें) कोई समाधान नहीं ढूंढ पा रहे हैं।
आदेश में कहा गया, “यह पिछले पांच साल से चल रहा है। इस मामले में तत्काल कार्रवाई और अदालत की निगरानी की जरूरत है।”शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा कि पंजाब में धान क्यों उगाया जा रहा है, जब पानी का स्तर पहले से ही इतना नीचे है। खंडपीठ ने टिप्पणी की, “आप क्या कर रहे हैं? अपने जलस्तर को देखें। आप पंजाब में धान उपजाने की अनुमति क्यों दे रहे हैं?
आप खेतों में आग लगाकर पंजाब को हरित भूमि से बिना फसल वाली भूमि में बदलना चाहते हैं?” पंजाब सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल गुरमिंदर सिंह ने कई सुझाव देने के साथ ही कहा कि पंजाब में धान की फसल पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू है। इसलिए सीमांत किसान फसल का विकल्प चुनते हैं। यदि केंद्र पंजाब में धान पर एमएसपी हटा देता है, तो वे स्वत: धान को छोड़कर कम पानी की खपत वाली फसलों पर स्विच कर देंगे जो वास्तव में पंजाब राज्य की मूल निवासी हैं।
खंडपीठ ने यह भी कहा कि चूंकि केंद्र पहले से ही बाजरा पर स्विच करने के लिए काम कर रहा है, तो इस धान को किसी अन्य देशी और कम पानी वाली फसल के साथ स्विच किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में आगे कहा कि पंजाब उपमृदा जल संरक्षण अधिनियम, 2009 के पालन पर पुनर्विचार की जरूरत है, क्योंकि यह समस्याएं पैदा कर रहा है और सरकार को इस पर गौर करना चाहिए।
एजी ने कहा कि 15 साल पहले यह समस्या इसलिए नहीं थी, क्योंकि ऐसी फसल नहीं होती थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में पंजाब के एजी के सुझाव पर ध्यान दिया और कहा कि इस बात पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।पराली जलाने के वैकल्पिक समाधान के लिए राज्य वित्त पोषण : पंजाब के एजी ने सुझाव दिया कि चूंकि किसान पराली से निपटने के लिए मशीन खरीदने की लागत वहन करने को तैयार नहीं हैं।
इसलिए पंजाब सरकार पराली को निपटाने के लिए मशीनों की 25 प्रतिशत लागत वहन करने के लिए तैयार है। दिल्ली सरकार 25 प्रतिशत लागत वहन कर सकती है और केंद्र 50 प्रतिशत वहन कर सकता है। किसान गरीबी के कारण पराली जला रहे हैं। दिए गए विकल्पों का पालन नहीं किया जा रहा है।