तीनों आपराधिक कानूनों को अधिसूचित करने में पेंच फंसा?

तीनों नए आपराधिक कानूनों में कई खामियां और विसंगतिया बताकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल
आंदोलनकारी ड्राइवर्स संगठनों को आश्वासन, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका व लोकसभा चुनाव 2024 से तीनों नए आपराधिक कानूनों के अधिसूचित होने पर ग्रहण लगने की संभावना-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करनें, उसको साकार रूप देने के लिए अंग्रेजों के शासनकाल के अनेकों कानून रद्द कर दिए गए हैं, जिनका कोई औचित्य नहीं रह गया था। अब अंग्रेजी संसद द्वारा बनाए गए क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम 1860-2023 तक के युग की समाप्ति करने की पहल कर डिजिटल इंडिया को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए गए हैं। सीआरपीसी आईपीसी और एविडेंस एक्ट क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की बुनियाद है और इन्हें रिप्लेस किया गया है। चूंकि संसद के दोनों सदनों में इन विधेयकों को पास किया गया था और अब माननीय राष्ट्रपति महोदया ने तीनों विधेयकों पर दिनांक 25 दिसंबर 2023 को देर रात हस्ताक्षर कर दिए हैं, राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही अब ये तीनों बिल कानून बन गए हैं। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इन कानून को अधिसूचित करने में अभी के तीन पेंच फसें दिख रहे हैं।

पहला 2 जनवरी 2024 को देर रात्रि केंद्रीय गृह सचिव का आंदोलनकारी ड्राइवर संगठनों को आश्वासन, दूसरा इन कानून में अनेक विसंगतियां व खामियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका और तीसरा दो माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 इन तीन मुद्दों को रेखांकित करते हुए यह संभावना लगाई जा रही है कि फिलहाल इन तीनों कानून को अधिसूचित करने में कुछ समय लगने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता उधर दिल्ली पुलिस ने तो इसे अधिसूचित होने की संभावना के चलते इन कानूनों का अध्ययन करने व अपने विभाग के कर्मियों के लिए अध्ययन सामग्री तैयार करने के लिए 14 सदस्य दल का गठन कर दिया है। चूंकि उपरोक्त तीनों बातों के चलते तीनों अपराध कानूनों को अधिनुचित करने में पेंच फंसा है? इसलिए मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से हम चर्चा करेंगे, आंदोलनकारी ड्राइवर संगठनों को केंद्रीय गृह सचिव का आश्वासन, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका तथा लोकसभा चुनाव 2024 तीनों नए आपराधिक कानून को अतुलित अधिसूचित करने पर ग्रहण लगने की संभावना है।

साथियों बात अगर हम तीनों आपराधिक कानून को अधिसुचित करने में पेंच फंसा होने की करें तो, अखिल भारतीय परिवहन कांग्रेस की बैठक 2 जनवरी 2024 पर केंद्रीय गृह सचिव ने कहा, हमने आज अखिल भारतीय परिवहन कांग्रेस के प्रतिनिधियों से चर्चा की। सरकार ये बताना चाहती है कि नए कानून एवं प्रावधान अभी लागू नहीं हुए हैं, हम ये भी कहना चाहते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 106(2) लागू करने से पहले अखिल भारतीय परिवहन कांग्रेस से विचार विमर्श करने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा। संसद से पारित तीन नए कानून राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद कानून बन चुके हैं। हालांकि, तीनों कानूनों में खामियों का दावा किया जा रहा है। शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर तीनों कानूनों भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य कानून के तहत कार्रवाई पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई है। बता दें कि इन कानूनों के लागू होने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के दौर से चले आ रहे 125 साल से अधिक पुराने कानून- भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और एविडेंस एक्ट को बदला गया है।

जनहित याचिका में दावा किया गया है कि नए कानूनों में कई खामियां और विसंगतियां हैं। आपराधिक कानूनों की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग भी की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा, इन कानूनों से भारत के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग करते हुए, अधिवक्ता महोदय ने जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा, संसद से तीनों कानूनों को बिना किसी बहस के पारित किया गया। जब विधेयकों को पारित किया गया उस समय अधिकांश विपक्षी सदस्य निलंबित थे। उन्होंने कहा कि नए आपराधिक कानून कहीं अधिक कठोर है। याचिकाकर्ता के अनुसार ब्रिटिश कानूनों को औपनिवेशिक और कठोर माना जाता था। अब भारतीय कानून उससे भी अधिक कठोर हैं। पुलिस हिरासत के प्रावधान का उदाहरण देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा, 15 दिनों से लेकर 90 दिनों और उससे अधिक अवधि तक हिरासत में रखने की ताकत देने से पुलिस यातना बढ़ने का खतरा है। यह चौंकाने वाला प्रावधान है।

साथियों बात अगर हम दिल्ली पुलिस की तीनों कानूनों के अधिसूचित होने के बाद की तैयारी की करें तो, दिल्ली पुलिस ने तीन नए आपराधिक कानूनों का अध्ययन करने और अपने विभाग के कर्मियों के लिए अध्ययन सामग्री तैयार करने के लिए 14 सदस्यीय समिति का गठन किया है। यह समिति भारतीय न्याय संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का गहराई से अध्ययन करेगी। आपको बता दें कि हाल ही में तीन नए कानूनों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है और इस महीने के अंत में अधिसूचित होने की संभावना है।

साथियों बात अगर हम नए बनाए गए तीनों आपराधिक कानून को समझने की करें तो, इंडियन पीनल कोड, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित हुआ, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1898 की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 और इंडियन एवीडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 स्थापित हुआ है। समाप्त होने वाले ये तीनों कानून अंग्रेज़ी शासन को मजबूत करने और उसकी रक्षा करने के लिए बनाए गए थे और उनका उद्देश्य दंड देने का था, न्याय देने का नहीं। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो सीआरपीसी को रिप्लेस करेगी, में अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय न्याय संहिता, जो आईपीएस को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है।

भारतीय साक्ष्य विधेयक, जो एविडेंस एक्ट को रिप्लेस किया है, इसमें पहले की 167 के स्थान पर अब 170 धाराएं होंगी, 23 धाराओं में बदलाव किया गया है, एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं। भारतीय आत्मा के साथ बनाए गए इन तीन कानूनों से हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बहुत बड़ा परिवर्तन आएगा। 18 राज्यों, 6 संघशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाईकोर्ट, 5 न्यायिक अकादमी, 22 विधि विश्वविद्यालय, 142 सांसद, लगभग 270 विधायकों और जनता ने इन नए कानूनों पर अपने सुझाव दिए थे गृह मंत्री ने कहा था कि 4 सालों तक इस कानून पर गहन विचार विमर्श हुआ और वे स्वयं इस पर हुई 158 बैठकों में उपस्थित रहे। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, जो सीआरपीसी को रिप्लेस करेगी, में अब 533 धाराएं रहेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है , 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को निरस्त किया गया है। भारतीय न्याय संहिता, जो आईपीसी को रिप्लेस करेगी, में पहले की 511 धाराओं के स्थान पर अब 356 धाराएं होंगी, 175 धाराओं में बदलाव किया गया है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को निरस्त किया गया है।

साथियों बात अगर हम इन तीनों पुराने कानूनों के बारे में जानने की करें तो ये तीनों पुराने कानून गुलामी की निशानियों से भरे हुए थे, इन्हें ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था, कुल 475 जगह ग़ुलामी की इन निशानियों को समाप्त कर आज हम नए कानून आए हैं। कानून में दस्तावेज़ों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल, मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है। एफआईआर से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक की सारी प्रक्रिया को डिजिटलाइज करने का प्रावधान इस कानून में किया गया है। सर्च और ज़ब्ती के वक़्त वीडियोग्राफी को जरूरी कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी। तीन साल बाद हर साल 33 हज़ार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे, कानून में लक्ष्य रखा गया है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है।

7 वर्ष या इससे अधिक सज़ा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम की विज़िट को जरूरी किया जा रहा है, इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी। नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए आज़ादी के 75 सालों के बाद पहली बार ज़ीरो एफआईआर को शुरू करने जा रही है, अपराध कहीं भी हुआ हो उसे अपने थाना क्षेत्र के बाहर भी रजिस्टर किया जा सकेगा। पहली बार ई-FIR का प्रावधान जोड़ा जा रहा है, हर ज़िले और पुलिस थाने में एक ऐसा पुलिस अधिकारी नामित किया जाएगा जो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार को उसकी गिरफ्तारी के बारे में ऑनलाइन और व्यक्तिगत रूप से सूचना करेगा। यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान कंपल्सरी कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब कंपल्सरी कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना कंपल्सरी होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी। छोटे मामलों में समरी ट्रायल का दायरा भी बढ़ा दिया गया है, अब 3 साल तक की सज़ा वाले अपराध समरी ट्रायल में शामिल हो जाएंगे, इस अकेले प्रावधान से ही सेशन्स कोर्ट्स में 40 प्रतिशत से अधिक केस समाप्त हो जाएंगे।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे वर्णन का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि तीनों आपराधिक कानूनों को अधिसूचित करने में पेंच फंसा? तीनों नए आपराधिक कानूनों में कई खामियां और विसंगतिया बताकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल। आंदोलनकारी ड्राइवर्स संगठनों को आश्वासन, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका व लोकसभा चुनाव 2024 से पहले तीनों नए आपराधिक कानूनों के अधिसूचित होने पर ग्रहण लगने की संभावना।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

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