श्रीराम पुकार शर्मा की कहानी : “ऐसा भी हो सकता है?”

एक सफाई कर्मचारी माँ की सेवानिवृति समारोह में उसे तीन बड़े अधिकारी बेटे मुख्य इंजीनियर, मुख्य चिकित्सक और जिला कलेक्टर पहुँचे। ऐसे ही एक स्वाभिमानी, कर्तव्यपरायण तथा त्यागी माँ के यथार्थ सत्य पर आधारित मेरी कहानी “ऐसा भी होता है ?” आप विद्वजनों के समक्ष प्रस्तुत है।

“ऐसा भी हो सकता है?”

श्रीराम पुकार शर्मा

परबतिया देवी आज भी पूर्व की भांति ही सुबह नौ बजे से ही अपनी गोद में अपने तीन वर्षीय छोटे बेटे मोहन को लिये उसी हाथ में अपने स्वर्गीय पति की मृत्यु की अनुकम्पा से नौकरी की मांग सम्बन्धित कागज-पत्रों को लिये और दूसरे हाथ से अपने छः वर्षीय मंझले बेटे धीरेन के हाथ थामे ‘कोलफील्ड के टाउन एडमिनिस्ट्रेटिव आफिस’ के एक-एक करके कई कमरों का चक्कर लगा लीI उनके पीछे-पीछे उसका नौ वर्षीय बड़ा लड़का वीरेन भी रहा हैI निर्दयी काली और नीली स्याही के आदेश पर चलने वाले बाबुओं और उनके विविध दफ्तरों के चक्कर काटती हुई परबतिया देवी अपने तीनों बच्चों को लिये ‘टाउन एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग’ के सामने ही एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने साथ लायी नमक लगी एक-एक रोटी अपने तीनों बेटों को थमा दी और स्वयं भी एक रोटी खाने लगी I

अभी तो रोटी के कुछ ही टुकड़ों को उसके बच्चें और वह स्वयं अपने गले के नीचे ठीक से उतार ही नहीं पाए थे कि बड़े बाबू की सफेद गाड़ी आस-पास की धूल और सूखे पत्तों को उड़ाती ‘एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग’ की ओर जाती दिखाई दीI वह हड़बड़ा उठीI अपने हाथ की रोटी के टुकड़ों को, फिर निर्मोही अपने तीनों भूखे मासूम बच्चों के हाथ से भी रोटी के टुकड़ों को छिन्न जल्दी से अपने पास के एक मैले-कुचैले पालीथीन बैग में रख लीI बड़का वीरेन और मंझला धीरेन तो चुप ही रहा, पर उसका छोटका मोहन बेटा रो-रो करके विरोध प्रगट कियाI पर वह बिलकुल ही ध्यान न दीI बड़े बाबू आ गए हैं न! देर हो जाने से काम बिगड़ जायेगा न!

ढाई-तीन महीने से विभिन्न दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए परबतिया देवी अब इन बातों को समझने लगी थीI
रोते हुए छोटे मोहन को चुप कराने की कोई कोशिश न कर, उसे पुनः अपनी गोद में उठा कर कागज-पत्रों को उसी हाथ में थामें मंझले धीरेन के हाथ को पकड़े तेज क़दमों से आगे बढ़ चलीI बड़ा लड़का वीरेन भी अपनी माँ के पीछे-पीछे हो लियाI बड़े बाबू के दफ्तर में ढुकने के पूर्व ही बाहर बैठा चपरासी बिगड़ गया, – साहब अभी पहुँच ही रहे हैं, कि तुम आ फटकीI अभी बाहर बैठो, बाद में जानाI’

‘भैया! मेरे भूखे बच्चों को देखो, आज तीन दिनों से भूखे हैंI तुम तो देख ही रहे हो, भैया! सब कुछ छोड़-छाड़कर आज महीनों से रोज इस दफ्तर में आ रही हूँI कभी बाबू नहीं आते हैं, तो कभी बाबू बाहर चले जाते हैंI भैया! आज हमको बाबू से मिल लेने दोI शायद तुम्हारे आशीर्वाद से मेरे इन भूखे बच्चों को निवाला मिल जायI’ – परबतिया देवी गिड़ागिड़ाने लगीI शायद दरवाजे पर बैठे चपरासी को दया आ गयीI उसने समझाते हुए कहा, – तुम घबराओ नहीं, बहन! आज बाबू से तुमको जरुर मिलवायेंगेI बस तुम थोड़ी देर तुम रूक जाओI’

गरीब के मन में दूसरे गरीब के लिए दया-भाव उत्पन्न हो गयाI गरीब के आश्वासन पर गरीब ने भरोसा भी कर लियाI विद्युत् ट्यूब लाइट की दुधिया रौशनी में नहाती उसी गलियारी में एक किनारे की दीवार से सट कर वह दुखिया अपने बच्चों सहित खड़ी हो गईI इसके बीच वह देर तक उस दरवाजे में प्रवेश करने वाले और बाहर निकलने वाले तमाम नेत्रों की घृणा की पात्र बनी रही, पर कुछ तो अधिकार और कुछ बच्चों की भूख ने उसे निरंतर संघर्षों करने के लिए नई शक्ति प्रदान कर रही थी। परिस्थितियाँ ही व्यक्ति-विशेष को परिस्थिति के अपने अनुकूल निर्माण कर देती हैI

लगभग एक घंटे बाद ही वह चपरासी परबतिया देवी को इशारे से पास बुलाया और धीरे से कहा, – ‘अभी बाबू खाली हैं, जाओI उनके पैर ही पकड़ लेना, छोड़ना ही नहींI इन बच्चों को भी लेते ही जाओ, ठीक ही रहेगाI’ दुःख की मारी बेचारी परबतिया देवी ने वही कीI पहले तो बाबू नाराज हो गए, पर स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए उन्होंने उसके सभी कागजों को देखा और फिर अपने उसी चपरासी को बुलाया, चपरासी तुरंत हाजिरI हाथ जोड़ कर एक किनारे खड़ा हो गयाI परबतिया के मृत पति की अनुकम्पा पर उसे सफाई विभाग में नौकरी पर रखने का आर्डर लेटर उसे थमाते हुए कहा, – घनश्याम! तुम इस स्त्री को भी अपने साथ लेते हुए ‘पर्शनल सेक्शन’ चले जाओ, वहाँ पर मिस्टर विश्वास को यह कागज देना और कहना कि मैंने भेजा हैI क्या उन्हें दीखता नहीं है, कि बिन बाप के बच्चों की क्या स्थिति होती जा रही हैI

अगर उन्हें कोई परेशानी हो, तो मुझसे बात करने के लिए कहना, जाओI’ – फिर परबतिया देवी को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा, – ‘जाओ, तुम्हारा काम हो जायेगा, जाओI’ – बाबू ने बहुत ही विनम्र स्वर में कहाI परबतिया देवी लगभग रोती हुई बाबू के चरणों को पकड़ ली और अंतरात्मा से वह बोली, – मालिक! आपका घर, बाल-बच्चा, सदा आबाद रहेंI आपने हमारे बच्चों को भूखों मरने से बचा लियाI भगवान आपको हमेशा खुशहाल रखेंI’ – फिर वह भी मय बच्चों के साथ उस चपरासी के पीछे-पीछे तेज क़दमों से चल दी।

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‘‘माट’-साब! हम तो काले अक्षर भैंस बराबर हैंI अंगूठा के सहारे हमारा तो गुजारा हो ही रहा है, पर इन बच्चों का समय तो अब दूसरा ही हैI पढाई लिखाई न करेगा तो, फिर इन्हें भी अपने बाप और मेरे तरह ही गलियों-नालियों की सफाई का काम छोड़कर और दूसरा क्या काम मिलेगा?’

– परबतिया देवी नगर सफाई कर्मचारी वाली हल्की नीली पर गाढ़े लाल रंग के किनारे वाली साड़ी पहने सरकारी विद्यालय के मुख्य द्वार पर खड़ी होकर ही उस विद्यालय के मास्टर जी से विनम्रता सहित निवेदन कीI
‘परबतिया बहन! उम्मीद मत छोड़, तुम्हारे बच्चे तो काफी लायक हैंI देखती हो कक्षा भर में पढ़ाई में सदैव अब्बल ही रहते हैंI बड़े होकर एक दिन तुम्हारे सपनों को ये अवश्य ही पूरा करेंगेI तुम्हें समाज में मान-सम्मान प्रदान करवाएंगेI मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा, मैं तुम्हारे इन होनहार बच्चों के लिए अवश्य ही करूँगाI

वीरेन और धीरेन आज जब तुम स्कूल से घर लौटोगे, तो मेरे पास कुछ अच्छी पुस्तकें है, उन्हें लेते जाना और उन्हें ध्यान पूर्वक अध्ययन करना, आगे के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगेI बच्चों! अब तुम दोनों अपनी-अपनी कक्षा में जाओI बहन परबतिया, इस छोटे नवाब को कब से स्कूल भेज रही हो?’ – उस सरकारी स्कूल के मास्टर साहब बहुत ही विनीत और मिलनसार हैं। वे बच्चों की जाति और उसके अभिभावकों के कार्य पर ध्यान न देकर बच्चों की बौद्धिक और मेधावी शक्ति को महत्व दिया करते हैं और उन्हें तरासा करते हैंI
‘माट’-साब! जब कहे, तब से ही इसे भी भेज देवेI ऐसे भी घर पर अपने दोनों भैया के साथ पढ़ने पर जरुर बैठता हैI पाँच वर्ष का ही तो है, पर बीस तक का पहाड़ा, ककहरा-बारह-खड़ी और अंग्रेजी में उ क्या कहते हैं, न, ए-बी-सी-डी, सब पढ़ लेता हैI मोहन बेटा! माट’-साब को पढ़ के सुनाओI’ – और फिर छोटा मोहन किसी गाड़ी की गति से ‘ए’ से लेकर ‘जेड’ तक एक सुर में ही कह सुनायाI

‘तुम्हारे बच्चों का क्या कहना, बहन। तुम बहुत ही भाग्यवान हो, जो ऐसे होनहार बच्चे तुम्हें नसीब हुए हैंI इस छोटे को भी उन दोनों के साथ स्कूल भेज दिया करनाI स्कूल आयेगा, तो कुछ अधिक सीखेगा हीI अच्छा बहन! अब तुम भी अपने काम पर जाओ और मुझे भी अपना काम करने दोI’ – मास्टर साहब हाथ जोड़ कर परबतिया देवी को विदा किये और स्वयं उस और बढ़ गए, जहाँ सभी विद्यार्थी प्रर्थ्मा गीत गाने के लिए पंक्तिबद्ध सावधान मुद्रा में खड़े थेI मास्टर साहब को देखते ही सबसे सामने खड़ा विद्यार्थी चिल्लाया, – “शुभ प्रभात गुरुदेवI” – फिर विद्यालय के हर एक कण से “शुभ प्रभात” शब्द की सम्मिलित प्रतिध्वनि सुनाई दीI तत्पश्चात ‘वर दे वीणावादिनी वरदे’ का सम्मिलित प्रार्थना गीत गूँज उठीI पर बहुत ही लयात्मक और अनुशासित ढंग सेI

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आखिर सर्द रातें और दिनें क्रमशः प्रकृति से विदा लेने लगेI चतुर्दिक मनोरम बसंती धूप खिलने लगीI कुछ बसंती धूप और सौन्दर्य श्रीमती परबतिया देवी के उस छोटे से आँगन में भी आने लगीI घर-आँगन में छुप कर बैठी सर्द भी विदा होने लगीI बड़ा वीरेन भी बारहवीं सहित इंजीनियरिंग की परीक्षा में अपने जिले भर में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर मास्टर साहब की प्रेरणा से राँची के सरकारी संस्था ‘NIFFT’ में ‘सिविल इंजीनियरिंग’ में एडमिशन ले लियाI घर में सभी पढ़ने वाले और आमद का मात्र एक ही स्रोत परबतिया देवी की सफाई-सेवा कार्य से प्राप्त मामूली-सा वेतनI पर वीरेन अपनी माँ को आश्वासन दे चुका है, कि उसकी पढ़ाई के लिए चिंता की कोई बात नहीं हैंI उसे सरकार की ओर से पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रतिमाह कुछ आर्थिक मदद मिल जाया करेगीI फिर वह राँची जैसे शहर में दो-तीन ट्यूशन करके भी अपने हॉस्टल तथा अन्य खर्चों का जुगाड़ कर लिया करेगाI मन की दृढ़ता संकट की दीवार को एक-एक कर धराशायी करने लगीI

वीरेन राँची में ही जा कर बस गयाI कारण बार-बार घर आने-जाने से खर्च बढ़ेगा, घर पर आर्थिक दवाब बढ़ेगाI फिर भी अपनी ट्यूशन की कमाई से प्रतिमाह कुछ रूपये अपने घर पर भेजने भी लगाI देखते-देखते तीन वर्ष कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चलाI इधर वीरेन का फाइनल वर्ष और उधर धीरेन भी अपने भैया के मार्ग का अनुसरण करके मेडिकल की परीक्षा में अपने जिले भर में कीर्तिमान स्थापित किया। आस-पास के आर्थिक सम्पन्न विद्यार्थी व लोग दाँतों तले अंगुलियाँ दबा लियेI पर यह कोई दया से प्राप्त फल न था, बल्कि यह एक अभावग्रस्त परिवार की सम्मिलित प्रयास थाI जिस परिवार में आगत संकट की घात को सहने के लिए हर कोई अपनी पीठ आगे कर दे रहा थाI

शायद संकट को भी अपनी योग्यता पर संदेह होने लगा थाI फिर सबके सम्मिलित प्रयास से धीरेन भी पटना के PMCH में चिकित्सक की पढ़ाई करने लगाI वह भी बड़े भैया की ही भांति अपना ज्यादा समय पटना में ही बिताने लगाI केवल पढ़ाई के कारण ही नहीं, बल्कि वीरेन भैया की ही भांति कुछ आर्थिक संबलता हेतुI उसने भी दो-तीन अच्छे ट्यूशन पकड़ लिये थेI पर भैया से चुपकेI भैया जान जाते, तो बहुत नाराज होते और किसी भी हाल में उसे ट्यूशन कार्य की ओर न जाने देतेI शायद माँ भारती को भी अपने मनपसंद घर की तलाश पूर्ण हो गई थी, जहाँ वह काफी मान-सम्मान प्राप्त कर रही थींI जिससे वह भी अभिभूत होकर अपनी विद्या-बुद्धि-बल से उस परिवार को निरंतर समृद्ध करने में लगी हुई थीI

अब तो वह अपनी बहन माँ लक्ष्मी को भी न्योता दे दींI वीरेन ‘सिविल इन्जिनियिंग’ में अपनी अब्बलता को साबित करते हुए पूर्व रेलवे के ‘धनबाद मंडल’ में चीफ इंजिनियर के उच्च पद पर आसीन हो गयाI इस साल श्रीमती परबतिया देवी कोई बारह-तेरह वर्षों के बाद अपने घर में पहली बार बहुत ही धूमधाम से निर्जला कार्तिक छठ व्रत करने को ठानीI शाम के समय बड़े बेटे रेलवे के चीफ इंजिनियर वीरेन के माथे पर छठी मैया की सजी हुई दउरा, घी के जलते दीये के साथ सवार हुई और घर के पास के ही नाथूराम के ढोल के ताल पर ‘काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये’ के सम्मिलित गीत के साथ ही दामोदर नदी के छठ-घाट पर अन्य छठ व्रतियों के साथ पहुँच गईI कमर भर ठंडे पानी में परबतिया देवी खड़ी रह कर शाम के डूबते सूरुज देव से अपने बच्चों की उन्नति की याचना करती हुई अरग दीI

फिर भोर में ही सूप और दउरा सजा कर जलते दीये की मद्धिम रौशनी में परबतिया देवी अपने पुत्रों के साथ छठी-घाट की ओर चल पड़ीI अद्भुत छवि! नदी के किनारे ईख के अनेकों टुकड़े पानी में गड़े हुएI विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे दीये अपनी छोटी-छोटी रौशनी से ही आस-पास के अंधकार को पराजित कर सबके चहरे को पिलाभ किये हुए थेI ढेर की संख्या में स्त्री-पुरुष कमर भर पानी में उतर कर उदित सूरुज देव को अपनी मनोकामना सुनाती हुई व्रती परबतिया देवी सूरुज भगवान् को अरग देकर भी पानी से निकली और अपने छोटे बेटे मोहन के हाथ से एक चमच दही, धीरेन के हाथ अरगउवा ठेन्कुआ और वीरेन के हाथ से अगरउवा केला खा कर अपना निर्जला व्रत को पूर्णता प्रदान की और फिर अपने बेटों को छठी मैया का प्रसाद दी।

देखते-देखते धीरेन का डाक्टरी की पढाई भी पूर्ण हो गई और वह भी पटना में ही PMCH का एक बेहतर डॉक्टर के रूप में कार्य भाल संभाल लियाI छोटा मोहन भी ग्रजुयेट हो गयाI माँ को विश्वास में लेकर वीरेन और धीरेन दोनों भाइयों का विचार हुआ कि छोटा मोहन ‘सिविल सर्विस’ की तैयारी करेगाI मोहन भी तन-मन से ‘सिविल सर्विस’ की तैयारी में लग गया और अपने दोनों भाइयों द्वारा प्रशस्त मार्ग पर चलकर प्रथम प्रयास में ही अपनी सफलता को स्थापित कर अपने भ्राताओं के विश्वास पर खरा उतराI अब तीनों संबल बेटों ने अपनी माता को सफाई सम्बन्धित कार्य से मुक्ति लेने का परामर्श दिएI

अब घर में कमी भी क्या थी? पर परबतिया देवी का मानना थी कि वह इस सफाई की नौकरी को नहीं छोड़ सकती हैI इस मामूली-सी नौकरी ने ही, तो उन्हें इंजिनियर, डाक्टर और कलक्टर जैसे साहब बनाया हैI फिर काम तो आखिर काम ही हैI काम में दोष कैसा? अपने काम को पूर्ण कर इज्जत से सेवानिवृति को प्राप्त करेगीI इससे अधिक कुछ भी माँ को बोल पाने की हिम्मत उन्हें प्राप्त नहीं हुई थीI परबतिया देवी अपनी नौकरी पर जाती ही रहीI पर किसी के सम्मुख अपने बेटों के पदों के बारे में कभी भी एक शब्द भी न उचारी थीI

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आज कोलफील्ड के सफाई विभाग के एक साधारण हाल कक्ष की दीवार पर ‘कोलफील्ड सफाई विभाग, हजारीबाग, झारखण्डI सफाई कर्मचारी श्रीमती परबतिया देवी की सेवानिवृति समारोहI’ – लिखा हुआ एक पर्दा किल के सहारे बंधा हुआ है I एक पुरानी मेज और उसके पीछे टिन की चार पुरानी कुर्सियाँ लगी हुई हैं I मेज पर फूलों का एक छोटा-सा गुलदस्ता रखा हुआ हैI हाल में सफाई विभाग से ही सम्बन्धित बहुत ही सीमित कर्मचारी टिन की कुर्सियों पर बैठे हैं, जबकि बीस-पचीस स्त्री-पुरुष कर्मचारीगण उन टीन की कुर्सियों के पीछे खड़े भी हैंI मेज के पास की पंक्ति की एक कुर्सी पर श्रीमती परबतिया देवी अपने माथे पर आँचल डाले चुपचाप बैठी थीI उसके बगल की कुर्सियों पर सफाई विभाग के एक अधिकारी, एक क्लर्क, एक यूनियन नेता और कुछ चपरासी आदि बैठे हैंI

सफाई विभाग के ही एक क्लर्क श्री श्यामल गौतम आगे कहने लगे, – ‘आज हम सभी इस सभा में हम सब की प्यारी सफाई बहन श्रीमती परबतिया देवी की सेवानिवृत समारोह में शामिल हुए हैंI श्रीमती परबतिया देवी आज से तीस वर्ष पहले हमारे विभाग में एक सफाई कर्मचारी के रूप में नियुक्त हुई थी और आज अपने कार्य के तीस वर्ष और अपने जीवन का 60 वर्ष पूर्ण कर अपनी सेवा से निवृत हो रही हैंI मंच पर मुख्य आसन हेतु मैं श्रीमती परबतिया देवी को आमंत्रित करता हूँI’ हाल में तालियों की गड़गड़ाहट हुई और श्रीमती परबतिया देवी लोगों के बीच से उठी और मेज के पीछे की लगी टीन की कुर्सी पर जा बैठीI

तत्पश्चात मैं अपने सफाई विभाग के पर्शनल मैनेजर श्री हंसदा जी से करबद्ध अनुरोध करता हूँ कि आप भी मंच पर आसन ग्रहण कीजियेI….. सफाई विभाग कर्मचारी यूनियन के सेक्रेटरी श्री बासुकी मुंडा जी से भी आसन ग्रहण हेतु निवेदन करता हूँI जैसा कि आप सभी जानते हैं कि श्रीमती परबतिया देवी विगत तीस वर्षों से लगातार टाउनशिप की गलियों और सड़कों की सफाई करती रहीं और टाउन शिप के निवासियों को स्वस्थ वातावरण उपलब्ध करती रहीं हैं, अतः उनके योगदान को स्मरण करते हुए अपने विभाग के पर्शनल मैनेजर श्री हंसदा से निवेदन करता हूँ कि आप श्रीमती परबतिया देवी को शाल ओढ़ाकर उनके के प्रति आभार प्रगट करें……..I’
तभी आफिस का एक कर्मचारी बहुत ही तेजी से हाँफते हुए हाल में प्रवेश किया, सीधे श्री हंसदा के कान में कुछ फुसफुसायाI

श्री हंसदा कुछ घबराए, चहरे पर उभर आये पसीने की बूंदों को अपने रुमाल से पोंछे, खड़े होकर सबको सूचना दी, – ‘प्रिय साथियों! हम सब अपनी संगकर्मिनी श्रीमती परबतिया देवी की सेवानिवृति समारोह को कुछ घंटे भर के लिए स्थगित कर दे रहे हैंI इस सेवानिवृति समारोह में सेन्ट्रल-इस्टर्न रेलवे ज़ोन के चीफ इंजीनियर साहब और ‘रिम्स’ के चीफ मेडिकल आफिसर भी पधार रहे हैंI’ – फिर श्रीहंसदा उपस्थित आफिस कर्मचारी को हाल और व्यवस्था को ठीक करने की बात समझकर चले गए। लोगों में काना-फूसी तेज हो गई।
कुछ ही समय में एक साथ तीन बड़े अधिकारियों की शानदार नौकरशाही चमचमाती तीन गाड़ियाँ कोलफील्ड के इस साधारण दफ्तर के प्रांगन में सायरन बजाती हुई प्रवेश की।

एक गाड़ी के आगे चीफ इंजीनियर, पूर्व-मध्य रेलवे, धनबाद, दूसरी गाड़ी के आगे मुख्य चिकित्सक, PMCH, बिहार सरकार और तीसरी गाड़ी के सामने अभी भी नीली बत्ती जल रही थी, उसके सामने ही लिखा हुआ था, जिला कलक्टर, सिवान, बिहारI और उनके साथ ही आये उनके खाकी वर्दीधारी अंगरक्षक आगे बढ़े और उनके पीछे तीनों अर्थात चीफ इंजिनियर, मुख्य चिकित्सक और जिला कलक्टर। दफ्तर के कई अधिकारी लोग दौड़ पड़ेI जबकि कई तो स्वयं व्यवस्था में लग गए, किसी को कुछ भी कहने की फुर्सत ही कहाँ थी?

अनेक लोग तो अभी तक की स्थिति को समझ भी न पाए थेI तीनों शानदार चाल से डेंगे नापते उस समारोह कक्ष में पहुँचे। सामने श्रीमती परबतिया देवी को देखते ही तीनों उसके पास पहुँच कर उसके चरणों को स्पर्श किये और दर्शक दीर्घा की साधारण टिन की कुर्सियों पर जा बैठेI सभा कक्ष में इस अनहोनी घटना के चश्मददीद गवाह बने लोग अभी भी हैरान थेI पर्शनल मैनेजर श्री हंसदा हाथ जोड़े तीनों के पहुँचे और लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोले, – ‘सोरी सर! आप सब के अनुकूल हम कोई व्यवस्था न कर पाए हैंI क्षमा करेंगे, सरI सर, आप लोग आगे टेबल की कुर्सियों पर आइयेI’

चीफ इंजिनियर वीरेन हाथ जोड़े खड़ा हुआ और कहा, – ‘क्षमा तो हमें आप सब से माँगना चाहिएI कृपया आप हमें क्षमा करेंगेI बिना कोई पूर्व सूचना के ही हम आ गएI क्या करते हम? हम अपने आप आप को अपनी दृढ़ निश्चयी माता की सेवानिवृति समारोह में आने से रोक ही नहीं पाए सर, आप कार्यक्रम को आगे बढ़ाइएI’ – वीरेन वहीं कुर्सी पर बैठ गयाI
‘श्री हंसदा साहब! मेरा कठोर व्रत था कि मैं अपने बेटों को आप जैसे बड़ा साहब बनते देखूँI और देखिये आज मेरे तीनों बेटे आपके सामने इंजिनियर, डॉक्टर और कलक्टर साहब के रूप में बैठे हैंI

मेरे बेटों ने मुझे कई बार कहा कि माँ अब तुम यह सफाई का काम छोड़ दो, अब हमारे पास कुछ की भी कमी नहीं है, पर मैं उन्हें बराबर यही कहती रही हूँ कि मेरी सफाई करने की यह कोई मामूली नौकरी नहीं है, इसी नौकरी ने ही तुम सबको इतनी ऊँचाई पर पहुँचाया हैI इसे भला कैसे छोड़ दूँ? फिर तो लोग यही न कहेंगे कि परबतिया घमंडी हो गई है, अमीरी को देखकर अपने आधार को ही छोड़ दीI काम कैसा भी हो, वह एक पूजा हैI मैंने वही पूजा निरंतर की है और उससे प्राप्त फल आप सबके सामने हैंI’ – माँ परबतिया देवी टेबल के पास ही खड़ी होकर अपनी बातें कहीI सभा में तालियों की गडगडाहट हुईI

अब बारी थी श्रीमती परबतिया देवी के बेटे को अपने शब्द रखने कीI यह मौका अन्य दोनों बड़े भाइयों ने सम्मिलित रूप से छोटे भाई मोहन, जिला कलक्टर, सिवान, (बिहार) को हवाले कर दिएI मोहन कुछ कदम आगे बढ़कर टेबल के पास आया और कहीं किसी अतीत में खोये हुए कहने लगा, – ‘मुझे तो अपने दुःख के समय का बहुत कुछ स्मरण नहीं है, पर माँ और भैया के मुँह से ही सुना है, कि हम कभी कभी एक ही रोटी के चार टुकड़े कर के खा कर पानी पी कर सो जाया करते थे।

मैं भूखा न रह जाऊँ, इसलिए माँ और मेरे दोनों भैया अपने हिस्से से कुछ न कुछ भाग छूपा कर रख देते थे और मुझे खिलाया करते थेI’ – मोहन का गला अवरूद्ध हो गया, वह कुछ रुका, आगे फिर कहना शुरू किया, – माँ और मेरे दोनों बड़े भैया ने मुझे हमेशा छोटा कहकर घर सम्बन्धित सारे दायित्वों को अपने कंधों पर उठाये रहेंI जिम्मेवारी और बोझ क्या होता है, मैं उसे आज तक न जान पाया हूँ। मुझे गर्व है अपनी माता पर, जिसका एक बेटा रेलवे का चीफ इंजिनियर है, दूसरा मुख्य चिकित्सक और तीसरा जिला कलक्टरI पर ऐसी माननीया माँ को किसी से कुछ न चाहिए, बस सफाई कार्य की नौकरी की पूर्णताI

माँ प्रतिदिन अपने कार्य पर निकलने के पहले पूजा करती हुई अक्सर कहा करती थी, कि हे भगवान! मेरी सेवानिवृति के पहले मुझ से मेरा यह काम न छूट जायI इस काम ने ही मुझे सब कुछ दिया है, मान-सम्मान और इज्जतI मुझे ख़ुशी और गर्व इस बात की है कि हम तीनों ऐसी माननी माँ की संतान हैं और हम तीनों अपनी माँ की इच्छा पर खरे उतर सके हैंI मेरी माँ के संगी-साथी और कर्मी आप सभी को मेरा करबद्ध प्रणामI धन्यवाद I’ – अपने जेब से रुमाल निकल कर अपनी आँखें पोंछता हुआ मोहन अपने भाइयों के बीच बैठ उनके कंधों से लग कर सुबकने लगाI जबकि उसके दोनों बड़े भाई भी मौन-मूक अश्रूजल टपका रहे थेI यही दशा तो सभा में उपस्थित लगभग सभी की ही थीI परबतिया देवी अपने संगियों-कर्मियों के साथ घिरी हुई थीI

सबके आश्चर्य को शांत करने की कोशिश रही थीI तीनों बेटे जो अक्सर लोगों से घिरे रहते थे, आज तीनों ही एकांत में चुपचाप बैठे थे I आज के समाचार की मूल तो तीनों बेटों की माँ परबतिया देवी ही थीI मानो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संवाददाताओं से घिरी सबसे सवालों को बहुत ही शान्ति के साथ उत्तर दे रही होI यह देख कर आज तीनों बेटों के हृदय में एक सुखद सकून मिल रहा थाI आज हर इक के जेहन में इस समय एक ही सवाल था, – ‘क्या ऐसा भी हो सकता है?’ उसका जवाब भी तो सबके सामने ही थाI ‘ऐसा हो सकता हैI’
पर्सनल मैनेजर स्थिति को कुछ सम्भालने की कोशिश की, – ‘आज हम सभी सफाई कर्मचारियों के लिए बड़ा ही गर्व का दिन है, कि हमारी एक सहकर्मिनी की सेवानिवृति समारोह में तीन बड़े अधिकारी उपस्थित होकर हमारे मनोबल को बढ़ाए हैंI

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‘माँ! आज अपने इन तीन मजबूत कन्धों में चुनों, किसके कंधे के सहारे घर चलोगी?’ – सबसे छोटा मोहन कुमार, जो कलेक्टर है, उसने कहाI
तुम तीनों ही मेरे कंधे होI मुझे अब क्या फर्क पड़ता है कि किसका कंधा है? जो चाहो अपना कंधा बढ़ा दोI’- माँ ने दुलार पूर्वक सबके मान को रखती हुई कहीI
‘नहीं माँ! आज कोई बहाना नही। आज तुम मेरे कंधे पर घर चलोगीI मुझे छोटा-छोटा कहकर मेरे कंधे पर तुम आज तक कोई बोझ न दी होI आज तो इस बोझ को उठाने दोI’ – छोटा मोहन मचल उठाI

‘छोटे मोहन! मेरे कंधे से तुम्हारा कन्धा इतना मजबूत कैसे हो गे रेI माँ तो मेरे कंधे पर ही घर जायेगीI’- यह था मंझला धीरेनI
‘तुम सभी चुप करोI यहाँ तुमलोग से पद में तुमलोग से छोटा हूँ, पर उम्र में सबसे बड़ा मैं हूँ और मेरे रहते हुए माँ की बोझ तुम लोग लो, यह कैसे हो सकता है? माँ मेरे कंधे पर ही घर जायेगीI’ – वीरेन ने जोश से कहा और माँ के पास आगे बढ़ाI
तभी एक साधारण लूँगी और गाढ़ी की मिर्जई पहने बैजूनाथ आगे बढ़ाI बहुत ही आदर भाव से हाथ जोड़कर सबके सामने शीश झुकाया और कहा, – ‘आप बड़े-बड़े साहब लोग! मुझे माफ़ कीजिएगाI

आज माता जी मेरे साथ मेरे रिक्शे पर सवार होकर पहले मेरे घर पर जाएँगीI कल तक माताजी को मैं ही जबरन अपने रिक्शा पर बैठा कर यहाँ आफिस में लाते और ले जाते रहा हूँI आज सबेरे भी माताजी मेरे रिक्शा पर ही सवार होकर यहाँ आई हैंI मेरी पत्नी शनिचरी आज के विशेष दिन के लिए खीर-पुड़ी बनाकर माँ जी का इंतजार कर रही हैI आज इनकी सेवानिवृति के दिन मैं इनको भला कैसे भूल सकता हूँ? कदापि नहीं! माताजी के ही सहयोग से हमारे जीवन का एकमात्र सहारा ‘चन्दनवा’ आज जिन्दा है और इनकी सहायता से ही आज वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हैI

अगला साल वह भी इंजीनियर हो जाएगाI फिर वह भी आपके जैसा एक दिन बड़ा साहब बनेगाI अपने बच्चे को इंजीनियरिंग में पढ़ने की मेरी कोई क्षमता भी है क्या? चलिए माता जी! आज मैंने अपने रिक्शे को नवेली पालकी की तरह खूब सजाया हैI चलिएI’ – और माँ के हाथ से शाल, फूलों का गुलदस्ता व मिठाई के पैकेट को जबरन लेते हुए आगे बढ़ कर उन्हें अपने रिक्शे पर रख दिया और माँ जी के हाथ को पकड़े उन्हें जबरन अपने रिक्शे पर बैठा लिया। प्रेम की बोली ने तीनों बड़े अफसर भाइयों की बोलती बंद कर दी।

तीनों बड़े अधिकारी बेटे पैदल आगे-आगे, उनके पीछे उनके सरकारी अंगरक्षक, उनके पीछे ढोल बजाता नाथूराम, उसके पीछे बैजू के रिक्शे पर सवार माँ परबतिया देवी और उनके पीछे नीली बत्ती लगी कलक्टर की गाड़ी, फिर उसके पीछे चीफ इंजिनियर की, फिर उसके पीछे मुख्य चिकित्सक की गाड़ी और सबके पीछे लोगों का हुजूमI आज तक यह सड़क ऐसी विचित्र समारोह की साक्षी न बनी थी।

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