अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : उड़ान

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। Happiness and sorrow comes only through’s own doings. सुख और दुख कोई दूसरा नहीं देता वह तो अपनें कर्मों के अनुसार ही मिलता है। सच कहें तो अज्ञानता और अनुशासन का अभाव मानव मुसीबतों की जड़ है। आज रजनी बहुत खुश थी क्योंकि जिस उड़ान की कल्पना में वो डूबी रहती आज उसे वो पूरा होते दिख रहा था। वो सुबह से हीं सज संवर कर अमित का इंतजार कर रही थी। कल उसे गांव से शहर जाना था। रजनी शहर के अंग्रेजी माध्यम के स्कूल से पढ़ी लिखी आधुनिक महिला थी किंतु उसकी शादी गांव के लड़के के साथ हो गई थी, वो गांव के संयुक्त परिवार में रहकर सबकी सेवा करते करते थक गई थी। सेवा तो फिर भी चल जाता किंतु आधुनिक युग में भी पल्लू में रहना रजनी को नही भाता था रजनी घर के अंदर अपनें पसंद का TV पर आने वाले सीरियल या फिल्म को नही देख पाती। उसकी सास कहती यह सब देख कर बहुएं बिगड़ जा रही है देखना है तो भक्ति चैनल देखो ज्ञान मिलेगा और धर्म कर्म करनें की प्रेरणा।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

रजनी का जीवन बंद पिंजरे के पंक्षी के जैसा हो गया था। आज सुबह-सुबह रजनी नहा धोकर जैसे ही पूजा घर में पहुंची अमित ने रजनी को आवाज़ लगाई, रजनी पीछे मुड़ कर देखी तो अमित रजनी को गोद में उठाकर घुमाने लगा। रजनी दबी आवाज में बोल रही थी, अरे कोई देख लेगा ये क्या कर रहे हो। तुम नही जानती रजनी की आज मैं कितना खुश हूं अब हम दोनों खुल कर जिएंगे हमें यह पता है की जब से तुम इस घर में आई हो कभी खुश नहीं रही, तुम्हारी जिंदगी बंद पिंजरे के जैसी हो गई है। अब तुम स्वतंत्र हो जाओगी, ये देखो हवाई जहाज़ की टिकट कल हम लोग दिल्ली चलेंगे मेरे दोस्त मोहन ने मुझे बुलाया है। वो मेरे बचपन का दोस्त है वो दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता है। उसे जब पता चला की मैं शादी कर चुका हूं और अभी तक कोई नौकरी नहीं मिल पाई है तो उसने हमें वहीं बुलाया है।

उसे यह भी पता है की तुम भी पढ़ी लिखी ग्रेजुएट लड़की हो, उसका कहना है की अमित तुम भाभी को भी अपनें साथ लेकर आना वो भी पढ़ी लिखी हैं तुम्हारा सहयोग होगा और समय पर खानें पीने की भी कोई दिक्कत नही होगी और प्रभु ने चाहा तो भाभी की भी नौकरी हो जायेगी और तुम दोनों एक अच्छे जीवन की शुरूआत कर के मस्ती करोगे। आज कल के जमाने में पैसों के बिना कुछ नहीं होता इस लिए पति पत्नी दोनों को कंधों में कंधा मिलाकर चलना पड़ेगा यह बात अमित रजनी से कह रहा था और रजनी मारे खुशी के इठला रही थी। ठीक ही कह रहे है आप हम मिलजुल कर काम करेंगे तो बहुत जल्द हम लोगों के पास गाड़ी, बंगला अपना सब कुछ होगा।

रजनी अमित से कह रही थी, तभी अमित की मां ने हंसते हुए कहा क्या बात है बेटा बड़ा उछल रहे हो दोनों हमें भी तो बताओ बात क्या है? अमित मुस्कुरा कर अपनें मां से कह रहा था अरे मां बहुत बड़ी खुशखबरी है कल हम और रजनी दिल्ली जा रहे है। हम लोगों को सुबह ही घर से निकलना पड़ेगा पटना से दिल्ली के लिए और हां हम लोगों का टिकट भी आ गया है।रामदीन काका का लड़का मेरा दोस्त मोहन ने मेरे लिए बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी ढूंढ रखा है साथ में रजनी भी जा रही है। अरे बेटा ये क्या कर रहे हो, एक अंजान शहर में बहु को लेकर कहां जाओगे? समय बहुत खराब है पहले तुम जाओ अगर सब ठीक ठाक रहा तो बहु को ले जाना। गांव और शहर में काफी अंतर है, शहर का माहौल हमें तो ठीक नही लगता बाकी तुम्हारी मर्जी।

अरे मां तुम भी ना गज़ब की सोचती हो, तुम्हारी बहु पढ़ी लिखी है वो ठीक किसी भी माहौल को संभाल लेगी। तभी बात को काटते हुए अमित की मां ने कहा – बहु पढ़ी लिखी है तभी तो और ज्यादा चिंता है, अक्सर पढ़े लिखे लोग ही गलत काम कर बैठते है क्योंकि उन्हें बड़ी से बड़ी समस्या छोटी लगती है। तभी रजनी ने अपनें सासु मां को अपनी बाहों में भर कर कहा -आप भी न मां ना जानें क्या क्या सोचने लगती है। बस आप अपना ख्याल रखिएगा हम सब बहुत जल्द लौटेंगे, स्नेहा आंख में आए आंसू को अपनें पल्लू से पोछती हुई कहने लगी मेरे अमित का ख्याल रखना बहु इस तोते का प्राण उसमें ही है। अगर इसे कोई खरोंच भी लगती है न तो दर्द मुझे ही होता है। तभी अमित बोल रहा था मां आप चिंता ना करें हम लोगों की फ्लाईट कल हीं है, सब सामान भी तैयार करना है। बस आप सुबह-सुबह हमलोगों के नाश्ते का प्रबंध कर दीजिएगा, भोजन हम लोग दिल्ली में हीं करेंगे और सब अपनें-अपनें कामों में व्यस्त हो गये।

अगली सुबह अमित और रजनी घर से निकल पड़े थे और स्नेहा दोनों को एक टक देखते रह गई थी। शाम ढलते अमित और रजनी दोनों दिल्ली एयर पोर्ट पहुंच गये थे। मोहन पहले से हीं अपनी कार लेकर एयर पोर्ट पहुंचा था। अमित और रजनी को देख मोहन बड़े ही गर्म जोशी से मिला और प्रसन्न हुआ दोनों को अपनी कार में बैठाकर अपनें घर ले गया। अगली सुबह अमित को ऑफिस जाना था इसलिए सब खा पीकर अपने कमरे में चले गये। इधर जहां रजनी हवाई सफर के आनंद के साथ ही साथ दिल्ली जैसे शहर में आकर रहने की सोच रही थी ये सोच उसके आधुनिक सोच में उबाल ला दिया था। वो पूरी रात सोचते ही रह गई की अगर मुझे भी नौकरी मिल जाती तो हम और अमित कमा कर मोहन जैसा गाड़ी बंगला सब ले लेते।

वो ये सोच कर एक तरफ जहां खुशी से उछल जाती वहीं दूसरी तरफ सोचने लगती की अगर मुझे नौकरी नहीं मिली तो ये सपना धरा का धरा रह जायेगा, आखिर अमित कितना करेगा उसे तो अपने मां पिताजी के लिए भी पैसा भेजना पड़ेगा। मैं पढ़ी लिखी तो हूं किंतु यहां की लड़कियों जैसा मॉडर्न नहीं। सोच कर निराश हो जा रही थी फिर वो सोंचती रूपवती तो हूं सुनी हूं दिल्ली में खूबसूरत लड़कियों को कंपनी वाले जल्द रख लेते है रही बात मॉडर्न होने की तो कुछ दिनों के प्रयास में मैं भी अपनें आप को बदल लूंगी। सोचते सोचते सुबह हो गए थे। अमित जल्द जगकर खुद को तैयार कर रहा था इधर मोहन भी तैयार होकर किचन में कुछ तैयार कर रहा था तभी रजनी ने नहा धोकर किचन के काम को संभाला और मोहन से बैठने का आग्रह किया। रजनी जल्द ही नाश्ता तैयार कर दोनों को खिलाने में जुट गई।

वर्षों बाद मोहन को किसी दूसरे के हाथ का खाना मिला था वो रजनी के सपनों में डूब रहा था। मोहन शादीशुदा नही था वो अमित के गांव में रहता था। वो अपनें मां बाप का एकलौता संतान था। एक दिन मोहन के मां पिताजी तीर्थाटन को निकले थे जहां भूस्खलन में दोनो की मौत हो गई। जिसके मृत शरीर भी मोहन को दाह संस्कार के लिए नही मिले, बहुत दिन मां बाप के इंतजार करने के बाद मोहन ने दोनों का कर्मकांड कराकर उनके आत्म की शांति के लिए श्राद्धभोज देकर ऋण से मुक्त हो गया। इधर मां पिताजी के चले जाने के कारण मोहन बिल्कुल अकेला पड़ गया और वो नौकरी की तलाश में दिल्ली आ गया और नौकरी करनें लगा। मोहन बचपन से ही होनहार था अतः समय-समय पर उसका प्रमोशन होता चला गया जिससे उसे अच्छी सैलरी के साथ बहुत सारे सुविधाएं भी मिलने लगे थे।

मोहन हमेशा अमित की खबर रखता, जब उसे पता चला कि अमित की शादी होने वाली है तो उसके खुशी का ठिकाना नहीं रहा। किंतु समय के अभाव में वो शादी के इस मौके पर पहुंच न सका। एक दिन मोहन को जब फेसबुक पर अमित और रजनी की फोटो दिखी तो वो कुछ क्षण रजनी को देखता ही रह गया। वो सोचने लगा काश! मुझे भी ऐसी ही रजनी मिल जाती तो मेरी जिंदगी ही संवर जाती। तभी अमित ने कहा अरे मोहन क्या सोच रहा है जल्दी निकल समय हो चले है, अगर जाम में फंस गये तो बड़ा मुश्किल हो जायेगा। मोहन की तंद्रा भंग हुई वो जल्द उठा और तैयार होकर कार की चाभी उठाई और अमित के साथ चल पड़ा। जाते जाते रजनी दोनों को हाथ हिलाकर विदा कर रही थी। यह नज़ारा मोहन को भा गया था। उसे लग रहा था की काश! मेरी भी पत्नी होती जो जाते वक्त ऐसे ही विदा करती, कुछ क्षण बाद दोनों गाड़ी में बैठे और चल दिये।

रजनी खाना बना कर आराम से टीवी देखने लगी। समय बीतता चला गया और शाम हो चले थे। रजनी पूरी तरह सज संवर कर ऑफिस से अमित के आने का इंतजार कर रही थी। कुछ क्षण बाद मोहन की गाड़ी दरवाजे पर आ कर रुकी और मोहन ने गाड़ी की डिक्की खोल कर दो बड़े-बड़े थैले अमित को थमा दिया और गाड़ी पार्किंग करनें चला गया। रजनी अमित को देख कर चहकती हुई उसके पास पहुंची, अरे क्या है इतने बड़े थैले में, वो थैले के अंदर देख कर बोली अरे बाप रे इतने सारे बिस्कुट केक इतना सारा सामान क्या होगा। तभी अमित गाड़ी पार्किंग कर पहुंच चुका था, होगा क्या घर बैठे-बैठे आप खाएंगी और टीवी देखेंगी। मोहन ने हंसते हुए रजनी से कहा। सब हंसने लगे और घर के अंदर चले गये।

कुछ देर बाद रजनी ने चाय की प्याली हाथ में देते हुए अमित से पूछा! कैसा रहा आज का दिन, इंटरव्यू कैसा गया। तभी मोहन ने बीच में ही बात को काटते हुए कहा – इंटरव्यू ठीक गया किंतु यह काम अमित के योग्य नहीं था इसलिए इसने ना कहना ही उचित समझा। देखते है फिर किसी दूसरे ऑफिस में। किंतु हां, कल मेरे ऑफिस में कुछ महिला कर्मचारी की आवश्यकता है आपको चलना है देखा जाए पहले किसी का तो हो, खैर! हम लोग हाथ पैर धोकर तैयार हो रहे है आप खाना लगाइए। इधर रजनी किचन की तरफ मुड़ी और खाना निकालने लगी। अमित और मोहन हाथ मुंह धोकर डाइनिंग टेबल पर आ गए और रजनी दोनों को खाना खिलाने लगी। तभी मोहन ने कहा भाभी जी ये आपका गांव नही है खाने का सारा सामान इस टेबल पर लाईए और आप भी एक साथ बैठ कर खाइये। तभी रजनी बोली ना ना आप लोग पहले बैठ कर खा लीजिए फिर मैं बाद में खा लूंगी।

तभी अमित कहने लगा आ जाओ रजनी हम सब तो एक जैसे हैं यहां मां पिताजी थोड़ी है जो उन्हें बुरा लगेगा। रजनी दोनों की बातों को सुनकर सिमटी हुई खाने की टेबल पर बैठ गई और सबको खाना परोसनें लगी और खुद खाना लेकर खानें लगी। मोहन जैसे ही पहला निवाला लिया वो रजनी के तारीफ में कसीदे गढ़ने लगा, गज़ब का खाना बनाती है रजनी भाभी लगता है आप की हाथों में जादू है। ऐसा तो खाना किसी फाइव स्टार होटल में भी ना मिले। भाई अमित कहां से ढूंढा है यार रूप के साथ गुण भी, गज़ब का खाना है लगता है मैं इस टेबल से उठूं हीं न। तभी अमित ने कहा – अरे यार, यह तो पहला निवाला है पूरा तो खा मजे से, तारीफ की पूल बांधे जा रहा है। कभी मेरी भी तो तारीफ कर लिया कर, अमित की ये बातें सुन कर रजनी हंसने लगी।

कुछ देर बाद सब खा पीकर अपने अपने कमरे में चले गये, रात गहरा रहा था किंतु अमित को नीद नहीं आ रही थी वो करवटें बदल रहा था। वो सोच कर आया था की दिल्ली में उसे अच्छी खासी नौकरी मिल जायेगी और वो अपना अलग दुनियां बसा लेगा,किंतु ऐसा न हो सका। अमित के बेचैनी को रजनी समझ रही थी अतः रजनी ने अमित के सर पर हाथ फेरते हुए कहा – क्या बात है? आज आप बहुत परेशान हैं, मुझे तो बताइए क्या बात है। क्या बतलाऊं ,सोचा हुआ सपना आज टूटा हुआ नजर आ रहा है, मुझें इंटरव्यू में फेल कर दिया गया। केवल इस लिए की मैं फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोल पा रहा था मैं सोचता हूं अपनी हिंदी अपनें ही हिंदुस्तान में कितनी पराई है।

बस यही न की आप अंग्रेजी नहीं बोल पाते, आप चिंता न करें सब ठीक हो जायेगा मोहन जो है। बहुत दिन से वो यहां है उसके पास बहुत ही जानकर लोग है वो कहीं ना कहीं व्यवस्था जरूर करेगा। मोहन तो कह रहा था की उसके ऑफिस में कुछ महिलाओं की वैकंसी है देखती हूं अगर मेरी व्यवस्था हो गई तो चिंता ही खत्म हो जाएगी। हम लोग एक अलग मकान किराये पर लेकर रहेंगे और आप नौकरी खोजते रहिएगा। आज सो जाइए भगवान जो करेंगे ठीक ही करेंगे। अमित को रजनी के ये सांत्वना भरे शब्द राहत दे गये थे और वो सोचते सोचते कब सो गया था उसे पता हीं नही चला। जब सुबह आखें खुली तो रजनी नाश्ता बनाकर खुद को तैयार कर रही थी और मोहन भी तैयार हो रहा था।

अमित भी उठा और तुरंत नहा धोकर तैयार हो गया। तीनों एक साथ नाश्ता किये और मोहन गाड़ी की चाभी लेकर बाहर निकलने लगा,पीछे पीछे रजनी भी जाने लगी किंतु आज की परिस्थिति अलग थी आज ये दोनो जा रहे थे और अमित हाथ हिलाकर विदा कर रहा था। कुछ क्षण बाद मोहन की गाड़ी रफ़्तार पकड़ी और सड़क पर दौड़ने लगी, इधर गाड़ी की खिड़की पर एक किनारे बैठी रजनी बाहर का नजारा देखते देखते अपनें एक अलग दुनियां में खो गई। उसे लग रहा था की अमित ड्राइविंग कर रहा है और वो पीछे बैठ कर सैर करनें निकली है। तभी मोहन ने आवाज लगाई रजनी भाभी अरे कुछ तो बोलिए बिल्कुल मौन का सफर अच्छा नही लगता।अचानक मोहन के इस बात को सुनकर रजनी घबड़ा गई, नही नही बस बाहर का नजारा देख रही थी और इधर मन भी अशांत है ना जाने क्या होगा मेरे इस इंटरव्यू का, बस इस घबड़ाहट को मिटानें के किये मैं मन को भुला रही थी।

तब तक मोहन ऑफिस पहुंच चुका था। मोहन गाड़ी को पार्क किया और रजनी के साथ ऑफिस के अंदर चल पड़ा। रजनी को ऑफिस के रिसेप्सन में बैठाया गया और कुछ क्षण बाद रजनी को अंदर बुलाया गया उसके तमाम दस्तावेज़ की पड़ताल की गई। चुकी रजनी की शिक्षा दीक्षा अंग्रेजी माध्यम से हुई थी वो फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रही थी। ऑफिस के निर्णायक मंडली को ये लगा था की साधारण से कपड़े में आई यह लड़की इतनी तेज तर्रार है विश्वास नहीं हो रहा था। रजनी का इंटरव्यू अच्छा गया था किंतु पहनावे को बदलने की बात कही गई थी, चुकी मल्टीनेशनल कंपनी का अपना एक अलग तरीका होता है। अगले दिन रजनी को ऑफिस ज्वाइन करना था।रजनी ऑफिस के बाहर निकल कर शाम तक मोहन का इंतजार करती रही। शाम होने के बाद मोहन और रजनी अपनी कार से मिठाई के डब्बे के साथ घर पहुंचे।

रजनी ने यह खबर जब अमित को दी तो कुछ क्षण के लिए वो झेप गया फिर संभल कर रजनी को congratulations कहा। तभी रजनी ने अपनी हाथों डब्बे से मिठाई लेकर अमित को खिला दी, कुछ क्षण बाद हल्का सा नाश्ता कर अमित, मोहन और रजनी मॉल की तरफ चल पड़े। क्योंकि ऑफिस के बॉस ने कहा था कि ऑफिस के समय आधुनिक वस्त्र ही चलेंगे। मॉल पहुंचने के बाद रजनी ने अपनें लिए जींस और तरह तरह के टॉप खरीद लिए। आज रजनी को लग रहा था की वो हर तरह से आजाद है किंतु यह सब देखते हुए अमित को अपनी मां की कही बातें याद आ रही थी जो उसने कहा था – देखना बहु पढ़े लिखे लोग ही ज्यादा गलत काम करते है उन्हे लगता है की हम अपनें बुद्धि से हर मुश्किल का हल निकाल लेंगे।

अमित अभी सोच हीं रहा था की रजनी अमित के पास आकर बोली – आपको भी कुछ लेना है तो ले लीजिए, पैसे है मेरे पास जो एडवांस में मुझे मिले है। अमित ना कह कर रह गया था और सब घर की तरफ चल पड़े थे। रजनी और मोहन अब रोज एक हीं गाड़ी से ऑफिस जाने लगे क्योंकि मोहन और रजनी का ऑफिस एक ही था। समय निकलता चला गया था अब तो रजनी भी मोहन से काफी घुल मिल गई थी। इधर मोहन को भी मन ही मन रजनी से प्यार हो गया था। वो रजनी के हर पहलू को लेकर काफी उत्साहित रहने लगा, उसे रजनी काफी भाने लगी थी। अमित को रजनी का मोहन के साथ इतना घुल मिल जाना बुरा लगने लगा था कारण की दोनो के हावभाव को अमित समझने लगा था। अब तो रजनी भी बात बात में मोहन की तारीफ करती, उसे काफी हैंडसम बताती जो अमित के दिल में तीर सा लगता और उसे नागवार गुजरता।

वो अंदर ही अंदर टूटने लगा था, वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसके पास नौकरी नहीं थी और न ही वो अपनें घर लौट सकता था। समय के साथ रजनी अमित के भाव को समझ पा रही थी। उसे पता था की अमित अब अपनें दोस्त से दूरी बनाना चाह रहा है इस लिए रजनी ने मोहन से अलग रहने का फैसला कर लिया था। कुछ दिन बाद रजनी और अमित मोहन के घर से कुछ दूरी पर अपनें लिए किराये के मकान ढूंढ लिए और दोनों रहने लगे, किंतु मोहन जब भी ऑफिस जाता रजनी को अपनें गाड़ी में बैठाकर ले जाता और लेकर आता। अब तो मुहल्ले के लोग अमित से कहने लगे थे की अमित बाबू एक औरत का गैर मर्द के साथ इतना ज्यादा घुलना मिलना ठीक नहीं। पड़ोसियों के इस बात का असर अमित पर पड़ गया और वो रोज एक दूसरे से लड़ने लगे।

इधर रजनी भी अमित से कटी कटी रहने लगी। उसे लगने लगा की जब हमें हीं कमाकर घर चलाना है तो मैं किसी की क्यों सहूँ यह सोच केवल रजनी की नही है ये तमाम उन महिलाओं की है जो उपार्जन करनें लगी है। मर्द जब कमाता है तो उसके पैसों पर पूरे परिवार का अधिकार होता है किंतु जब कोई महिला कमानें लगती है तो उसके पैसों पर केवल उसी का अधिकार होता है। दोनो के बीच अनबन की खबर जब मोहन को लगी तो वो और भी आग में घी डालने का कार्य करने लगा क्योंकि वो तो उस समय से हीं रजनी को पाने के लिए व्याकुल था जब फेसबुक पर नई नवेली रूप में उसे अमित के साथ देखा था। अमित के नौकरी का तो सिर्फ बहाना था उसे तो रजनी को पाना था। वो हमेशा रजनी के ऊपर पैसा उड़ाता उसे अच्छी अच्छी गिफ्ट लाकर देता और उसकी बहुत फिकर करता।

इधर रजनी भी धीरे धीरे अमित के कीच-कीच से तंग आकर मोहन के करीब आ गई थी। अब तो झूठ बोलकर मोहन के साथ देर रात घर लौटती और अमित के ज्यादा गुस्सा होने पर घर छोड़ कर चले जानें की धमकी भी देती। अमित का हाल सांप छूछुंदर के मुहावरे जैसा हो गया था। अब तक मोहन और रजनी एक हो चुके थे। अब तो रजनी मोहन से दूर रहना भी नही चाह रही थी। अतः एक दिन रजनी अपनें सारे सामान के साथ मोहन के घर चली आई। ये सब देख कर अमित काफी मर्माहत था उसे काफी कष्ट हो रहा था। इधर समय ने करवट बदला और अमित कुछ पड़ोस के बच्चों को लेकर ट्यूसन पढ़ाने लगा जिससे रूम का किराया दिया जा सके और भोजन पानी का इंतजाम हो सके। धीरे धीरे बच्चों की तादाद बढ़ने लगी और अमित का मन भी लगने लगा। वो रजनी के इस बेवफाई को एक हादसा समझ कर भूल चुका था।

अब तो ये स्थिति आ गई की अमित को बड़ा सा हॉल लेकर कोचिंग का रूप देना पड़ा। मजबूरन कुछ और शिक्षकों को रखना पड़ा और समय बीतता चला गया। इधर मोहन और रजनी दुनियां की परवाह न करते हुए पति पत्नी जैसा रहने लगे। इधर रजनी को आधुनिकता की ऐसी लत लगी की वो अब शराब की आदि हो गई। अब रोज रोज मोहन और रजनी जब ऑफिस से निकलते तो दोनों बाहर से हीं खाना पीना कर नशे की हालत में घर लौटते। एक दिन की बात है रजनी और मोहन काफी पी रखे थे, मोहन नशे की हालत में ही गाड़ी चला रहा था तभी उसकी गाड़ी डिवाइडर से टकरा कर पलट गई दोनों लहूलुहान हालत में सड़क पर पड़े रहे और जनता भीड़ बन कर वीडियो बनाती रही। इधर मीडिया वालों की भी भीड़ लग गई तभी पुलिस ने दोनों को उठाया और हॉस्पिटल पहुंचा दिया।

दोनों की हालत बहुत खराब थी लोग नशे की इस हालत को देखकर तरह तरह की बातें कर रहे थे किंतु होता वही है जो ऊपर वाला चाहता है। रजनी के एक पैर खराब हो गए थे उसे काटना पड़ा था नही तो उसकी जान को खतरा था। मोहन के भी हालत में धीरे धीरे सुधार हो चला था। कुछ दिन बाद दोनों को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई थी। ऐसे में रजनी की नौकरी भी चली गई थी, वो अब घर पर पड़ी रहती। अब तो बैसाखी के सहारे उसे एक पैर से ही चलना पड़ता। जब इस हादसे की खबर अमित को मिली तो वो व्याकुल हो गया। क्योंकि रजनी के इस बेवफाई के बाद भी वो कभी रजनी का बुरा नही चाहा। पहले तो इच्छा हुआ की वो रजनी को देख आए किंतु उसने अपने आप पर काबू पा लिया। अब जब भी मोहन घर पर आता उसे घर का सारा काम करना पड़ता और साथ में रजनी का भी देख भाल।

पैर कटने के बाद रजनी भी चिड़चिड़ा हो गई थी उसके प्यार का नशा उतर चुका था। वो चकाचौंध की दुनियां से निकल कर हकीकत की दुनियां में आ गई थी। अब मोहन भी उससे कतराने लगा था उसे लग रहा था की पूरा जीवन एक अपाहिज को लेकर चलना मेरे बस की बात नही है और ऐसे महिला को लेकर जो तनिक से सुख सुविधा को पाकर अपनें पति को छोड़ दी। कल अगर मेरा पैर कट गया होता तो क्या वो मुझे अपनें साथ सारा जीवन रखती, ऐसे भी वो मेरी पत्नी तो है नही, वो तो अपनें सुख सुविधा के लिए अपने पति को छोड़ कर मेरे पास आई थी। आज भी समाज के ज्यादातर लोग यही जानते है की ये हमारी रखैल या फिर कहें तो लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला है। मोहन अब फैसला कर चुका था की जितना जल्द इस समस्या से छुटकारा पा लिया जाए उतना ही ठीक होगा नही तो आने वाले समय के लिए यह रिश्ता गले के फंदे के समान हो जायेगा।

कुछ दिन के बाद मोहन अपना फ्लैट किसी और के हाथों बेच चुका था और पैसा लेकर कहीं चला गया था। कई दिनों तक इंतजार करनें के बाद जब मोहन घर नही लौटा तो रजनी बेचैन हो गई। वो मोहन के ऑफिस पहुंची और जानना चाहा कि मोहन ऑफिस आता है की नहीं, तभी पता चला की मोहन अपना इस्तीफा देकर नौकरी छोड़ चुका है और यह जानने के बाद रजनी के पैर तले जमीन खिसक गई। उसके समझ में नही आ रहा था की वो क्या करे वो अपनें आप को ठगा महसूस कर रही थी, तभी मोहन के एक सहकर्मी ने रजनी से कहा की रजनी मैडम मोहन अब इस शहर में नही है वो हमेशा शहर बदलता रहता है वो हमेशा लड़कियों और औरतों से फ्रॉड करता है और मस्ती के एक हद बाद उसे छोड़ देता है, हम लोगों ने आपको सजग करना चाहा था तब तक ये सब घटना घट गई। ये सब सुन रजनी के शरीर में मानों खून हीं नही था, वो बुत बनकर चुपचाप उस व्यक्ति की बात सुन रही थी और उसकी आखों से लगातार आंसू निकले जा रहे थे।

कुछ क्षण बाद रजनी को पूरी कहानी समझ में आ गई थी वो वहां से घर को लौट आई। घर आने के बाद देखा तो कुछ लोग हाथ में कागज़ लेकर ये सूचना देने आए थे की ये मकान बिक चुका है और आप एक सप्ताह के अंदर यह मकान छोड़ दे अन्यथा कानूनी कार्यवाही की जायेगी।रजनी यही सोच कर रात भर बेचैन थी वो अपने मायके या ससुराल में भी यह खबर नही दे सकती थी क्योंकि उसने दोनों कुल का मान डुबोया था। अब तक अमित भी रजनी के इस बेवफाई की खबर अपने ससुराल और अपनें मां बाप से छुपाकर रखा था। अतः रजनी ने पश्चाताप में यह फैसला लिया की अब वो इस जिंदगी को हीं मिटा देगी क्योंकि इस जिल्लत भरी जिंदगी से बेहतर है मर जाना और वो सुबह-सुबह हताश निराश हाथों में फोन लिए बिना किसी मंजिल के सड़क पर चली जा रही थी वो अपनें सहेली जूही से ये सारी बातें बता रही थी।

अचानक बात करते करते वो सड़क के बीचों बीच रुक गई तब तक पीछे से आ रही गाड़ी ने रजनी को उछाल दिया। रजनी दूर जाकर गिरी, वो लहूलुहान हो गई थी। भीड़ अचानक रजनी को घेर लिया। इधर गाड़ी ने तेज रफ्तार से गाड़ी को लेकर भागना उचित समझा। इधर लोग कह रहे थे की गाड़ी वाले की कोई दोष नही थी, उसे बचाने का कोई मौका ही नही मिला। उधर से ही गुजरते अमित की नजर जब भीड़ पर पड़ी तो वो कौतूहल बस भीड़ का हिस्सा बन कर भीड़ को चीरते हुए अंदर चला गया, एकाएक रजनी को खून से लथपथ देख वो पागल सा हो गया वो चिल्लाने लगा। एंबुलेंस एंबुलेंस अरे भाई कोई तो मेरी मदद करो, ये मेरी पत्नी है इसे बचा लो अमित दहाड़ मार कर रो रहा था। उसके पहले किसी ने एंबुलेंस और पुलिस को खबर दे दी थी। तब तक एंबुलेंस आ चुका था।

अमित सारी रात हॉस्पिटल के बाहर कान खड़े किये हुए रजनी के होश में आने का इंतजार कर रहा था। तभी एक नर्स ने आकर सूचना दी की मरीज को खून की आवश्यकता है बाकी के दो बोतल खून चढ़ चुके है, चुकी अमित और रजनी का खून का ग्रुप एक ही था इसलिए वो तुरंत राजी हो गया। अमित कहने लगा डॉक्टर साहब मेरे शरीर से जितना भी खून लगे आप ले लीजिए किंतु मेरे रजनी को बचाईए। डॉक्टर ने आश्वासन दिया की अब रजनी खतरे से बाहर है ज्यादा खून निकल जानें के कारण ये खून की भारपाई की जा रही है। अमित बेड पर लेटे रजनी को खून दे रहा था तभी रजनी की आखों में हरकत महसूस हुई वो अब होश में आ गई थी। वो अमित को अपनें पास खून देते हुए पाकर बस आंसू बहाए जा रही थी। इधर रजनी को इस हालत में देखकर अमित भी आसूं से तकिए को भीगों रहा था।

कुछ क्षण बाद नर्स ने अमित के पाइप को बंद कर रजनी से अलग किया और पकड़ कर कुछ क्षण के लिए बिस्तर पर लिटाया। फिर एक बार रजनी नीद के आगोश में समा गई और अमित इंतजार करने लगा। आज तीन दिन हो गये थे, अमित के आखों से नीद सैकड़ों मील गायब थी। समय एक-एक दिन बीतता चला गया। आज रजनी को हॉस्पिटल से छुट्टी मिलने वाली थी। अमित सारी प्रक्रिया पूरी कर एंबुलेंस से रजनी को मोहन के घर छोड़ने जा रहा था किंतु उसके मन में एक सवाल था की आखिर मोहन कहां है जो एक बार भी रजनी को देखने तक नहीं आया। फिर वो सोचने लगा की वो परेशान होगा रजनी को खोजनें में, उसे क्या पता की रजनी जीवन और मौत से लड़कर घर पहुंच रही है और वो मौन साधे एंबुलेंस से मोहन के घर पहुंचा और रजनी को एंबुलेंस से उतार कर यह कहते हुए आगे बढ़ने लगा की तुम अपना ख्याल रखना।

रजनी आखों में आसूं लिए सोचने लगी की आखिर ये किस मिट्टी का बना है अमित जो इतने बेवफाई के बाद भी हमें हमारा ख्याल रखने को कह रहा है जो मेरे लिए इतने दिनों हॉस्पिटल के बाहर बिना खाए पिये गुजारा है वो जोर जोर चिल्लाने लगी, अमित मुझे माफ़ कर दो। रजनी एक पैर पर दौड़ कर अमित को पकड़ना चाह रही थी तभी उसका बैलेंस बिगड़ गया था किंतु तब तक अमित मुड़ चुका था उसने रजनी को अपनी बाहों में उठा लिया और रजनी फफक कर रोये जा रही थी उसे वर्षों बाद अमित की बाहों का सुख मिला था। अमित ने जब मोहन के बारे में पूछा तो रजनी रोते-रोते उसकी हर बातों से अवगत कराया। अमित को पता चल चुका था कि मोहन एक धोखेबाज है जो केवल रजनी के जिस्म की भूख मिटाने के लिए रजनी से प्यार का नाटक कर रहा था और ये समझ नही पाई। जब रजनी एक बोझ बन गई तो वो उसे छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिये कहीं दूर चला गया।

अमित ये सब जानने के बाद भी रजनी को सांत्वना दिये जा रहा था की मैं तो हूं जिसमें अग्नि को साक्षी रख कर जीने मरने का कसम खाया था भला मैं कैसे छोड़ सकता हूं। आज भी तुम हमारी पत्नी हो, तुम भटक गई थी किंतु मैं नही। आज भी तुम मेरे लिये वही रजनी हो जिसे हम व्याह कर लाये थे। हां एक बात याद रखना की ये तमाम घटना ना तो तुम अपने मायके में बतलाओगी ना ही मेरे मां बाप को, मैं नही चाहता की तुम्हारे इस भूल के लिए कोई भी एक अंगुली भी तुम पर उठाए। यह एक सपना समझ कर तुम भूल जाओ। ये पैर तुम्हारे भूल के गवाह है जो तुम्हे जीवन भर याद रहेंगे। जिसने तुझे बनाया है उसी ने तुझे सजा दिया है मामला बराबर। अमित आज रजनी को पाकर बहुत खुश था धीरे-धीरे रजनी भी सहज हो गई और दोनों प्यार से जीने लगे। रजनी भी अब अमित के साथ स्कूल को संभालने लगी। अब तक अमित के पास दो-दो गाड़ी बंगला बहुत कुछ हो गया था।

किंतु रजनी को ये दर्द हमेशा होता की कभी भी अगर मोहन से सामना हुआ तो मैं उसे अपना मुंह कैसे दिखाऊंगी जिसने इस जिस्म को भोगा है यह सोच कर रजनी बीच-बीच में मायूस हो जाती। आज जैसे ही रजनी ने टेबल पर रखे अखबार को उठाया वो चौक गई अखबार के फ्रंट पेज पर एक खबर छपी थी दर्जनों लड़कियों को अपनें झांसे में लेकर जिस्मानी रिश्ता बनाने वाले दरिंदे मोहन की मौत गोली मारकर उसी की एक महिला मित्र ने की। फोटो खून से लथपथ मोहन का था। यह देख कर रजनी के दिल को तसल्ली मिली थी क्योंकि उसके जीवन से आज कलंक की कालिख उसके मौत के साथ मिट गई थी। रजनी ने उस अखबार को जब अमित को दिखाया तो वो हस कर कहा मुझे ये पता है की हर गलत चीज का अंजाम गलत ही होता है। मैंने सुबह ही इस खबर को पढ़ लिया है। तभी रजनी को चक्कर आने लगे थे, अमित ने आनन फानन में हॉस्पिटल पहुंचा जहां नर्स ने आकर कहा – सर बधाई हो, आप पापा बनने वाले है।

(सूचना : इस कहानी पर सर्वाधिकार कहानीकार का है किसी भी प्रकार से इस कहानी को तोड़ मरोड़ कर पेश करना कानूनन अपराध होगा।)

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