अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : मां का दर्द

।।मां का दर्द।।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। सुबह से हीं यशोदा परेशान थी, क्योंकि उसके इकलौते बेटे रंजन को बुखार था। यशोदा के पति का देहांत हो चुका था। वो एक ऑटो ड्राइवर थे। अचानक पति के चले जाने के बाद यशोदा के ऊपर बहुत बड़ा बोझ आ गया था। ऐसे तो रंजन एक हट्टा कट्ठा नौजवान था जो बीए की पढ़ाई कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। यशोदा ये नही चाहती थी की पैसों की वजह उसके बेटे की पढ़ाई बाधित हो। वो दूसरे के घर चौका बर्तन करनें लगी। उससे जो पैसा मिलता घर का भोजन पानी चल जाता। कभी-कभी पैसे कम पड़ जाते तो यशोदा इसके उसके घर कुछ काम कर लेती, जिससे अलग के कुछ पैसे मिल जाते। इस महीने रंजन के पढ़ाई का फीस देना पड़ा था और कुछ किताबें खरीदनी पड़ी थी। जिसकी वजह से यशोदा के हाथ बिल्कुल खाली पड़ गए थे। रंजन के बीमार हो जाने के बाद यशोदा उसे हॉस्पिटल ले गई जहां डॉक्टरों ने दवाई लिख कर पर्ची यशोदा के हाथों थमा दिया था। खाली पेट बिना कुछ खाए दवा नहीं खाना था। जैसे तैसे यशोदा ने दवा तो खरीद ली किंतु रंजन को खिलाने के लिए घर में कुछ भी नही था।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

यशोदा एक कर्मजीवी महिला थी वो चाह कर भी किसी के सामने हाथ नहीं फैला सकती थी। अतः यशोदा दवा की पोटली रंजन के बिस्तर के किनारे टांग कर बाहर निकल गई, इस अभाव की जानकारी रंजन को भी थी वो अपने मां को परेशान देख कर व्यथित हो जाता। मगर क्या करता उसे भी तो अपने पापा के सपनों को साकार करना था। यशोदा चलते चलते एक मेम साहब के दरवाजे पर रुकी और उनके कॉल बेल को दबा दिया और बुत बन कर किसी के बाहर आने का इंतजार करने लगी। अंदर से एक तेज़ तर्रार महिला निकली और झल्लाते हुए यशोदा से कहा! बोलो क्या बात है? यशोदा ने कहा – मेम साहब घर में कोई काम हो तो कहे मैं कर दूंगी? मेम साहब ने कहा नही, हमें नही करवाना कोई काम, मेरे यहां काम वाली बाई आती है। तभी यशोदा ने करूणा भरे शब्दों में कहा – मेम साहब कोई भी काम बोलिये मैं अच्छी तरह करूंगी! मेम साहब ने कहा -बोलो मेरे दो बाथरूम साफ करनें है कितने पैसे लोगी?

नही मैडम मैं पैसा नहीं लूंगी मुझे खाना दे दीजिएगा, मुझे खाने की आवश्यकता है। मेम साहब ने कहा- ओह!! आ जाओ अच्छी तरह काम करना, लगता है बहुत भूखी है मेम साहब बुदबुदाई और कहा -तुम पहले खाना खा लो फिर काम करना। यशोदा ने कहा – नही मेम साहब मैं खाना नही खाऊंगी, खाना घर ले जाऊंगी मेरा बेटा बीमार है डॉक्टर ने कहा है खाली पेट दवा नही खिलाना है। घर में अनाज के एक दाने तक नहीं है और मुझे किसी के सामने हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता सो मैं काम के बदले भोजन लेने आप के यहां आ गई हूं। यशोदा की आंखें नम हो गई थी वो अपने साड़ी के पल्लू से अपनें आंसू पोंछ रही थी। रंजन के पापा भी कहते थे कोई काम छोटा बड़ा नही होता बस काम ईमानदारी का होना चाहिए। शरीर से काम लेने और काम करने में कोई हर्ज़ नही। चलिए मेम साहब बाथरूम दिखा दीजिए। ये बातें सुनकर मेम साहब के भी आखों में आसूं छलक आए थे। वो बोली तुम चिंता न करो तुम खा लो फिर घर ले जानें के लिए भी खाना पैक कर के दे दूंगी। यशोदा ने खाना खाया और अपनें काम में लग गई, कुछ क्षण बाद यशोदा ने अपनें काम को निपटा कर मेम साहब से कहा – मेम साहब देख लीजिए अपनें बाथरूम को बिल्कुल नये जैसा चमक आ गई है।

यशोदा के मन को शांति मिली थी। कुछ क्षण बाद मेम साहब ने एक थैले में बहुत सारा खाने पीने का सामान यशोदा को दिया और सौ रूपये टिप्स के रूप में भी दिए, जिसकी आशा यशोदा को नही थी। वो मेम साहब से बोल रही थी भगवान हमेशा आपको प्रसन्न रखें मेम साहब। आज आप हमारी अन्नदाता बनी प्रभु हमेशा आप के अन्न धन में वृद्धि करें। जब भी कभी हमारी जरूरत पड़े आप मुझे बुलावा भेज देंगी मैं दौड़ी चली आऊंगी मैं राममनोहर पल्ली में रहती हूं यशोदा मेरा नाम है सब जानते है मुझे, चलती हूं नमस्ते और यशोदा वहां से चल पड़ी थी। घर आने पर यशोदा ने देखा की रंजन बुखार से तड़प रहा है। यशोदा ने तुरंत रंजन को खाना खिलाया और दवा देकर सुला दिया। यशोदा पूरी रात रंजन के सर को सहलाती रही और न जाने कब दोनो मां बेटा को नीद आ गई पता हीं नही चला। सुबह उठने के बाद रंजन अपनें आप को हल्का महसूस कर रहा था। इधर यशोदा सुबह सुबह मेम साहब के दिये हुए पैसों से अनाज खरीद लाई और जैसे तैसे खाना बना कर रंजन को खिला दिया और आराम करने की हिदायत देकर अपनें काम पर चली गई।

काम पर जाना यशोदा की मजबूरी थी अगर नही जाती तो तीन दिन का बर्तन एक साथ साफ करना पड़ता और और मालकिन की बातों को अलग से सुननी पड़ती। रंजन नाश्ता करने के बाद दवा खाकर आराम फरमानें लगा था। दोपहर के 12 बज रहे होंगे तभी डाकिए ने एक पत्र ला कर रंजन को दिया था। रंजन ने जब पत्र खोलकर देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, यह पत्र कुछ और नहीं यह एक सरकारी दफ्तर का ज्वाइनिंग लेटर था। जहां दो दिन बाद रंजन की ज्वाइनिंग होनी थी। इस खुशी की वजह रंजन का बुखार भी कोसों दूर भाग गया था। वो बस इस खुशखबरी को अपनें मां को बतलाने के लिए बार बार घड़ी देख रहा था। उसे पता था की मां को जब इतनी बड़ी खुशी की खबर मिलेगी तो वो मारे खुशी के उछल जायेगी। घंटों बीतने के बाद जब यशोदा अपने घर पहुंची तो रंजन ने यह खुश खबरी अपनें मां को सुनाई और यशोदा खुशी के मारे रंजन को चूमने लगी।

उसे विश्वास था की मेरा बेटा एक दिन जरूर साहेब बनेगा, वो भागी भागी तुरंत रंजन के पिता के फोटो के सामने पहुंची और खड़ा होकर बोलने लगी, अरे रंजन के पापा देखो रंजन को सरकारी नौकरी मिल गई है, तुम कहते थे न मेरा बेटा बहुत होनहार है मैं अपना खून जलाऊंगा मगर अपने बेटे को बाबू बनाऊंगा, अपना बेटा बाबू बन गया है। रंजन अपनें मां को अपनी बाहों में भर कर प्यार से कहने लगा था मां ये सब तेरे प्यार और आशीर्वाद का नतीजा है, मेरे इस मुकाम को हासिल करने में तुम्हारा भी खून जला है, पापा के जाने के बाद तुमने कभी अहसास होने नहीं दिया की मेरे पापा नही है तुमने मम्मी पापा दोनों का फर्ज निभाया। चलो मां अब तुम्हारे दुख के दिन खत्म हो गए। अब तुम्हारे सुख के दिन आने वाले हैं। हां बेटा अब तो सोचती हूं की कुछ दिन बाद तेरी शादी हो जाए और तुम सुख से अपना जीवन जिओ, मेरा क्या!तुम्हारे पापा के जाने के बाद अब तो मुझे जीने का भी इच्छा नहीं करता।उनकी एक एक यादें हमेशा हमें परेशान करती है और मैं जिंदा रह कर तड़पती हूं।

यशोदा के आंख भर आए थे तभी रंजन ने अपने मां से कहा – अरे मां ये क्या कह रही हो अभी तो तुझे बहुत कुछ देखनें है,चलो आज दक्षिणेश्वर काली मां के दर्शन कर के आते है बहुत दिन हो गए, लगता है मां मुझे बहुत दिन से बुला रही है और शाम होते होते रंजन यशोदा को लेकर मंदिर चला गया था। अब यशोदा रोज रोज सुबह जागती और रंजन के लिए नाश्ते तैयार कर उसे ऑफिस भेजती। अब तो रंजन के चेहरे पर भी ऑफिसर के भाव झलकते, लोग रंजन और उसके मां के परिश्रम की कहानी अपनें बच्चों को सुनाते। लोगों के बीच रंजन का सम्मान बढ़ गया था और घर में अभाव का अब कोई स्थान नहीं रह गया था। अब तो घर में वो रिश्तेदार भी आने लगे थे जो रंजन के पिता जी के जाने के बाद मुंह मोड़ लिए थे उन्हें लगता था की अभाव में यशोदा किसी से पैसों की डिमांड न कर दे, किंतु रंजन और यशोदा को इनसे कोई शिकायत नहीं थी वो आने वाले तमाम आगंतुकों की देख भाल करती और ससम्मान उनका स्वागत कर उन्हें भेजती।

यशोदा आने वाले तमाम रिश्तेदारों से ये आग्रह करती की आप लोग हमारे रंजन के लिए एक सुसभ्य सुंदर और शिक्षित लड़की बतलाए, वो भी बिना दहेज के। कारण की अभाव का कष्ट झेल चुकी यशोदा किसी को यह कष्ट देना नही चाह रही थी। समय सुधरने के बाद कुछ एक रिश्ते वाले भी आने लगे थे। किंतु कहीं न कहीं बात न बनती। ऐसे तो रंजन के पिता ने ऑटो चलाकर ही एक अच्छे मकान का निर्माण कर दिया था, जिसे बस एक नया लुक देना था जिसे रंजन ने पूरा कर दिया था। अचानक एक रविवार को चार पांच लोग रिश्ते की बात लेकर यशोदा के घर पहुंचे थे। लड़की पढ़ी लिखी थी किंतु लड़की के माता पिता नही थे। लड़की का भरण पोषण शिक्षा दीक्षा अपने भैया भाभी के पास रह कर ही हुआ था। वो बी.ए. तक की पढ़ाई कर एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही थी, लड़की का नाम नीतू था। लड़की देखने में सुंदर सुसभ्य लग रही थी जो यशोदा को पसंद आ गई और रंजन के साथ विवाह संपन्न हो गया।

बहु को घर लाकर यशोदा बहुत खुश थी, वो बहु को काम नही करनें देती। ज्यादा से ज्यादा काम यशोदा खुद करती, वो हमेशा अपनें बहु नीतू से कहती बेटी अभी तुम्हारा उम्र एंजॉय करने का है तुम खाओ पियो मौज करो, काम करने के लिए तो पूरी उम्र पड़ी है। इधर रंजन अपनें मां के व्यवहार से काफी प्रसन्न था, उसे डर था की सास बहू में कैसे पटेगी। लोग कहते है सास थोड़ा टेढ़ी होती है किंतु रंजन को अपनें मां में ऐसा कुछ नही दिखता। समय गुजरता गया और नीतू एक बच्चे की मां भी बन गई। किंतु उम्र एक समय के बाद किसी को नहीं छोड़ता। अब यशोदा काम करते करते थक जाती और हांफने लगती, मां को थका हारा पाकर रंजन मां को समझता और कहता मां तुझे काम करने की आवश्यकता नहीं है। तुम आराम करो नीतू तो है काम करने के लिये और रंजन की यही बात नीतू को गवारा लगनें लगी, अब वो धीरे धीरे बोलना सीख गई थी। अब तो वो यशोदा को भी कभी कभी खरी खोटी सुना देती। जिसे यशोदा सहन कर के रह जाती और रंजन को नही बतलाती।

नीतू आज भी चाहती थी की उसकी सास यशोदा उसके काम में हाथ बटाएं किंतु अब तो यशोदा का शरीर ही जवाब दे गया था वो तो अब अपने आप को ही नही संभाल पाती काम तो बहुत बड़ी बात थी। किंतु रंजन अपनें मां से बहुत प्यार करता था। वो हमेशा अपनी मां से उनके सेहत की खबर और उनके खाने पीने में कोई दिक्कत तो नही वो पूछता, रंजन का यह पूछना ही नीतू के कलह का कारण बनता वो चिल्लाने लगती वो कहती मुझ पर विश्वास नहीं है तो अपने साथ अपनें मां को ऑफिस ले जा और अपने साथ साथ रखो। मैं तो इस बुढ़िया को खाना भी नहीं देती, लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे मेरे बारे में और वो पूरे घर को सर पर उठा लेती। अब तो रंजन के ऑफिस जाने के बाद नीतू अनाप शनाप बोलती, जब कभी यशोदा एक ग्लास पानी मांगती वो भी उसे नही मिलता। नीतू कहती सारा दिन पानी ही देती रहूं या घर का काम भी देखूं। एक ग्लास पानी भी उठाकर नही पी सकती ये बुढ़िया। नीतू यशोदा को समय पर खाना भी नही देती बस दिन भर रंजन के चले जाने के बाद फोन पर लगी रहती।

अब तो यशोदा खाने खाने को तरस जाती, भगवान ने तो अब शरीर भी ऐसा नहीं बना रखा था की वो कहीं काम कर के भी अपनी क्षुधा की आग बुझा सके। यशोदा अंदर ही अंदर घुंटती। बहु बेटा में झगड़ा हो वो नही चाहती, उसे यह भी पसंद नही की उसके घर की बातों को बाहर वाले जानें, अब तो खाने पीने वाले चीजों के थाली में भी अलग अलग भाव दिखते। यशोदा सब कुछ देखती मगर सहन कर जाती। नवरात्रि का महीना चल रहा था और नीतू मां की आराधना में नौ दिन का उपवास रखी थी। वो रोज रोज मां को अलग अलग चीजों का भोग लगाती, किंतु उसकी आत्मा ये नही कहती की यशोदा के हाथ में भी उस प्रसाद के कुछ अंश दे दे। नवरात्र का आठवां दिन था। नीतू घर में मां के लिए अलग अलग व्यंजन बना रही थी। जिसकी खुश्बू यशोदा तक पहुंच रही थी। भूखा पेट और उस पर से व्यंजनों की खुशबू यशोदा के मन विचलित हो रहे थे।

तभी कुछ क्षण बाद यशोदा के कानों तक नीतू की आवाजें पहुंच रही थी, वो बोल रही थी मां देखो आज तुम्हारे लिये कितने प्रकार के व्यंजन बना रही हूं और आज आपको अपनें हाथों से खिलाऊंगी। मां अगर मुझसे कोई गलती हुई हो तो माफ़ कर देना। आज हमारा रंजन अगर इस पद पर है तो ये आपका योगदान है मां, आपकी कृपा है जो मुझे रंजन जैसा पति मिला। मां मेरी हर गलती को भुला कर मेरे पास बिराजो, मैं तुम्हारे सेवा में तैयार हूं। आ जाओ मां, आ जाओ मां, देखो तुम्हारी बेटी बुला रही है बोल कर नीतू की आखों से झर झर आंसू बहे जा रहे थे, वो भाव विभोर होकर मां आ जाओ, मां आ जाओ की रट लगा रही थी। नीतू के तमाम बातों को सुनकर यशोदा को लग रहा था की नीतू हमें बुला रही है। वो सोच रही थी की हो सकता है बहु को अपनें किये पर पछतावा हो रहा हो, खैर! छोड़ो, जो भी हो वो मेरे घर की बहु है, मुझे नही मानती तो क्या हुआ मेरे बेटे मेरे पोते का तो ख्याल रखती है। तभी एक बार फिर आवाज आने लगी। आ जाओ मां, आ जाओ मां।

तभी यशोदा अपनें आप को घसीटते हुए नीतू के पास पहुंची, आ गई बहु तुम चिंता मत करो। मैं अपनें हाथ खुद खा लूंगी, तुम मां मां कह कर मुझे बुला रही थी मुझे बहुत अच्छा लगा है। हमें पता था हमारी बहु जरूर एक दिन अपनें किए पर मुझसे माफ़ी मांगेगी। मगर मैं तो पहले ही माफ़ कर दी हूं। ये तमाम बातें सुनकर नीतू घूमी और यशोदा को धक्का दे दी और कहने लगी, अरे बुढ़िया मैं तुझे नही अपनी देवी मां को मां मां कह कर बुला रही थी। देख इनके लिये कितने व्यंजन बनाएं है हमनें, तुम क्या समझती है मां मां कह कर तुझे बुला रही थी और अपनें हाथों से तुझे खिलाने की बात कर रही थी। जा भाग जा मेरे नजरों के सामने से, भंग कर दी मेरी पूजा! मैं मां के भक्ति में डूब रही थी किंतु ये बुढ़िया इस में भी विघ्न डाल दी।

इन तमाम वाकया को रंजन देख चुका था। वो अपने मां के इस अपमान को देख कर छटपटा गया था जब नीतू उसके मां का हाथ पकड़ कर बाहर भागने को कह रही थी। आज रंजन के सब्र का बांध टूट गया था, वो नीतू के हाथों को पकड़ कर घसीटते हुए बाहर का रास्ता दिखा रहा था और कह रहा था कि भागेगी तो तुम मेरी मां नही, मैं उन लड़कों में से नही हूं जो मां के अपमान के बाद भी बीबी के पल्लू और सास के चरण में मत्था टेकते है। हमेशा यह सोचना की घड़ी की सुई हमेशा अपने आप को दोहराती है तू जो आज अपने सास के साथ कर रही हो भगवान तुझे भी इस लिए ही बेटा दिया है जिससे तुम्हारी बहु तुम्हारे कर्मों को दोहराएगी। हमें लग रहा था की मेरे देवी जैसे मां का इस घर में अपमान हो रहा है। मगर मुझे इस दिन का इंतजार था जो मैंने अपनें आखों से देख लिया। जा कुलटा तुम्हारे जैसी बहुत मिलेगी मगर मेरे मां के जैसा एक भी नहीं। तुझे क्या लगता है मेरे मां के साथ तुम जो कर रही हो उससे तुम्हारी ये देवी मां खुश हो जाएंगी। ये तो एक आकार है किसी देवी का किंतु मेरी मां एक साकार देवी मां है जिसने अपने खून पसीनों से इस घर को मंदिर बनाया, इतना सहन करने के बाद भी कभी तेरी शिकायत नहीं की मुझसे, घुटती रही मगर मुंह नही खोला कभी। जानती हो क्यों?

इसलिए की इस घर की शांति भंग हो जाती। तुम अगर इस मां का आराधना करती तो ये देवी मां खुद व खुद प्रसन्न हो जाती। ये देवी मां तो आदि अंत तक रहेगी इनका स्वरूप रहेगा, मगर मेरी मां कुछ दिन ही रहेगी, जब तक है तुम इस साकार मां को पूज लो धन्य हो जाओगी, इन्हें अच्छे-अच्छे भोग लगाओ जिससे तुम्हारा तीनों लोक सुधरेगा। रंजन अपनें मां को गले लगाकर रोने लगा था और कह रहा था मां मुझे माफ़ कर दो। मुझे लगता की मेरे चंद सुखों की वजह तुझे इतनी जिल्लत झेलनी पड़ेगी तो मैं विवाह ही नही करता, वो रोये जा रहा था। इधर नीतू को भी आत्मबोध हुआ था उसे भी साकार मूर्ति में मां का अपमान समझ में आ गया था। वो यशोदा का पैर पकड़ कर माफ़ी मांग रही थी और कुछ घंटों बाद सब सहज हो गया था।

नीतू अपनें सासु मां को बैठकर मां रूप में उन्हें अपनें हाथों भोजन करा रही थी और बगल में कुंवारी कन्याओं को मां के असली रूप का वर्णन समझा रही थी वो सभी बच्चियों से कह रही थी की मायके में माता पिता और ससुराल में सास ससुर की सेवा कभी विफल नही जाता। आज यह आत्मबोध नीतू को हो गया था। आज एक साल होने को है और नवरात्र का आज भी आठवां दिन है, मगर इस बार नवरात्र में देवी मां के साथ साथ नौ दिन नीतू अपने सासु के चरण को पूज रही थी और यह परिवार यशोदा के प्रसन्नता के कारण धनधान्य से पूर्ण होता जा रहा था और नीतू ने अपने स्वार्थ और अभिमान का त्याग कर मनुष्य रूप को धारण कर ली थी। मैं भी सदा से अपनें बेटी को यही सीख दी है की सासु मां प्रभु की दी हुई एक नेमत है जिसमें अपनें परिश्रम से पोस पाल कर अपनें बेटा को तुझे सौप दिया है उसकी रक्षा करना।

सूचना :- इस कहानी पर सर्वाधिकार कहानीकार का है किसी भी प्रकार से इस कहानी को तोड़ मरोड़ कर पेश करना कानूनी अपराध होगा।

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