अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : बहु की सोच

कोलकाता। नई नवेली दुल्हन घर में आई थी, घर का माहौल खुशनुमा था। बात करते करते काफी रात हो गई थी, घर के सारे सदस्य काफी रात को सोये थे।सुबह-सुबह नहा धोकर बहु ने अपनी अटैची खोली शंख निकाला और पूजा घर खोजने लगी, किंतु उन्हें पूजा घर नही मिला। कई जगह कुछ तस्वीरें दिखी और बहु सोचनें लगी यह किसकी तस्वीरें है जो मेरे शादी जैसे खुशी के माहौल में शामिल नहीं हो पाये, खैर! हो सकता है इनकी मजबूरी होगी नही आ पाए होंगे। बहु सुबह-सुबह सास ससुर का पैर छूकर घर को शंख ध्वनि से गुंजायमान कर दी। तभी सबकी नींद खुल गई। सासु ने कहा बहु ये क्या कर रही हो हम लोग पूजा पाठ नही मानते, हम लोग निराकार प्रभु को मानते है तभी बहु ने कहा हां मां जी किंतु मैं तो आकार प्रभु को मानती हूं और इन आकार प्रभु के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहती हूं।

तभी सासु जी ने कहा बेटी मैं कुछ समझी नहीं ये आकार, साकार प्रभु? हां मां जी साकार प्रभु जो चल सकता है जो गंध महसूस कर सकता है जो मेरे दुख सुख में शामिल हो सकता है जिसका रोज मैं दर्शन पा सकूं जैसे आप पापा जी ये देवर जी और घर के तमाम लोग। बहु की बात सुनकर सासु जी बहुत खुश हुई और कहा मैं भी तो यही कहती हूं बेटा पहले जानों फिर मानों, हां मां जी किंतु आप लोगों के कथनी और करनी में अंतर है आप मानती निराकार प्रभु को और कह कर बहु चुप हो गई। हां बोलो बेटा बोलो-बोलो, सासु मां बोल रही थी। तभी नई नवेली दुल्हन ने संकोच करते हुए कहा, कहने का मतलब की जिसका कोई आकर हीं नही फिर आप उस आकार को अपनें गले अपने कमरों के हर कोने में दिव्य दर्शन के लिये क्यों लगा रखा है।

आखिर ये कौन लोग है जिससे आपका पूरा परिवार प्यार करता है और ये मेरे शादी तक में नहीं आए, अरे बेटा ये मेरे रिश्तेदार थोड़ी है जो शादी में आते ये तो गुरु है, तो क्या मां जी ये फोन पर भी हमें बधाई नही दे सकते? सासु जी घबड़ा रही थी क्योंकि बहु ने सत्य बोला था हमारे धर्म शास्त्र कहते है की कुल गुरु जीवन मरण यश अपयश दुःख सुख हर मौके पर तैयार रहते थे, ये कौन से गुरु है जिससे हम आज तक बात भी नही किये जो मेरे यहां भोजन भी नही कर सकते बात पते की थी, तभी बहु ने कहा मां जी मुझे मंदिर जाना है प्रथम दिन है आप मुझे ले चले फिर तो मैं देख लूंगी और चली जाऊंगी।

सासु जी न चाह कर भी बहु को मंदिर ले गई। बहु भक्तिभाव से जगत जननी मां की पूजा अर्चना कर मन को शांत किया और घर लौटने लगी। रास्ते में सासु जी ने बहु से कहा बेटी इस पत्थर के मूर्ति को पूजकर क्या मिला, मेरी बातों को अन्यथा मत लेना। तभी बहु ने कहा इसमें अन्यथा वाली बात नही है मां जी मैं अपनें साकार प्रभु की बातों को कैसे बुरा मान सकती हूं, रही बात पत्थर पूजने की तो हम सनातनी है हम उन तमाम क्रियाओं को पूजते है जिसके द्वारा मनुष्य का कल्याण हुआ है जैसे पाषाण युग में पत्थर द्वारा हमारे जीवन को सहारा मिला भला मैं इसे कैसे छोड़ सकती हूं। इनके प्रति कृतज्ञता जताना हमारा कर्तव्य है। रही बात इन देवी की और इस शेर की तो ये देवी अपनें कृतित्व से असुरों का नाश कर नारी लज्जा को बचाई थी और ये शेर अगर जंगल में संतुलन बनाने का काम न करें तो हम मनुष्यों का रहना दुश्वार हो जायेगा।

इसलिए हम पूजा कर के इनके प्रति आभार व्यक्त करते है रही बात न मानने की तो आप ये जान लीजिए की आकार और साकार एक दूसरे के पूरक है जिस तरह सुख दुख इष्ट निष्ट पाप पुण्य धर्मा धर्म जीवन मरण हानि लाभ और संयोग वियोग दि का सहचर्य संबंध, ठीक उसी तरह आस्तिकता और नास्तिकता का सहचर्य संबंध है कारण की बिना साकार के आप निराकार के बारे में नहीं जान सकती। यह गूढ़ विषय है जो समझते है की इस श्रृष्टि की रचना करने वाला कोई सर्वोपरी शक्ति संपन्न है वे आस्तिक है और जो समझते है की यह श्रृष्टि स्वयमेव उत्पन्न हुई है पदार्थद्वय के संयोग से एक तीसरा पदार्थ हो ही जाता है इसके लिये अन्य श्रष्ठा की आवश्यकता नहीं है वो नास्तिक है।

बहु की बात सुनकर सासु जी सोच में पड़ गई वो सोचने लगी बहु ठीक कह रही है अगर निराकार प्रभु को मानना है तो साकार प्रतिमूर्ति के चरणों में ये प्रणामी कैसा जिसके एक एक पैसे से ये तथाकथित लोग अरबों रूपये के मालिक है। तुम्हारी बात तो ठीक है बेटा मगर मैं उलझ कर रह गई हूं, कोई उलझन नहीं है मां जी आपके मन में जो है मुझसे कहिए। ऊपर वाले ने हमें बनाया है मेरे अंदर भी सोचने समझने की शक्ति है फिर ये बाबा बीच में माया का काया बटोरने में क्यों लगे है। ये सबको एक परिवार का हिस्सा और समान अधिकार देते है तो इतने बड़े विरासत पर इनका और इनके परिवार का ही अधिकार क्यों होता है और वो अरबों का सुख भोगते है। उनके परिवार के तमाम लोग ही महान आत्मा है? और हम केवल उनके नाम को बढ़ाते हुए विग्रह का त्याग करेंगे और लोगों को भी विग्रह का त्याग करनें के लिए प्रेरित करेंगे।

बात करते करते सास बहू अपने घर पहुंच चुकी थी। घर में एक बूढ़ी बैठी थी सासु जी ने बहु से कहा बेटी ये बूढ़ी मां इस परिवार की जननी है इनका पैर छू लो बहु ने बूढ़ी मां का पैर छुआ और कहा मां जी ये ये आपके परिवार की जननी है और श्रद्धेय है और जो इस जगत की जननी है वो क्या पूजनीय नही है जिसे आदिशक्ति मां भवानी कहते है रही बात निरंकार प्रभु की तो आप ही बताएं जिस निरंकार प्रभु में मन सहित पांचों ज्ञानेंद्रियों की गति नही है मेरे शब्दों को जो सुन नही सकता, जिसे हम देख नही सकते छू नही सकते, अगंध होने से जिसे सूंघ नही सकते जिसके स्वाद रस की अनुभूति न मिले अब आप बतलाएं यह कौन सा तरीका शेष रहा जिसके द्वारा उस परमात्मा का ज्ञान किया जा सके।

हम देवता रूप में उन तमाम महापुरुषों का अभिवादन करते है चाहे वो सनातन, मुस्लिम, सिख अथवा ईसाई क्यों न हो। ये तमाम धर्म बिना केंद्र के नही चल सकते इस लिए कोई मस्जिद अथवा मजार बनाता है तो कोई चर्च तो कोई गुरुद्वारा जहां एक आकार के समक्ष ही लोग बैठते है हम भी वही करते है मूर्ति के रूप में आकार देकर। यह समझिए की जहां ध्याता, ध्यान, ध्येय ये तीन पदार्थ होते है वहीं ध्यान लग सकता है। वहीं ईश्वर का साक्षात्कार हो सकते है। आप लोग तो दो वस्तु के बीच के खाली स्थान में ईश्वर दर्शन कराते है जो निराधार है इन सब बातों को सुन कर बूढ़ी मां बहु को अपनें पास बैठाकर हाथ जोड़ कर बोल रही थी। बड़ी बहु आज से मैं तुम्हारे उस बाबा को नहीं मानूंगी।

मैं मानती हूं की तुझे ब्राह्मणों से नफरत है जिन्होंने जाति भेद लगाकर सनातनियों को बांटा किंतु यहां तो मेरी छोटी बहु ज्ञान का भंडार लेकर आई है फिर मैं इसे ही क्यों न गुरु माता मानूंगी ऐसे भी बहु हम सबों से ज्यादा पढ़ी लिखी है और तार्किक भी है जागरूक भी, तर्क और विवेक के सहारे बहु ने सास और दादी मां को जाग्रत कर दिया था। अगर मानवता की प्राप्ति करनी है तो सबसे पहले असहायों जरूरत मंदो और गरीबों की सेवा करो। अरबों के भंडारण से किसका भला होने वाला है। बहु की हर बात चिंतन करने योग्य था तभी बूढ़ी मां ने बोला बहु आज से इस घर का कर्मकांड हमारी बहु करेगी और आज से हम साकार प्रभु के शरण में जाएंगे। बहु जब भी समय मिले साकार लोगों की सेवा और उन्हें भोजन कराकर इसी तरह ज्ञान की चर्चा करना आज से मैं बोलूंगी – जय आकार जी, शांति हो साकार जी

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

अशोक वर्मा “हमदर्द”
43, आर.के.एम. लेन चापदानी,
पोस्ट -बैद्यवाटी,जिला -हुगली
पिन -712222

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nineteen − 11 =